अत्रि

महर्षि अत्रि एवं अनसूया की शिवोपासना

दक्षिण दिशा में चित्रकूट पर्वत के समीप परम पावन कामद नाम का एक वन था। ब्रह्माजी के मानसपुत्र महर्षि अत्रि अपनी परम पतिव्रता पत्नी अनसूया के साथ उसी वन में निवास करते हुए भगवान् महेश्वर की आराधना में अपने समय का सदुपयोग कर रहे थे। एक बार ऐसा हुआ कि सौ वर्षों तक बिलकुल ही […]

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सरयूपारीण ब्राह्मणों’ का इतिहास (वंशावली, गोत्रावली और आस्पद नामावली सहित) – १०

गोत्र ‘गोत्र’ शब्द के कई अर्थ होते हैं। किसी व्यक्ति के गोत्र से तात्पर्य उस व्यक्ति के आदि पुरुष से होता है जो कि उस वंश का प्रवर्तक होता है। सबसे प्रथम वैदिक काल में जो ऋषि हुये उनके वंश का विस्तार आगे होता रहा। उस वंश के लोग अन्य लोगों से अलगाव रखने के

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सरयूपारीण ब्राह्मणों’ का इतिहास (वंशावली, गोत्रावली और आस्पद नामावली सहित) – ६

सरयूपारीण ब्राह्मण वंश में परिवर्तन किसी दूसरे गोत्र के ब्राह्मण की गद्दी (राशि) पर जाने पर वंश में परिवर्तन हो जाता है। जैसे- शांडिल्य गोत्रीय पोहिला तिवारी की गद्दी पर जाने पर वत्स गोत्रीय श्रीधर मिश्र का गोत्र तो वही रहा किन्तु अब वे वत्स गोत्र पोहिला तिवारी हो गये। इसी प्रकार इंटिया पाण्डेय का

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