“यथेमां वाचं कल्याणीम्” ~ श्रीसनातनधर्मलोक भाग – ३ ~ लेखक – पं. दीनानाथशर्मी शास्त्री सारस्वतः, विधावाचपत्ति; । ~ (“एक विद्यालङ्कार”) ~ भाग ११
(“एक विद्यालङ्कार”) (५) (क) हमारे ‘यथेमां वाचं’ के अर्थ पर “एक विद्यालङ्कार” जी ‘सार्वदेशिक (सितम्बर १९४६ के अंक) में लिखते हैं- ‘यथेमां वाचं’ का ईश्वरपरक अर्थ मानने से स्वामी दयानन्द सरस्वती के मतानुसार अनेक दोष आते हैं-ऐसा शास्त्रीजी ने बड़े गर्जन-तर्जन पूर्वक फरमाया है, किन्तु उनके सम्पूर्ण दोषों का इतने से ही समाधान हो जाता […]