April 2025

6.6 उत्पादन और नियम ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

6.6 उत्पादन और नियम उत्पत्तिके पुराने साधनों एवं पद्धतियोंमें रद्दोबदल होनेसे उत्पादनमें विस्तार अवश्य हो जाता है, उत्पन्न वस्तुओंमें सस्तापन भी आता है तथा आमदनीमें भी वृद्धि हो जाती है। पर माल खपतके लिये बाजारोंकी आवश्यकता, माल भेजने तथा कारखानोंके लिये कोयले, पेट्रोलके खानोंकी आवश्यकता, बाजारों एवं कोयले-पेट्रोल आदिके लिये संघर्ष एवं बेकारीकी समस्या अवश्य […]

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6.5 आर्थिक असंतुलन ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

6.5 आर्थिक असंतुलन आर्थिक असंतुलन मिटानेके लिये ही शास्त्रोंमें दानका महत्त्व कहा गया है। अपनी श्रद्धासे, दूसरोंके उपदेशसे, लज्जासे, भयसे किसी तरह भी देना परम कल्याणकारी है। शास्त्रोंमें यह भी कहा गया है कि जो धनी होकर दानी नहीं और निर्धन होकर तपस्वी नहीं, ऐसे लोग गलेमें पत्थर बाँधकर समुद्रमें डुबा देने योग्य होते हैं—

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6.4 शोषक-शोषित ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

6.4 शोषक-शोषित भूमि आदिके लिये युद्ध, संघर्ष होने; मालिक-गुलाम, शोषक-शोषित, उत्पीड़क-उत्पीड़ित आदिकी कल्पना तो ह्रासकालकी बात है। सृष्टिके प्रारम्भकालमें सम्पूर्ण प्रजा धर्म-नियन्त्रित थी। उस समय सत्त्वगुणका पूर्ण विस्तार था। सभी समझते थे कि सभी प्राणी अमृतके पुत्र हैं—‘अमृतस्य पुत्रा:।’ सभी प्राणियोंकी सहज समानता, स्वतन्त्रता एवं भ्रातृताकी मूल आधार भित्तिको समझते थे। व्यवहारमें सब एक दूसरेके

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6.3 शाश्वत नियम ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

6.3 शाश्वत नियम पर सिद्धान्तत: राज्यशक्तिको किसी भी धार्मिक, आध्यात्मिक नियन्त्रणमें ही रहना उचित है, अन्यथा अनियन्त्रित उच्छृंखल राज्यशक्ति राष्ट्रके लिये भीषण सिद्ध हो सकती है। ‘बृहदारण्यक उपनिषद्’ में कहा गया है कि ‘धर्म क्षत्रका भी क्षत्र है’, अर्थात् धर्मपर राजाका शासन नहीं चलता, अपितु राजापर धर्मका शासन चलता है। जैसे बिना नकेलके ऊँट, बिना

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6.2 व्यक्तिगत सम्पत्ति ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

6.2 व्यक्तिगत सम्पत्ति भारतीय धार्मिक, राजनीतिक शास्त्रोंने व्यक्तिगत सम्पत्तियोंको वैध माना है। मन्वादि धर्मशास्त्र, मिताक्षरा आदि निबन्धग्रन्थमें कहा गया है कि पितृपितामहादिकी सम्पत्तियोंमें पुत्रपौत्रादिका जन्मना स्वत्व है। गर्भस्थ शिशुका भी पिता-पितामहादिकी सम्पत्तिमें स्वत्व मान्य है। अतएव दायके रूपमें प्राप्त चल, अचल धन पुत्रादिका वैध धन है। इसी प्रकार निधि लाभ, मित्रोंसे मिली, विजयसे प्राप्त, गाढ़े

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6. वर्ग-संघर्ष – 6.1 सापेक्ष और शाश्वत नियम ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

6. वर्ग-संघर्ष ‘वर्गसंघर्ष’ मार्क्सवादका एक मूल सिद्धान्त है। ऐतिहासिक विवेचनसे वह इसी निष्कर्षपर पहुँचता है कि समाजका विकास वर्गसंघर्षसे प्रभावित होता है। समाजमें दो वर्ग होते हैं—शोषित तथा शोषक। उत्पादनके साधनोंपर जिनका अधिकार होता है, वह शोषक वर्ग है; दूसरा शोषित। प्रत्येक नियम, रीति, रिवाज, दर्शन, कला, इतिहास—सभी वर्ग-संघर्षके विचारोंसे प्रभावित होते हैं। उत्पादनके साधनोंमें

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5. मार्क्सीय द्वन्द्ववाद – 5.1 एंजिल्सका प्रकृतिसम्बन्धी द्वन्द्ववाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

5. मार्क्सीय द्वन्द्ववाद ‘डायलेक्टिस’ (द्वन्द्ववाद) ग्रीक (यूनानी) भाषाका शब्द है। यह ‘दियालेगो’ से निष्पन्न होता है। इसका अर्थ है चर्चा या विवाद करना। इसी विवादस्वरूप द्वन्द्ववादके आधारपर प्राचीन-कालमें कोई वक्ता विपक्षीके तर्ककी असंगति दिखलाकर उसका निराकरण कर सत्यसिद्धान्तका प्रतिपादन करता था। उस समयके दार्शनिकोंका ऐसा विश्वास था कि विचारोंमें परस्पर विरोधप्रदर्शनसे अथवा विरोधी मतोंके संघर्ष

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4.14 कर्मविपाक और विकासवाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

4.14 कर्मविपाक और विकासवाद जड प्रकृतिसे विश्वका विकास माननेपर ईश्वरवाद और कर्मवादसे विरोध बतलाया जाता है। यह पक्ष उचित ही प्रतीत होता है कि जैसे बीज, धरणी, अनिल और जलके संसर्गसे अपने-आप अंकुर, नाल, स्कन्ध, शाखा, उपशाखा, पत्र, पुष्प, फलसमन्वित होता है, वैसे ही प्रकृति अपने आप ही महदादिक्रमेण समस्त प्रपंचाकारेण परिणत होती है। विद्युत्कणों

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4.13 विकासवाद और जाति ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

4.13 विकासवाद और जाति जल, वायु एवं देशोंके प्रभावसे रंगमें परिवर्तन होना प्रत्यक्ष अनुमान एवं शास्त्रसे भी सिद्ध है। कफ, वात, पित्तकी प्रधानता-अप्रधानतासे भी रंग, रूप, स्वभावमें भेद होना शास्त्रसिद्ध है। जैसे संकल्पों, विचारों एवं वातावरणोंसे रजस्वला स्त्री प्रभावित हो, स्त्री-पुरुष जैसे देश, काल, वातावरणसे प्रभावित होकर गर्भाधान करते हैं, वैसे ही संतानका प्रादुर्भाव होता

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नाम अपराध का परिचय

दो मूल सिद्धांत/अपराध: अंतर्संबंध और अपराधों से बचाव: नाम अपराध के विशिष्ट उदाहरण: स्वतंत्रता, उत्तरदायित्व और सभ्यता:

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