May 2024

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सरयूपारीण ब्राह्मणों’ का इतिहास (वंशावली, गोत्रावली और आस्पद नामावली सहित) – ८

सरयूपारीण ब्राह्मण की विशेषताएँ सरयूपारीण ब्राहणों में तीन विशेषताएँ पाई जाती हैं- (१) पंक्ति, (२) भोजन सम्बन्धी विचार, (३) गोत्र प्रवरादि। इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है- १. पंक्ति-इन ब्राह्मणों में पंक्ति का निर्माण कुछ नियमों और परम्पराओं को से कर हुआ। ऐसा माना गया कि सभी सरयूपारीण ब्राह्मण ऋषियों की सन्तान हैं। ऋषि गण […]

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सरयूपारीण ब्राह्मणों’ का इतिहास (वंशावली, गोत्रावली और आस्पद नामावली सहित) – ७

सरयूपारीण ब्राह्मणों में ‘घर’ सरयूपारीण ब्राह्मणों में प्रत्येक गोत्र वाले तथा एक स्थान पर रहने वाले औ परिवार वृद्धि आदि कारणों से अलग दूर जा कर बस जाने वाले ब्राह्मण अपने सगोत्रियों को अपना एक कुटुम्ब मानते हैं। वे उसको ‘घर’ कहते हैं। आप के वर पर कितने घर हैं? आप किस घर के हैं?

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सरयूपारीण ब्राह्मणों’ का इतिहास (वंशावली, गोत्रावली और आस्पद नामावली सहित) – ६

सरयूपारीण ब्राह्मण वंश में परिवर्तन किसी दूसरे गोत्र के ब्राह्मण की गद्दी (राशि) पर जाने पर वंश में परिवर्तन हो जाता है। जैसे- शांडिल्य गोत्रीय पोहिला तिवारी की गद्दी पर जाने पर वत्स गोत्रीय श्रीधर मिश्र का गोत्र तो वही रहा किन्तु अब वे वत्स गोत्र पोहिला तिवारी हो गये। इसी प्रकार इंटिया पाण्डेय का

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सरयूपारीण ब्राह्मणों’ का इतिहास (वंशावली, गोत्रावली और आस्पद नामावली सहित) – ५

सरयूपारीण ब्राह्मण-भेद सरयूपारीण ब्राह्मण वर्ग में शुक्ल, त्रिपाठी, मिश्र, पाण्डेय, पाठक, उपाध्याय, चतुर्वेदी और ओझा ब्राह्मण होते हैं। व्यवहार में इनको शुकुल, तिवारी, मिसिर, दूबे, पांडे, ओझा, उपाध्याय, पाठक और चौबे भी कहा जाता है। ऐसा लगता है कि इस प्रकार का विभाजन इनके गुणों और कर्त्तव्यों का बंटवारा करके किया गया। जैसे शुक्ल यजुर्वेद

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सरयूपारीण ब्राह्मणों’ का इतिहास (वंशावली, गोत्रावली और आस्पद नामावली सहित) – ४

सरयूपार की सीमा सरयूपार भू भाग की सीमा दक्षिण में सरयू नदी, उत्तर में सारन और चम्पारन का कुछ भाग, पश्चिम में मनोरमा या रामरेखा नदी, पूर्व में गंगा और गंडक (शालिग्रामी) नदी का संगम है। इस सरयूपार क्षेत्र की लम्बाई पूर्व से पश्चिम तक सौ कोस के लगभग हैं। उत्तर से दक्षिण तक पचास

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सरयूपारीण ब्राह्मणों’ का इतिहास (वंशावली, गोत्रावली और आस्पद नामावली सहित) – ३

निर्धन वह है जो कि चरित्र भ्रष्ट है। पढ़ने, पढ़ाने और शास्त्र चर्चा करने वाले यदि चरित्रहीन हैं तो वे व्यसनी हैं, मूर्ख हैं। जो क्रियावान है वही पण्डित है। यदि कोई व्यक्ति चारों वेदों का ज्ञाता है किन्तु चरित्रभ्रष्ट है तो वह शूद्र से भी गया गुजरा है। जो शुद्ध आचरण वाला व्यक्ति है वही ब्राह्मण है।

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