2. रामराज्यका स्वरूप ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

“‘रामराज्य’ शासन एवं प्रशासनका परम आदर्शस्वरूप है। धर्म एवं ईश्वरभक्ति—ये रामराज्यके प्राण हैं। शासनकी सुव्यवस्था, प्रजाकी सुखमयता और सम्पन्नता, अनुशासन एवं सदाचार—ये रामराज्यरूपी शरीरके अवयव हैं।”,
“रामराज्यके स्वरूपका वर्णन वाल्मीकीय रामायण, अध्यात्मरामायण, आनन्दरामायण, पुराणों एवं श्रीरामचरितमानस आदिमें विस्तृत रूपसे उपलब्ध होता है। उसका कुछ अंश यहाँ साररूपमें प्रस्तुत किया जा रहा है—”,
“(क) अध्यात्मरामायण”,
“राघवे शासति भुवं लोकनाथे रमापतौ।”,
“वसुधा सस्यसम्पन्ना फलवन्तश्च भूरुहा:॥”,
“जना धर्मपरा: सर्वे पतिभक्तिपरा: स्त्रिय:।”,
“नापश्यत् पुत्रमरणं कश्चिद्राजनि राघवे॥”,
“त्रिलोकीनाथ लक्ष्मीपति भगवान् रामके शासनकालमें पृथिवी धन-धान्यसे पूर्ण और वृक्ष फलादिसे सम्पन्न थे। श्रीरघुनाथजीके राज्यमें समस्त पुरुष धर्मपरायण थे, स्त्रियाँ पति-सेवामें तत्पर रहती थीं और किसीको भी अपने पुत्रका मरण नहीं देखना पड़ता था।”,
“(ख) आनन्दरामायण”,
“रामराज्ये सदानन्द: सर्वानासीज्जनान् भुवि।”,
“नासीत् कुत्रापि कलहश्चौर्यं निन्दाभयं तदा॥”,
“राज्यमासीदसापत्नं समृद्धबलवाहनम्।”,
“ऋषिभिर्हृष्टपुष्टैश्च रम्यं हाटकभूषणै:॥”,
“सञ्जुष्टमिष्टापूर्तानां धर्माणां नित्यकर्तृभि:।”,
“सदा सम्पन्नशस्यं च सुचिरं क्षेत्रसङ्कुलम्॥”,
“सुदेशं सुप्रजं सुस्थं सुतृणं बहुगोधनम्।”,
“देवतायतनानां च राजिभि: परिराजितम्॥”,
“रामचन्द्रजीके राज्यमें संसारके सब लोगोंको सदा आनन्द रहता था। उस समय न कहीं चोरी होती, न लड़ाई-झगड़ा होता, न कोई किसीकी निन्दा करता और न कोई किसीसे डरता था। राज्य भी उस समय शत्रुओंसे रहित और विविध प्रकारके वाहन तथा सेनासे परिपूर्ण था। रामराज्यमें प्रजाजन हृष्ट-पुष्ट, ज्ञानी और सोने-चाँदीके गहनोंसे लदे रहते थे। इष्ट-आपूर्त आदि धार्मिक कृत्य होते रहते थे और सारे खेत धान्यसे परिपूर्ण रहा करते थे। भाव यह है कि उस समय समस्त देश सुन्दर था, प्रजा अच्छी थी और रहन-सहन उत्तम था। गौओंके चरनेको सुन्दर घास उपजती थी। गोधनकी अधिकता थी। सारा देश देवालयोंसे भरा पड़ा था।”,
“धर्मेण राजा धर्मज्ञ: सीताराम: प्रतापवान्।”,
“चकार राज्यं निर्द्वन्द्वमयोध्यायां सुनिश्चलम्॥”,
“स धर्मराजवद् राजा धर्माधर्मविवेचक:।”,
“अदण्डॺेऽदण्डयन् रामो दण्डॺांश्च परिदण्डयन्॥”,
“तताप सूर्य इव स दुर्हृदां हृदि नेत्रयो:।”,
“सोमवत् सुहृदामासीन्मानसेषु स्वकेष्वपि॥”,
“हृष्टपुष्टा: प्रजा: सर्वा: फलवन्तोऽभवन्नगा:।”,
“आसन् सदा सुकुसुमैर्विनम्रा: सौख्यदा नृणाम्॥”,
“एकपत्नीव्रता: सर्वे पुमांसस्तस्य मण्डले।”,
