अखंड सत्य

11.4 सत्य ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

11.4 सत्य ‘सत्य का अर्थ होता है धारणाओं एवं वस्तुगत सचाई की समन्विति। ऐसी समन्विति बहुधा केवल आंशिक एवं प्रायिक (लगभग) ही होती है। हम जिस सत्यताको स्थापित कर सकते हैं, वह सर्वदा सत्यके अन्वेषण एवं अभिव्यंजनके हमारे साधनोंपर अवलम्बित रहती है; परंतु इसीके साथ धारणाओंकी सत्यता, यहाँके अर्थमें आपेक्षिक ही सही, उन वस्तुगत तथ्योंपर […]

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10.8 द्वन्द्वन्याय और अन्तिम सत्य ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

10.8 द्वन्द्वन्याय और अन्तिम सत्य कहा जाता है ‘द्वन्द्वमान किसी भी अन्तिम सत्यको नहीं मानता, इसके विपरीत आदर्शवादी दर्शन हर समय एक अन्तिम सत्यकी खोज करता रहता है। यह सत्य अनादि, अनन्त और निर्विकार है; लेकिन द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद इस परिवर्तनशील जगत‍्में अपरिवर्तनीय सत्यकी खोज नहीं करता। इस दृष्टिकोणकी कहीं अन्तिम समाप्ति नहीं है। भूत-जगत् निरन्तर

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3.14 हीगेल ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

3.14 हीगेल हीगेल (१७७०—१८३१) सर्वश्रेष्ठ आदर्शवादी माना जाता है। कहा जाता है, उसका पिता सरकारी कर्मचारी था। अत: वह पिताके पेशेसे प्रभावित होकर नौकरशाहीका समर्थक हुआ। हीगेल फ्रांसकी राज्यक्रान्तिसे भी प्रभावित था। कहते हैं कि हीगेलका दर्शन केवल एक ही व्यक्ति समझ सका था और उस व्यक्तिने भी उसे गलतरूपमें ही समझा। वह व्यक्ति था

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3.10 आदर्शवाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

3.10 आदर्शवाद ईसाके पूर्व यूनानी कालमें ‘आदर्शवाद’ का उदय हुआ। आदर्शवादी राज्यको एक आदर्श संस्था मानते हैं और कर्तव्यपरायणता उसकी आधार-शिला कहते हैं। इस दृष्टिसे ‘राज्य और व्यक्ति—दोनों ही कर्तव्यके बन्धनमें आबद्ध होकर आगे बढ़ते हैं। इसमें नागरिककी राजभक्ति और राज्यका मनुष्योंके जीवन-यापनकी सुव्यवस्था करना परम कर्तव्य है। दोनों अन्योन्य-पोषक होते हैं। कहा जाता है

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