2025

10.5 व्यभिचारका उन्मूलन ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

10.5 व्यभिचारका उन्मूलन मार्क्स लिखता है कि ‘हम स्त्रीको पुरुषकी सम्पत्ति बनाने और धर्मके भयसे जकड़ देनेके पक्षमें नहीं हैं। यह भी हमें स्वीकार नहीं है कि संतान उत्पन्न करनेके लिये किसी स्त्रीका एक पुरुष-विशेषकी दासी या सम्पत्ति बन जाना जरूरी है। वह स्त्री-पुरुषके सम्बन्धको स्त्री-पुरुषकी शारीरिक आवश्यकताका सम्बन्ध मानता है; परंतु इसके लिये वह […]

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10.4 वर्गवाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

10.4 वर्गवाद मार्क्सके मतसे ‘भारतमें औद्योगिक विकाससे होनेवाला परिवर्तन यूरोपके प्रभावसे देरमें आरम्भ हुआ, बल्कि अभी शनै:-शनै: हो रहा है और पूरे रूपमें हो भी नहीं पाया, स्त्रियोंकी अवस्थामें भी परिवर्तन अभीतक यहाँ नहीं हो पाया है। जनसाधारण या जमींदार-श्रेणी और पूँजीपति-श्रेणीकी स्त्रियाँ इस देशमें अभीतक उसी अवस्थामें हैं, परंतु मध्यम श्रेणीकी स्त्रियोंकी अवस्थामें—जिनपर आर्थिक

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10.3 अर्थमूलक समाजमें सामाजिक सम्बन्ध ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

10.3 अर्थमूलक समाजमें सामाजिक सम्बन्ध मार्क्सवादी सभी सम्बन्धोंकी धार्मिकता एवं परम्परामूलकताका नष्ट हो जाना आवश्यक मानते हैं। उनकी दृष्टिमें ‘सब सम्बन्ध जब अर्थमूलक हो जायँगे, तब पति-पत्नी, पिता-पुत्र, भाई-बहन, शिक्षक-शिष्यका अर्थमूलक सीधा संघर्ष हो सकेगा। किसी परम्पराकी ओटमें संघर्षके कारणको छिपाया न जा सकेगा। सीधा संघर्ष क्रान्तिके अनुकूल ही होगा’, परंतु जिन्हें कुटुम्ब, समाज, धर्म,

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10.2 पातिव्रत-धर्म ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

10.2 पातिव्रत-धर्म मार्क्सके अनुसार ‘पातिव्रत-धर्म’ केवल व्यक्तिगत सम्पत्तिके आधारपर ही बना है। व्यक्तिगत सम्पत्तिके आधारपर बना हुआ समाज तहस-नहस न हो जाय, इसीलिये एक ही पुरुषके साथ सम्बन्ध रखनेके लिये स्त्रीको समझा-बुझाकर राजी किया गया। तदनुसार ही धर्म, नीति, रिवाज गढ़े गये। स्त्रीकी स्वतन्त्रतासे धर्म और भगवान‍्के नाराज होनेका डर दिखलाया गया। ठीक ही है;

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10. मार्क्सीय समाज-व्यवस्था – 10.1 पूँजीवादी युग और स्त्री ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

10. मार्क्सीय समाज-व्यवस्था मार्क्सके अनुसार ‘समाज’ व्यक्तियों और परिवारोंका समूह है। समाजकी व्यवस्थामें आनेवाला कोई भी परिवर्तन व्यक्तियों और परिवारोंपर प्रभाव डाले बिना नहीं रह सकता। परिवार—स्त्री-पुरुषका सम्बन्ध समाजका केन्द्र है। समाजकी आर्थिक अवस्था मनुष्योंको जिस अवस्थामें रहनेके लिये मजबूर करती है, उसी ढंगपर मनुष्य परिवारको बना लेता है। कुछ देशोंमें बहुत बड़े-बड़े सम्मिलित परिवार

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9.15 मार्क्स और धर्म ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

9.15 मार्क्स और धर्म भौतिकवादियोंका कहना है कि ‘सभ्य मनुष्यका विश्वास है कि आध्यात्मिक शक्ति सदा मंगलमय है, लेकिन असभ्य मनुष्यके लिये यह शक्ति निष्ठुर है, इसलिये सदा ही उसको विपत्तिमें डालती रहती है। पत्थर जब गिरकर आदमीको घायल करता है, अचानक पेड़की डाल टूट जाती है, तब यह सब प्रकारके भूतों या पेड़के भूतकी

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9.14 उत्पत्तिके साधन और न्याय ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

9.14 उत्पत्तिके साधन और न्याय मार्क्सवादी कहते हैं कि ‘न्याय भी सदा एक-सा नहीं रहता; किंतु उसमें रद्दोबदल होता रहता है। जैसे प्राचीन भारतमें शूद्रोंका विद्या पढ़ना अन्याय और एक पुरुषको दो पत्नियाँ रखना न्याय था। विधवाका सती होना महापुण्य था, परंतु आज वह अपराध है। न्याय क्या है, इसका निर्णय रहता है उन लोगोंके

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9.13 धर्म और अर्थ ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

9.13 धर्म और अर्थ मार्क्सवादी कहते हैं कि धर्म, प्रेम या परोपकारके नामपर सर्वस्व लुटा देने या प्राण न्योछावर कर देनेका भी आधार आर्थिक ही है; क्योंकि सब कुछ सन्तोष-तृप्तिके लिये ही किया जाता है। अन्यायके विरोधमें आत्मबलिदान करता हुआ भी प्राणी सब कुछ स्वार्थके उद्देश्यसे करता है, परंतु यहाँ स्वार्थका अर्थ व्यक्ति न समझकर

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9.12 श्रेणी और वृत्ति ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

9.12 श्रेणी और वृत्ति मार्क्सवादी कहते हैं कि ‘जीविका पैदा करनेके क्रममें जो मनुष्य जिस स्थानपर है, वही उसकी श्रेणी है। मनुष्य जीविका उपार्जन करनेके ढंगके अनुसार अपने रहन-सहनका ढंग बना लेता है, अतएव जीविकोपार्जनका ढंग बदलनेसे समाजका रूप भी बदल जाता है। समाजमें पैदावारकी दृष्टिसे श्रेणियाँ अपना-अपना स्थान रखती हैं। पैदावारके फल या पैदावारके

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9.11 समाज—विकासकी कुंजी ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

9.11 समाज—विकासकी कुंजी ‘सोशलिज्म’ का अर्थ है ‘समाजवाद’ और साम्यवादका अर्थ है समाजमें समानता लाना। समाजवादका अभिप्राय यह है कि ‘समाज ही उत्पादन-साधनोंका स्वामी हो। व्यक्तिके स्थानपर समाजका शासन होना ही समाजवाद है।’ फ्रांसके सेंट साइमन और इंग्लैण्डके राबर्ट्स ओबेनने (जिनका जन्म क्रमश: १७६० और १७७१ में हुआ था) पहले-पहल साम्यवादी विचारधारा फैलायी। उनके विचार

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