11.10 अनुभव और आत्मा ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
11.10 अनुभव और आत्मा ‘वार्तिकसार’ में संवित्के सम्बन्धमें महत्त्वपूर्ण बातें कही गयी हैं। संवित्का भेद स्वत: नहीं कहा जा सकता। घटसंवित्, पटसंवित् इस रूपसे वेद्यपूर्वक ही संवित्का भेद भासित होता है, अत: संवित्का यह भेद स्वाभाविक नहीं; किंतु घटादि उपाधिके कारण ही प्रतीत होता है। वह सुतरां भ्रम है। इसी प्रकार सम्यक् ज्ञान, संशय एवं […]
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