“नारीषु काचिन्नैवासीदपतिव्रतधर्मिणी॥”,
“एवं तद्रामराज्यं हि महामङ्गलसंयुतम्।”,
“आसीदनुपमेयं च श्रवणान्मङ्गलप्रदम्॥”,
“धर्मका तत्त्व जाननेवाले प्रतापशाली श्रीसीतासहित रामचन्द्रजीने अविचल एवं निर्द्वन्द्वभावसे धर्मपूर्वक राज्य किया। महाराज रामचन्द्रजी धर्मराजकी तरह भलीभाँति धर्म-अधर्मकी विवेचना करके काम करते थे। जो दण्डके योग्य नहीं होता था, उसे दण्ड नहीं देते थे। वे शत्रुओंके हृदय तथा नेत्रोंमें सदा सूर्यकी भाँति तपते थे और स्वजनों एवं मित्रोंके हृदयमें चन्द्रमाकी तरह ठंडक पहुँचाते थे। रामके शासनकालमें अयोध्याकी प्रजा हृष्ट-पुष्ट रहती थी और वृक्ष फल-फूलसे लदे रहनेके कारण झुके रहते तथा वे मनुष्योंको सुखी रखते थे। उनके राज्यमें सभी पुरुष एकपत्नीव्रती थे और स्त्रियोंमें भी कोई ऐसी नहीं थी, जो अपने पातिव्रतधर्मका पालन न करती रही हो। इस प्रकार वह रामका राज्य महामंगलमय, अनुपमेय और नाममात्र सुननेसे ही महामंगलदायक था।”,
“(ग) स्कन्दपुराण”,
“रामराज्ये तदा लोका हर्षनिर्भरमानसा:।”,
“बभूवुर्धनधान्याढॺा: पुत्रपौत्रयुता नरा:॥”,
“कामवर्षी च पर्जन्य: सस्यानि गुणवन्ति च।”,
“गावस्तु घटदोहिन्य: पादपाश्च सदाफला:॥”,
“नाधयो व्याधयश्चैव रामराज्ये नराधिप।”,
“नार्य: पतिव्रताश्चासन् पितृभक्तिपरा नरा:॥”,
“द्विजा वेदपरा नित्यं क्षत्रिया द्विजसेविन:।”,
“कुर्वते वैश्यवर्णाश्च भक्तिं द्विजगवां सदा॥”,
“न योनिसङ्करश्चासीत् तत्र नाचारसङ्कर:।”,
“न वन्ध्या दुर्भगा नारी काकवन्ध्या मृतप्रजा॥”,
“विधवा नैव काप्यासील्लप्यते न सभर्तृका।”,
“नावज्ञां कुर्वते केऽपि मातापित्रोर्गुरोस्तथा॥”,
“उस समय श्रीरामके राज्यमें सब लोगोंका मन हर्षोत्फुल्ल रहता था। धन-धान्यसे सब सम्पन्न थे और सभी लोगोंके पुत्र-पौत्र थे। बादल इच्छानुसार जलवर्षा करते थे। अन्न बहुत गुणवान् होता था। गायें पूरा घड़ाभर दूध देती थीं। वृक्ष सभी ऋतुओंमें फले रहते थे। श्रीरामके राज्यमें न किसीको कोई शारीरिक रोग होता था, न मानसिक चिन्ता। स्त्रियाँ पतिव्रता थीं और पुरुष पितृभक्त थे। ब्राह्मण सदा वेदाध्ययनमें तत्पर रहते थे, क्षत्रिय ब्राह्मणसेवी थे; तथा वैश्य सदा गौ-ब्राह्मणोंकी भक्ति करते थे। उस रामराज्यमें वर्णसंकर संतान नहीं उत्पन्न होती थी और न कर्मोंका ही संकर था। कोई स्त्री वन्ध्या, केवल एक संतान उत्पन्न करनेवाली, अभागिनी या जिसकी संतान होते ही मर जाय, ऐसी नहीं थी। कोई स्त्री विधवा नहीं थी। सधवा स्त्रीको कभी विलाप नहीं करना पड़ता था। कोई भी उस समय माता, पिता एवं गुरुजनोंका अनादर नहीं करता था।”,
“न च वाक्यं हि वृद्धानामुल्लङ्घयति पुण्यकृत्।”,
