11.4 सत्य ‘सत्य का अर्थ होता है धारणाओं एवं वस्तुगत सचाई की समन्विति। ऐसी समन्विति बहुधा केवल आंशिक एवं प्रायिक (लगभग) ही होती है। हम जिस सत्यताको स्थापित कर सकते हैं, वह सर्वदा सत्यके अन्वेषण एवं अभिव्यंजनके हमारे साधनोंपर अवलम्बित रहती है; परंतु इसीके साथ धारणाओंकी सत्यता, यहाँके अर्थमें आपेक्षिक ही सही, उन वस्तुगत तथ्योंपर… Continue reading 11.4 सत्य ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
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11.2 आदर्शवाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
11.2 आदर्शवाद ‘काल्पनिक धारणाओंका प्रयोग किसी-न-किसी प्रकारकी वस्तुओं अथवा विचारपद्धतियोंकी सुव्यस्थित दृष्टियोंके निरूपणमें ही किया जाता है। ये दृष्टियाँ या विचारपद्धतियाँ समाज-विकासकी विभिन्न अवस्थाओंमें विभिन्न सामाजिक वर्गोंद्वारा आविष्कृत होती हैं। आदर्शविषयक विकास समाजके भौतिक जीवनके विकासपर अवलम्बित है तथा आदर्शादि वर्गविशेषकी रुचियों या स्वार्थोंकी पूर्ति करते हैं, परंतु इसके साथ-ही-साथ यह भी आवश्यक है कि… Continue reading 11.2 आदर्शवाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
11. मार्क्स और ज्ञान – 11.1 मन और शरीर ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
11. मार्क्स और ज्ञान (मार्क्सीय मन या ज्ञानपर विचार) मोरिस कौर्न फोर्थकी ‘दि थ्योरी ऑफ नालेज’ में कहा गया है कि—‘मन शरीरसे विभाज्य नहीं है। मानसिक क्रियाएँ मस्तिष्ककी क्रियाएँ हैं। मस्तिष्क प्राणीके बाह्य जगत्के साथ रहनेवाले जटिलतम सम्बन्धोंका अवयव है। वस्तुओंकी प्रत्ययात्मिका जानकारी (Conscious, awareness) का प्रथम रूप ‘सेंसेशन’ (Sensation) अनुभूति है, जो प्रतिनियत सहज… Continue reading 11. मार्क्स और ज्ञान – 11.1 मन और शरीर ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
10.11 द्वन्द्वन्याय और विकास ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
10.11 द्वन्द्वन्याय और विकास मार्क्सवादी कहते हैं कि ‘जगत् परिवर्तनशील है। विकास परिवर्तनका ही एक प्रकार है। इस परिवर्तनको देखनेके विभिन्न दृष्टिकोण हैं। अतिभौतिकवादी और नैसर्गिकवादीका दृष्टिकोण एक है और द्वन्द्वात्मक भौतिकवादीका दृष्टिकोण और है। लेनिनकी व्याख्यासे इसपर काफी प्रकाश पड़ता है। विकास विरोधियोंका संघर्ष है। विकासकी दो ऐतिहासिक धाराएँ हैं। पहली विकासवृद्धि और ह्रास… Continue reading 10.11 द्वन्द्वन्याय और विकास ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
10.10 व्यवहार और तथ्य ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
10.10 व्यवहार और तथ्य मार्क्सवादी कहते हैं कि ‘भूत पहले या मानस, यह प्रश्न एक दूसरे रूपमें भी जीवनके सामने उठ खड़ा होता है। प्रयोग पहले या सिद्धान्त? व्यवहार पहले या तथ्य? इसका उत्तर हमको जीवनपथमें एक विशिष्ट दिशाकी ओर ले जाता है। इस विषयमें मार्क्सवादी दृष्टिकोण भी अपनी विशेषता रखता है। कुछ लोग कहते… Continue reading 10.10 व्यवहार और तथ्य ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
10.4 वर्गवाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
10.4 वर्गवाद मार्क्सके मतसे ‘भारतमें औद्योगिक विकाससे होनेवाला परिवर्तन यूरोपके प्रभावसे देरमें आरम्भ हुआ, बल्कि अभी शनै:-शनै: हो रहा है और पूरे रूपमें हो भी नहीं पाया, स्त्रियोंकी अवस्थामें भी परिवर्तन अभीतक यहाँ नहीं हो पाया है। जनसाधारण या जमींदार-श्रेणी और पूँजीपति-श्रेणीकी स्त्रियाँ इस देशमें अभीतक उसी अवस्थामें हैं, परंतु मध्यम श्रेणीकी स्त्रियोंकी अवस्थामें—जिनपर आर्थिक… Continue reading 10.4 वर्गवाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
9.15 मार्क्स और धर्म ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
9.15 मार्क्स और धर्म भौतिकवादियोंका कहना है कि ‘सभ्य मनुष्यका विश्वास है कि आध्यात्मिक शक्ति सदा मंगलमय है, लेकिन असभ्य मनुष्यके लिये यह शक्ति निष्ठुर है, इसलिये सदा ही उसको विपत्तिमें डालती रहती है। पत्थर जब गिरकर आदमीको घायल करता है, अचानक पेड़की डाल टूट जाती है, तब यह सब प्रकारके भूतों या पेड़के भूतकी… Continue reading 9.15 मार्क्स और धर्म ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
9.14 उत्पत्तिके साधन और न्याय ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
9.14 उत्पत्तिके साधन और न्याय मार्क्सवादी कहते हैं कि ‘न्याय भी सदा एक-सा नहीं रहता; किंतु उसमें रद्दोबदल होता रहता है। जैसे प्राचीन भारतमें शूद्रोंका विद्या पढ़ना अन्याय और एक पुरुषको दो पत्नियाँ रखना न्याय था। विधवाका सती होना महापुण्य था, परंतु आज वह अपराध है। न्याय क्या है, इसका निर्णय रहता है उन लोगोंके… Continue reading 9.14 उत्पत्तिके साधन और न्याय ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
9.12 श्रेणी और वृत्ति ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
9.12 श्रेणी और वृत्ति मार्क्सवादी कहते हैं कि ‘जीविका पैदा करनेके क्रममें जो मनुष्य जिस स्थानपर है, वही उसकी श्रेणी है। मनुष्य जीविका उपार्जन करनेके ढंगके अनुसार अपने रहन-सहनका ढंग बना लेता है, अतएव जीविकोपार्जनका ढंग बदलनेसे समाजका रूप भी बदल जाता है। समाजमें पैदावारकी दृष्टिसे श्रेणियाँ अपना-अपना स्थान रखती हैं। पैदावारके फल या पैदावारके… Continue reading 9.12 श्रेणी और वृत्ति ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
9.11 समाज—विकासकी कुंजी ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
9.11 समाज—विकासकी कुंजी ‘सोशलिज्म’ का अर्थ है ‘समाजवाद’ और साम्यवादका अर्थ है समाजमें समानता लाना। समाजवादका अभिप्राय यह है कि ‘समाज ही उत्पादन-साधनोंका स्वामी हो। व्यक्तिके स्थानपर समाजका शासन होना ही समाजवाद है।’ फ्रांसके सेंट साइमन और इंग्लैण्डके राबर्ट्स ओबेनने (जिनका जन्म क्रमश: १७६० और १७७१ में हुआ था) पहले-पहल साम्यवादी विचारधारा फैलायी। उनके विचार… Continue reading 9.11 समाज—विकासकी कुंजी ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज