11.5 ज्ञानका मूल ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

11.5 ज्ञानका मूल ‘ज्ञान वस्तुगत सत्यताकी यथासम्भव निर्दुष्ट प्रतिच्छायाओंके रूपमें प्रतिष्ठापित एवं परीक्षित मान्यताओं, दृष्टियों एवं प्रस्तावनाओंका योग है। यह निश्चितरूपसे एक सामाजिक उपज है, जिसकी जड़ें सामाजिक व्यवहारोंमें हैं; जिन्हें व्यावहारिक आशाओं एवं अपेक्षाओंकी पूर्तिद्वारा परीक्षित एवं संशोधित कर लिया जाता है। सभी ज्ञानोंका प्रारम्भ उन इन्द्रियानुभूतियोंमें निहित है, जिनकी विश्वसनीयता मनुष्यके व्यवहारोंमें सिद्ध… Continue reading 11.5 ज्ञानका मूल ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

Exit mobile version