“न भूमिहरणं तत्र परनारीपराङ्मुखा:॥”,
“नापवादपरो लोको न दरिद्रो न रोगवान्।”,
“न स्तेयो द्यूतकारी च मैरेयी पापिनो न हि॥”,
“न हेमहारी ब्रह्मघ्नो न चैव गुरुतल्पग:।”,
“न स्त्रीघ्नो न च बालघ्नो न चैवानृतभाषण:॥”,
“न वृत्तिलोपकश्चासीत् कूटसाक्षी न चैव हि।”,
“न शठो न कृतघ्नश्च मलिनो नैव दृश्यते॥”,
“सदा सर्वत्र पूज्यन्ते ब्राह्मणा वेदपारगा:।”,
“नावैष्णवोऽव्रती राजन् रामराज्येऽतिविश्रुते॥”,
“कोई भी वृद्धों (अपनेसे बड़ों)-की बातका उल्लंघन नहीं करता था। सब पुण्यकर्मा थे। कोई किसीकी भूमि नहीं छीनता था। सभी पर-स्त्रीसे विमुख रहते थे। [रामराज्यमें] लोग किसीकी निन्दा नहीं करते थे। न कोई दरिद्र था, न रोगी। कोई चोर नहीं था, जुआरी कोई नहीं था, कोई शराबी नहीं था। कोई भी पापी नहीं था। [स्वर्णकारों तथा अन्योंमें] कोई स्वर्णचोर नहीं था, ब्रह्महत्यारा कोई नहीं था, गुरुकी पत्नीसे कोई कदाचार नहीं करता था। न कोई स्त्रीहन्ता था, न बाल-हत्यारा और न कोई झूठ बोलनेवाला था। कोई किसीकी जीविकाका नाश नहीं करता था। कोई झूठी गवाही नहीं देता था। कोई दुष्ट, कृतघ्न या मलिन रामराज्यमें दिखता ही नहीं था। उस अत्यन्त प्रसिद्ध रामराज्यमें वेदोंके पारंगत ब्राह्मण सर्वदा सर्वत्र पूजे जाते थे। पूरे राज्यमें कोई ऐसा नहीं था, जो भगवद्भक्त न हो अथवा व्रत (संयम-नियम)-का पालन न करता हो।”,
“(घ) श्रीरामचरितमानस”,
“राम राज बैठें त्रैलोका।”,
“हरषित भए गए सब सोका॥”,
“बयरु न कर काहू सन कोई।”,
“राम प्रताप बिषमता खोई॥”,
“श्रीरामचन्द्रजीके राज्यपर प्रतिष्ठित होनेपर तीनों लोक हर्षित हो गये, उनके सारे शोक जाते रहे। कोई किसीसे वैर नहीं करता। श्रीरामचन्द्रजीके प्रतापसे सबकी विषमता (आन्तरिक भेदभाव) मिट गयी।”,
“बरनाश्रम निज निज धरम निरत बेद पथ लोग।”,
“चलहिं सदा पावहिं सुखहि नहिं भय सोक न रोग॥”,
“सब लोग अपने-अपने वर्ण और आश्रमके अनुकूल धर्ममें तत्पर हुए सदा वेद-मार्गपर चलते हैं और सुख पाते हैं। उन्हें न किसी बातका भय है, न शोक है और न कोई रोग ही सताता है।”,
“दैहिक दैविक भौतिक तापा।”,
“राम राज नहिं काहुहि ब्यापा॥”,
“सब नर करहिं परस्पर प्रीती।”,
“चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥”,
“चारिउ चरन धर्म जग माहीं।”,
“पूरि रहा सपनेहुँ अघ नाहीं॥”,
“राम भगति रत नर अरु नारी।”,
“सकल परम गति के अधिकारी॥”,
“अल्पमृत्यु नहिं कवनिउ पीरा।”,
“सब सुंदर सब बिरुज सरीरा॥”,
“नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना।”,
“नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना॥”,
“सब निर्दंभ धर्मरत पुनी।”,
“नर अरु नारि चतुर सब गुनी॥”,
