July 2025

11.4 सत्य ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

11.4 सत्य ‘सत्य का अर्थ होता है धारणाओं एवं वस्तुगत सचाई की समन्विति। ऐसी समन्विति बहुधा केवल आंशिक एवं प्रायिक (लगभग) ही होती है। हम जिस सत्यताको स्थापित कर सकते हैं, वह सर्वदा सत्यके अन्वेषण एवं अभिव्यंजनके हमारे साधनोंपर अवलम्बित रहती है; परंतु इसीके साथ धारणाओंकी सत्यता, यहाँके अर्थमें आपेक्षिक ही सही, उन वस्तुगत तथ्योंपर […]

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11.3 विज्ञान एवं समाजवाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

11.3 विज्ञान एवं समाजवाद ‘बोर्जिआई विज्ञानने जहाँ महान् वैज्ञानिक उन्नतियाँ प्राप्त की हैं, वहीं पूँजीवादी सम्बन्धोंने विज्ञानोंके विकासपर बन्धन (सीमाएँ) लगा दिये। समाजवादके अधीन जहाँ विज्ञानका जनताकी सेवाके लिये विकास किया जाता है, ये बन्धन दूर कर दिये जाते हैं। विशेषत: समाजवादके लिये मजदूरवर्गके संघर्षके उदयके साथ समाजविज्ञान स्थापित हुआ है। समाजवादी समाजमें पुरानी आदर्शवादी

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11.2 आदर्शवाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

11.2 आदर्शवाद ‘काल्पनिक धारणाओंका प्रयोग किसी-न-किसी प्रकारकी वस्तुओं अथवा विचारपद्धतियोंकी सुव्यस्थित दृष्टियोंके निरूपणमें ही किया जाता है। ये दृष्टियाँ या विचारपद्धतियाँ समाज-विकासकी विभिन्न अवस्थाओंमें विभिन्न सामाजिक वर्गोंद्वारा आविष्कृत होती हैं। आदर्शविषयक विकास समाजके भौतिक जीवनके विकासपर अवलम्बित है तथा आदर्शादि वर्गविशेषकी रुचियों या स्वार्थोंकी पूर्ति करते हैं, परंतु इसके साथ-ही-साथ यह भी आवश्यक है कि

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11. मार्क्स और ज्ञान – 11.1 मन और शरीर ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

11. मार्क्स और ज्ञान (मार्क्सीय मन या ज्ञानपर विचार) मोरिस कौर्न फोर्थकी ‘दि थ्योरी ऑफ नालेज’ में कहा गया है कि—‘मन शरीरसे विभाज्य नहीं है। मानसिक क्रियाएँ मस्तिष्ककी क्रियाएँ हैं। मस्तिष्क प्राणीके बाह्य जगत‍्के साथ रहनेवाले जटिलतम सम्बन्धोंका अवयव है। वस्तुओंकी प्रत्ययात्मिका जानकारी (Conscious, awareness) का प्रथम रूप ‘सेंसेशन’ (Sensation) अनुभूति है, जो प्रतिनियत सहज

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