सरयूपारीण ब्राह्मणों में ‘घर’
सरयूपारीण ब्राह्मणों में प्रत्येक गोत्र वाले तथा एक स्थान पर रहने वाले औ परिवार वृद्धि आदि कारणों से अलग दूर जा कर बस जाने वाले ब्राह्मण अपने सगोत्रियों को अपना एक कुटुम्ब मानते हैं। वे उसको ‘घर’ कहते हैं। आप के वर पर कितने घर हैं? आप किस घर के हैं? ऐसा प्रश्न परस्पर पूछा जाता है। जैसे मामखोर से अलग जा कर कनइल, करंजही, खखाइजखोर, बकरुआ, रुदाइन आदि १५ स्थानों पर बसे १५ एक घर, के हैं। उनमें से कोई अन्यत्र जा कर ‘जहाँ बसेंगे वे अपने-अपने परिवार विस्तार को अपना घर कहेंगे। प्रत्येक मूल घर की कुछ विशेष परम्परा और रीति रिवाज होते हैं जिनसे उस घर की पहिचान होती है। जैसे किसी घर में यह रिवाज है कि लड़के के विवाह में पड़ने वाला लावा लड़की की बुआ धान मैगा कर घर में भूनती है। बाजार से लावा नहीं मँगाया जाता।
तीन और तेरह घर पहले तो घरों का विभाजन मूल गोत्रों के कुछ ब्राह्मणों शुक्ल, मिश्र औदि के अनुसार हुआ। इन गोत्रों के ब्राह्मणों में से जिन ब्राह्मण वंशों के ब्राह्मण अधिक आचार-विचारवान, त्यागी, तपस्वी और विद्वान पाये गये, उनको चुना गया। उनमें से तीन और तेरह घर अलग बनाये गये। वे इस प्रकार हैं-
तीन घर
१. गर्ग गोत्र में मामखोर शुक्ल
२. गौतम गोत्र में मधुबनी मिश्र
३. शाण्डिल्य गोत्र में सोहगौरा त्रिपाठी।
तेरह घर
१. सावर्णि गोत्र में इटारि पाण्डेय
२. गर्ग गोत्र में इटिया पाण्डेय
३. कश्यप गोत्र में त्रिफला पाण्डेय
४. वत्स गोत्र में नागचौरी पाण्डेय
५. कश्यप गोत्र में राल्ही मिश्र
६. शाण्डिल्य गोत्र में पाला त्रिपाठी
७. शाण्डिल्य गोत्र में पिंडी त्रिपाठी
८. घृतकौशिक गोत्र में धर्मपुर मिश्र
९. वत्स गोत्र में पयासी मिश्र
१०. संकृति गोत्र में मलाँव (मलैया) पाण्डेय
११. गौतम गोत्र में कांचनी गुरुदुवान द्विवेदी
१२. भरद्वाज गोत्र में बड़गों (बृहद्माम) द्विवेदी
१३. भरद्वाज गोत्र में सरारि द्विवेदी।
इस प्रकार पाण्डेय में ५, त्रिपाठी में २, मिश्र में ३ और द्विवेदी में से ३ मिल कर १३ घर होते हैं। उस समय की त्याग तपस्या, आचार विचार, विद्वत्ता और ब्रहाज्ञान अब परिस्थिति वश न तीन में रह गया और न तेरह में। जीविका वश सब व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो गयी है। कुछ पुरानी परम्परा के लोग ही बचे हैं। यह स्मरण रखना चाहिये कि इस प्रकार का चयन ब्राह्मणों में ऊँच-नीच या छोटा-बड़ा दिखाने के लिए नहीं था। केवल तत्कालीन समाज की स्थिति का सूचक था। गर्ग, गौतम और शाण्डिल्य गोत्रीय ब्राह्मण तीन में और शेष गोत्र (कुण्डिन को छोड़ कर) तेरह घर में हैं। ऐसा कुछ ब्राह्मण मानते है किन्तु यह गलत है क्योंकि अनेक गर्ग, गौतम और शाण्डिल्य गोत्रीय ऐसे ब्राह्मण हैं जिनकी समाज में कुछ भी मान्यता नहीं है।
१. ख्याता पयासी च सरारि चौरी बृहद्ग्राम धर्माश्च कांचनी। माला च पाला त्रिफला च पिंडी राल्हीटियेटारि त्रयोदशामी।
श्रोत: हरिदास संस्कृत सीरीज ३६१, लेखक: पं. द्वारकाप्रसाद मिश्र , शास्त्री , चौखम्भा संस्कृत सीरीज ऑफिस , वाराणसी
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