एकसत्तावाद

10.5 व्यभिचारका उन्मूलन ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

10.5 व्यभिचारका उन्मूलन मार्क्स लिखता है कि ‘हम स्त्रीको पुरुषकी सम्पत्ति बनाने और धर्मके भयसे जकड़ देनेके पक्षमें नहीं हैं। यह भी हमें स्वीकार नहीं है कि संतान उत्पन्न करनेके लिये किसी स्त्रीका एक पुरुष-विशेषकी दासी या सम्पत्ति बन जाना जरूरी है। वह स्त्री-पुरुषके सम्बन्धको स्त्री-पुरुषकी शारीरिक आवश्यकताका सम्बन्ध मानता है; परंतु इसके लिये वह […]

10.5 व्यभिचारका उन्मूलन ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज Read More »

9.5 अतिभौतिकवाद और द्वन्द्वमान ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

9.5 अतिभौतिकवाद और द्वन्द्वमान अतिभौतिकवादी विचारमें—‘प्रकृति वस्तुओं और दृश्यगत घटनाओंका एक आकस्मिक बटोर है, जहाँ वे एक-दूसरेसे विच्छिन्न तथा स्वतन्त्र हैं।’ इसके विपरीत द्वन्द्वमान इन वस्तुओं और दृश्यमान घटनाओंको एक सूत्रमें बाँधता है, जिसमें उनकी पारस्परिक निर्भरता प्रकाश पाती है। इसलिये द्वन्द्वमानके अनुसार किसी प्राकृतिक घटनाको स्वतन्त्ररूपसे, अपने बहिरावेष्टनसे अलगकर नहीं समझा जा सकता; क्योंकि

9.5 अतिभौतिकवाद और द्वन्द्वमान ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज Read More »

9.3 प्रतिषेधका प्रतिषेध ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

9.3 प्रतिषेधका प्रतिषेध इसी तरह प्रतिषेधके प्रतिषेधका उदाहरण मार्क्सवादी उपस्थित करते हैं कि ‘यदि यवका एक दाना जमीनमें डाला जाय तो गर्मी और नमीके प्रभावसे इसमें एक विशेष परिवर्तन होता है। इसमेंसे पौधा उगने लगता है। उस दानेके अस्तित्वका अन्त हो जाता है। उसका प्रतिषेध हो जाता है। उसके स्थानपर जो पौधा उगता है, वह

9.3 प्रतिषेधका प्रतिषेध ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज Read More »

9. मार्क्स-दर्शन – 9.1 वैज्ञानिक द्वन्द्ववाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

9. मार्क्स-दर्शन मार्क्स प्रयोग तथा अनुभवद्वारा प्राप्त ज्ञानको ही वास्तविक ज्ञान मानता है। ‘डाइलेक्टिस’ (द्वन्द्वमान)-की चर्चा हम पहले कर आये हैं। यह एक यूनानी शब्द है, जिसका अर्थ है दो मनुष्योंका वार्तालाप। इसमें एक तर्ककी स्थापना की जाती है, फिर उसका खण्डन होता है, जिससे नये तर्ककी उत्थापना होती है। इस प्रकार एक नीचे दर्जेके

9. मार्क्स-दर्शन – 9.1 वैज्ञानिक द्वन्द्ववाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज Read More »

8.3 भौतिकवादी व्याख्या ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

8.3 भौतिकवादी व्याख्या कहा जाता है कि हीगेलके ऐतिहासिक आदर्शवादके मुकाबलेमें ही मार्क्सने अपनी प्रणालीका नाम ‘ऐतिहासिक भौतिकवाद’ रखा था। इस प्रणालीद्वारा मार्क्स विभिन्न परिवर्तनों, क्रान्तियों एवं मानसिक, सामाजिक घटनाओंको उत्पन्न करनेवाले मूलस्रोतोंका पता लगाना चाहता था, इसलिये इतिहास-संचालन करनेवाले नियमोंका उसने पता लगाया। उसका कहना था—‘मनुष्योंके विवेक एवं विचारोंमें परिवर्तन करनेवाली तथा विभिन्न सामाजिक

8.3 भौतिकवादी व्याख्या ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज Read More »

