गृह

6.12 समाजवादमें लोकतन्त्र ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

6.12 समाजवादमें लोकतन्त्र ‘सोवियट कम्युनिज्म’ (रूसी साम्यवाद) नामक पुस्तकमें फेबियन वेव दम्पतिने लिखा है कि…

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6.9 श्रेणीभेदका आधार ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

6.9 श्रेणीभेदका आधार मार्क्स कहता है—‘जैसे पशुओं, वनस्पतियों, धातुओंमें श्रेणीभेद है, वैसे मनुष्योंमें भी श्रेणीभेद…

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धर्मशास्त्र

राजधर्म

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श्रीमृत्युंजयमानसिकपूजास्तोत्रम्

।।श्रीः।। ।।श्रीमृत्युंजयमानसिकपूजास्तोत्रम्।।कैलासे कमनीयरत्नखचिते कल्पद्रुमूले स्थितं कर्पूरस्फटिकेन्दुसुन्दरतनुं कात्यायनीसेवितम्। गङ्गातुङ्गतरङ्गरञ्जितजटाभारं कृपासागरंकण्ठालंकृतशेषभूषणममुं मृत्युंजयं भावये।।1।। आगत्य मृत्युंजय चन्द्रमौले व्याघ्राजिनालंकृत…

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श्रीदक्षिणामूर्त्यष्टकम्

।।श्रीः।। ।।श्रीदक्षिणामूर्त्यष्टकम्।।विश्वं दर्पणदृश्यमाननगरीतुल्यं निजान्तर्गतं पश्यन्नात्मनि मायया बहिरिवोद्भूतं यथा निद्रया। यः साक्षात्कुरुते प्रबोधसमये स्वात्मानमेवाद्वयंतस्मै श्रीगुरुमूर्तये नम…

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6.4 शोषक-शोषित ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

6.4 शोषक-शोषित भूमि आदिके लिये युद्ध, संघर्ष होने; मालिक-गुलाम, शोषक-शोषित, उत्पीड़क-उत्पीड़ित आदिकी कल्पना तो ह्रासकालकी…

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2. पाश्चात्य-राजनीति – 2.1 यूनानका राज्यदर्शन ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

पाश्चात्य राजनीतिपर विचार करते समय सर्वप्रथम उसके प्राचीन यूनानी राज्यदर्शनपर विचार करना पड़ता है। वहाँकी…

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शिवकेशादिपादान्तवर्णनस्तोत्रम्

।।श्रीः।। ।।शिवकेशादिपादान्तवर्णनस्तोत्रम्।।देयासुर्मूर्ध्नि राजत्सरससुरसरित्पारपर्यन्तनिर्य त्प्रांशुस्तम्बाः पिशङ्गास्तुलितपरिणतारक्तशालीलता वः। दुर्वारापत्तिगर्तश्रितनिखिलजनोत्तारणे रज्जुभूताघोराघोर्वीरुहालीदहनशिखिशिखाः शर्म शार्वाः कपर्दाः।।1।। कुर्वन्निर्वाणमार्गप्रगमपरिलसद्रूप्यसोपानशङ्कां शक्रारीणां पुराणां त्रयविजयकृतस्पष्टरेखायमाणम्।…

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श्रीदक्षिणामूर्तिवर्णमालास्तोत्रम्

।।श्रीः।। ।।श्रीदक्षिणामूर्तिवर्णमालास्तोत्रम्।।मित्येतद्यस्य बुधैर्नाम गृहीतं यद्भासेदं भाति समस्तं वियदादि। यस्याज्ञातः स्वस्वपदस्था विधिमुख्यास्तं प्रत्यञ्चं दक्षिणवक्त्रं कलयामि।।1।। नम्राङ्गाणां…

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“यथेमां वाचं कल्याणीम्” ~ श्रीसनातनधर्मलोक भाग – ३ ~ लेखक – पं. दीनानाथशर्मी शास्त्री सारस्वतः, विधावाचपत्ति; । ~ भाग ६

(२६) यहाँ ‘दीयतां, भुज्यताम्’ इसी यज्ञ में कही जाने वाली वाणी का बोध होता है,…

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