कखन हरब दुख मोर हे भोलानाथ ~ विद्यापति

कखन हरब दुख मोर हे भोलानाथ। दुखहि जनम भेल दुखहि गमाएब सुख सपनहु नहिं भेल, हे भोला… आछत चानन अवर गंगाजल बेलपात तोहि देब, हे भोला… यहि भवसागर थाह कतहु नहिं, भैरव धरु कर पाए, हे भोला… भव विद्यापति मोर भोलानाथ गति, देहु अभय बर मोहिं, हे भोला… व्याख्यान : हे भोलानाथ! आप किस क्षण मेरी पीड़ा का हरण करेंगे। मेरा जन्म वेदना में ही हुआ है, दुःख में ही सारा जीवन बीता है, यहाँ तक कि स्वप्न तक में सुख का दर्शन मुझे नहीं हुआ है। हे प्रभो! मैं अक्षत, चंदन, गंगाजल और बेलपत्र को अर्पित कर आपकी आराधना करता हूँ। यह भवसागर अथाह है, अतः इस स्थिति में हे भैरव (भय से मुक्त करने वाले देव) आप ही आकर मेरा हाथ पकड़ कर भवसागर में डूबने से बचाइए। विद्यापति कहते हैं कि प्रभु। आप ही मेरी गति हो, कृपा कर आप मुझे निर्भयता का वरदान दीजिए। स्रोत : पुस्तक :… Continue reading कखन हरब दुख मोर हे भोलानाथ ~ विद्यापति

आज नाथ एक बर्त्त माँहि सुख लागत है ~ विद्यापति

आज नाथ एक बर्त्त माँहि सुख लागत हे। तोहें सिव धरि नट वेष कि डमरू बजाएब हे॥ भल न कहल गउरा रउरा प्राजु सु नाचब हे। सदा सोच मोहि होत कबन विधि बाँचब हे ॥ जे-जे सोच मोहिं होत कहा सुझाएब हे॥ रउरा जगत के नाय कबन सोच लागए हे ॥ नाग ससरि भुमि खसत… Continue reading आज नाथ एक बर्त्त माँहि सुख लागत है ~ विद्यापति

जय-जय संकर जय त्रिपुरारि ~ विद्यापति

जय-जय संकर जय त्रिपुरारि। जय अध पुरुष जयति अध नारि॥ आध धवल तनु आधा गोरा। आध सहज कुच आध कटोरा॥ आध हड़माल आध गजमोति। आध चानन सोह आध विभूति॥ आध चेतन मति आधा भोरा। आध पटोर आध मुँजडोरा॥ आध जोग आध भोग बिलासा। आध पिधान आध दिग-बासा॥ आध चान आध सिंदूर सोभा। आध बिरूप आध… Continue reading जय-जय संकर जय त्रिपुरारि ~ विद्यापति

जय जय भैरव असुर-भयाउनि ~ विद्यापति

जय जय भैरव असुर-भयाउनि, पसुपति-भामिनि माया। सहज सुमति बर दिअहे गोसाउनि अनुगति गति तुअ पाया॥ बासर-रैनि सबासन सोभित चरन, चंद्रमनि चूड़ा। कतओक दैत्य मारि मुँह मेलल, कतन उगिलि करु कूड़ा॥ सामर बरन, नयन अनुरंजित, जलद-जोग फुल कोका। कट-कट बिकट ओठ-पुट पाँड़रि लिधुर-फेन उठ फोका॥ घन-घन-घनन धुधुर कत बाजए, हन-हन कर तुअ काता। विद्यापति कवि तुअ… Continue reading जय जय भैरव असुर-भयाउनि ~ विद्यापति

सरयूपारीण ब्राह्मणों’ का इतिहास (वंशावली, गोत्रावली और आस्पद नामावली सहित) – ९

पंक्ति और पंक्तिपावन ब्राह्मण सरयूपारीण ब्राह्मणों में पहिले बहुत सुशिक्षित, सच्चरित्र, आचारनिष्ठ ब्राह्मण हुये हैं। इन ब्राह्मणों से सरयूपारीण ब्राह्मणों की पंक्ति की प्रतिष्ठा बढ़ी। इसलिये उनको ‘पंक्तिपावन’ कहा गया। मनु स्मृति ग्रंथ में मनु महाराज ने पंक्तिपावन ब्राह्मणों का लक्षण निम्नलिखित रूप में बताया है- वेद जानने वालों में अग्रसर छः शास्त्रों के ज्ञाता,… Continue reading सरयूपारीण ब्राह्मणों’ का इतिहास (वंशावली, गोत्रावली और आस्पद नामावली सहित) – ९

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