8. ऐतिहासिक भौतिकवाद – 8.1 इतिहास क्या है? ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

मार्क्सके ऐतिहासिक भौतिकवादपर विचार करनेके पूर्व यह समझना आवश्यक है कि ‘इतिहास’ है क्या? यूनानी भाषामें इतिहास (हिस्ट्री)-का अर्थ जिज्ञासा होता है। मुसलमानोंमें शिक्षापूर्ण उच्च आदर्शका वर्णन ही इतिहास समझा जाता था। फ्रांसके प्रसिद्ध लेखक वाल्टेयरके अनुसार मनुष्यकी मानसिक शक्तिका वर्णन ही इतिहास है, छोटी-छोटी घटनाओंका वर्णन इतिहास नहीं। उसके अनुसार शासकोंका वर्णन भी इतिहास

8. ऐतिहासिक भौतिकवाद – 8.1 इतिहास क्या है? ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज Read More »

7.23 अन्ताराष्ट्रिय क्षेत्रमें पूँजीवाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.23 अन्ताराष्ट्रिय क्षेत्रमें पूँजीवाद मार्क्सके अनुसार ‘वैज्ञानिक साधनोंके विकाससे पैदावारकी शक्तिके बहुत अधिक बढ़ जानेपर जब भिन्न-भिन्न देशोंके पूँजीपति अपनी पैदावारको अपने देशमें नहीं खपा सकते, तब उन्हें दूसरे देशोंके बाजारोंमें अपना माल पहुँचाना पड़ता है। पूँजीपति अपना माल दूसरे देशोंमें बेचकर मुनाफा उठाना तो पसन्द करते हैं; परंतु अपने देशमें दूसरे देशके पूँजीपतियोंका माल

7.23 अन्ताराष्ट्रिय क्षेत्रमें पूँजीवाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज Read More »

7.22 मार्क्सवाद एवं युद्ध ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.22 मार्क्सवाद एवं युद्ध मार्क्सवादी कहते हैं कि ‘युद्ध जंगलीपनका चिह्न है। स्वयं कमाकर खानेके बजाय दूसरोंसे छीनकर पेट भरना ही युद्धका स्वरूप है। सामाजिक भावना एवं सहयोगकी बुद्धि होनेसे परिवारके रूपमें संगठित होते ही आपसी लड़ाई बन्द हो गयी। एक परिवारके आदमी एक हित समझकर आपसमें न लड़कर दूसरे परिवारसे लड़ने लगे फिर लड़ाईके

7.22 मार्क्सवाद एवं युद्ध ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज Read More »

7. मार्क्सीय अर्थ-व्यवस्था – 7.1 मूल्यका आधार ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

कहा जाता है, पूँजीवादी समाजके जीवन और गतिका आधार होता है खरीदना, बेचना तथा वस्तुओं एवं श्रमका विनिमय ही परस्पर सम्बन्धका सार है। मार्क्सके मतानुसार ‘पूँजीवादके अन्तर्गत जो माल तैयार होकर बाजारमें जाता है, उसके दो तरहके मूल्य होते हैं—एक उपयोग-सम्बन्धी, दूसरा विनिमयसम्बन्धी। पहलेका अभिप्राय उस वस्तुके गुणसे है, जिससे खरीदनेवालेकी शारीरिक या मानसिक आवश्यकताकी

7. मार्क्सीय अर्थ-व्यवस्था – 7.1 मूल्यका आधार ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज Read More »

6.3 शाश्वत नियम ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

6.3 शाश्वत नियम पर सिद्धान्तत: राज्यशक्तिको किसी भी धार्मिक, आध्यात्मिक नियन्त्रणमें ही रहना उचित है, अन्यथा अनियन्त्रित उच्छृंखल राज्यशक्ति राष्ट्रके लिये भीषण सिद्ध हो सकती है। ‘बृहदारण्यक उपनिषद्’ में कहा गया है कि ‘धर्म क्षत्रका भी क्षत्र है’, अर्थात् धर्मपर राजाका शासन नहीं चलता, अपितु राजापर धर्मका शासन चलता है। जैसे बिना नकेलके ऊँट, बिना

6.3 शाश्वत नियम ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज Read More »