“सब गुनग्य पंडित सब ग्यानी।”,
“सब कृतग्य नहिं कपट सयानी॥”,
“‘रामराज्य’ में दैहिक, दैविक और भौतिक ताप किसीको नहीं व्यापते। सब मनुष्य परस्पर प्रेम करते हैं और वेदोंमें बतायी हुई नीति (मर्यादा)-में तत्पर रहकर अपने-अपने धर्मका पालन करते हैं। धर्म अपने चारों चरणों (सत्य, शौच, दया और दान)-से जगत‍्में परिपूर्ण हो रहा है; स्वप्नमें भी कहीं पाप नहीं है। पुरुष और स्त्री सभी रामभक्तिके परायण हैं और सभी परमगति (मोक्ष)-के अधिकारी हैं। छोटी अवस्थामें मृत्यु नहीं होती, न किसीको कोई पीड़ा होती है। सभीके शरीर सुन्दर और नीरोग हैं। न कोई दरिद्र है, न दुखी है और न दीन ही है। न कोई मूर्ख है और न शुभ लक्षणोंसे हीन ही है। सभी दम्भरहित हैं, धर्मपरायण हैं और पुण्यात्मा हैं। पुरुष और स्त्री सभी चतुर और गुणवान् हैं। सभी गुणोंका आदर करनेवाले और पण्डित हैं तथा सभी ज्ञानी हैं। सभी कृतज्ञ (दूसरेके किये हुए उपकारको माननेवाले) हैं, कपट-चतुराई (धूर्तता) किसीमें नहीं है।”,
“सब उदार सब पर उपकारी।”,
“बिप्र चरन सेवक नर नारी॥”,
“एकनारि ब्रत रत सब झारी।”,
“ते मन बच क्रम पति हितकारी॥”,
“सभी नर-नारी उदार हैं, सभी परोपकारी हैं और सभी ब्राह्मणोंके चरणोंके सेवक हैं। सभी पुरुषमात्र एकपत्नीव्रती हैं। इसी प्रकार स्त्रियाँ भी मन, वचन और कर्मसे पतिका हित करनेवाली हैं।”,
“हरषित रहहिं नगर के लोगा।”,
“करहिं सकल सुर दुर्लभ भोगा॥”,
“अहनिसि बिधिहि मनावत रहहीं।”,
“श्रीरघुबीर चरन रति चहहीं॥”,
“नगरके लोग हर्षित रहते हैं और सब प्रकारके देवदुर्लभ (देवताओंको भी कठिनतासे प्राप्त होनेयोग्य) भोग भोगते हैं। वे दिन-रात ब्रह्माजीको मनाते रहते हैं और [उनसे] श्रीरघुवीरके चरणोंमें प्रीति चाहते हैं।”,
“सबकें गृह गृह होहिं पुराना।”,
“राम चरित पावन बिधि नाना॥”,
“नर अरु नारि राम गुन गानहिं।”,
“करहिं दिवस निसि जात न जानहिं॥”,
“सबके यहाँ घर-घरमें पुराणों और अनेक प्रकारके पवित्र रामचरित्रोंकी कथा होती है। पुरुष और स्त्री सभी श्रीरामचन्द्रजीका गुणगान करते हैं और इस आनन्दमें दिन-रातका बीतना भी नहीं जान पाते।”,
“अवधपुरी बासिन्ह कर सुख संपदा समाज।”,
“सहस सेष नहिं कहि सकहिं जहँ नृप राम बिराज॥”,
“जहाँ भगवान् श्रीरामचन्द्रजी स्वयं राजा होकर विराजमान हैं, उस अवधपुरीके निवासियोंके सुख-सम्पत्तिके समुदायका वर्णन हजारों शेषजी भी नहीं कर सकते।”,

श्रोत: मार्क्सवाद और रामराज्य, लेखक: श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज, गीता सेवा ट्रस्ट
निवेदन : मूल पुस्तक क्रय कर स्वयं की तथा प्रकाशक की सहायता करें

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