11.12 ज्ञान और आनन्द ज्ञानके सम्बन्धमें अनेक प्रकारोंकी विप्रतिपत्तियोंके रहते हुए भी ‘अर्थप्रकाश’ को ही ‘ज्ञान’ कहा जा सकता है। मुक्तिमें यद्यपि अर्थ नहीं होता, तथापि जब अर्थ-संसर्ग सम्भव हो, तभी अर्थका प्रकाशक अर्थ ही ज्ञान है। अतएव ‘ज्ञानत्व जाति-विशेष है, साक्षात् व्यवहारजनकत्व ही ज्ञानत्व है, जड-विरोधित्व ही ज्ञानत्व है, जडसे भिन्नत्व ही ज्ञानत्व है,… Continue reading 11.12 ज्ञान और आनन्द ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
