अन्तर्राष्ट्रीयनियम

9.2 पूँजीका स्वरूप ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

9.2 पूँजीका स्वरूप कहा जाता है कि ‘अर्थशास्त्रके क्षेत्रमें पूँजी स्वयं उदाहरण है। वह धनका एक निम्नतम परिमाण है, जिसके रहनेपर ही उसका स्वामी पूँजीपति कहला सकता है। मार्क्सने उद्योगकी किसी शाखाके एक श्रमिकका उदाहरण लिया है, जो आठ घण्टेतक अपने लिये अर्थात् अपनी मजदूरीका अर्थ उत्पन्न करनेके लिये श्रम करता है और चार घण्टे […]

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9. मार्क्स-दर्शन – 9.1 वैज्ञानिक द्वन्द्ववाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

9. मार्क्स-दर्शन मार्क्स प्रयोग तथा अनुभवद्वारा प्राप्त ज्ञानको ही वास्तविक ज्ञान मानता है। ‘डाइलेक्टिस’ (द्वन्द्वमान)-की चर्चा हम पहले कर आये हैं। यह एक यूनानी शब्द है, जिसका अर्थ है दो मनुष्योंका वार्तालाप। इसमें एक तर्ककी स्थापना की जाती है, फिर उसका खण्डन होता है, जिससे नये तर्ककी उत्थापना होती है। इस प्रकार एक नीचे दर्जेके

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8.9 इतिहासका वर्ण्य-विषय ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

8.9 इतिहासका वर्ण्य-विषय मार्क्सवादी कहते हैं कि ‘राजाओं, महाराजाओं, वीरपुरुषोंका वर्णन करना इतिहासका लक्ष्य न होकर समष्टि जनताकी स्वाभाविक जीवनस्थिति, उत्पादन-साधन और उनके परस्पर सम्बन्ध तथा उनके परिणामोंका निरूपण ही इतिहासका मुख्य विषय होना चाहिये।’ तदनुसार ही मार्क्सवादी प्राथमिक वर्गहीन समाज, फिर मालिक और गुलाम, फिर सामन्त एवं किसान-गुलाम, फिर पूँजीपति और मजदूर, फिर मजदूर

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8.7 इतिहास और व्यक्ति ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

8.7 इतिहास और व्यक्ति स्टालिनका कहना है कि ‘इतिहास विज्ञानको वास्तविक विज्ञान बनाता है तो सामाजिक इतिहासके विकासको सम्राटों, सेनापतियों, विजेताओं तथा शासकोंके कृत्योंकी परिधिके अन्तर्गत सीमित नहीं किया जा सकता। इतिहास-विज्ञानके लिये आवश्यक है कि भौतिक मूल्योंके निर्माता लाखों, करोड़ों मजदूरोंके इतिहासके चिन्तनको अपना मूल विषय बनायें। द्वन्द्ववादके अनुसार प्रकृतिके सभी बाह्य रूपों एवं

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8.6 परिवर्तनके कारण ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

8.6 परिवर्तनके कारण मार्क्सके मतानुसार ‘परिवर्तनका कारण न तो भौगोलिक अवस्था ही है न जनसंख्या ही; क्योंकि यूरोप सदियोंसे अपरिवर्तनशील रहा है, फिर भी वहाँ पंचायती व्यवस्था, दासप्रथा, सामन्तवादी, पूँजीवादी व्यवस्था आदि अनेक परिवर्तन हुए। जनसंख्या भारतमें इंग्लैण्ड, अमेरिकासे अधिक होनेपर भी वहाँ इतने परिवर्तन नहीं हुए।’ स्टालिनका कहना है कि ‘ऐतिहासिक भौतिकवादके अनुसार आवश्यक

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8.5 मार्क्स एवं इतिहास ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

8.5 मार्क्स एवं इतिहास मार्क्सवादी समाजके विचारों, सिद्धान्तों तथा राजनीतिक संस्थाओंको समाजकी सत्ता और उसकी भौतिक परिस्थितियोंके ही अनुकूल मानते हैं और समाजकी सत्ता एवं भौतिक परिस्थितियाँ उनके मतमें उत्पादन-शक्तियों तथा उत्पादन-सम्बन्धोंपर निर्भर रहती हैं। इन्हींपर समाजका ढाँचा स्थिर होता है। दासयुगमें सामाजिक रीतियाँ अन्य युगोंसे भिन्न थीं। यही बात सामन्तवादी तथा पूँजीवादी युगके लिये

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8.3 भौतिकवादी व्याख्या ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

8.3 भौतिकवादी व्याख्या कहा जाता है कि हीगेलके ऐतिहासिक आदर्शवादके मुकाबलेमें ही मार्क्सने अपनी प्रणालीका नाम ‘ऐतिहासिक भौतिकवाद’ रखा था। इस प्रणालीद्वारा मार्क्स विभिन्न परिवर्तनों, क्रान्तियों एवं मानसिक, सामाजिक घटनाओंको उत्पन्न करनेवाले मूलस्रोतोंका पता लगाना चाहता था, इसलिये इतिहास-संचालन करनेवाले नियमोंका उसने पता लगाया। उसका कहना था—‘मनुष्योंके विवेक एवं विचारोंमें परिवर्तन करनेवाली तथा विभिन्न सामाजिक

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8.2 इतिहासकी मार्क्सीय व्याख्या ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

8.2 इतिहासकी मार्क्सीय व्याख्या मार्क्सके अनुसार ‘इतिहास छ: युगोंमें विभक्त है। प्रथम युगमें अति प्राचीन मनुष्य साम्यवादी संघोंमें रहता था। उस समय उत्पादन, वितरण आदि समाजवादी ढंगसे होता था। दूसरा युग दासताका है। कृषि-प्रथा गोपालनके फलस्वरूप व्यक्तिगत सम्पत्तिका जन्म हुआ। सम्पत्तिके स्वामियोंने अन्य सम्पत्तिरहित लोगोंको अपना दास बनाया। राज्य एवं तत्सम्बन्धी अन्य संस्थाओंका जन्म हुआ।

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7.25 अशान्तिकी जड़—आर्थिक विषमता ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.25 अशान्तिकी जड़—आर्थिक विषमता मार्क्सवादके दृष्टिकोणसे ‘वर्तमान संसारमें व्यक्तिके जीवनसे लेकर अन्ताराष्ट्रिय परिस्थितितक सभी संकटोंका कारण आर्थिक विषमता ही है। समाजमें पैदावार समाजके हितके लिये नहीं की जाती, बल्कि कुछ व्यक्तियोंके मुनाफेके लिये ही की जाती है। इसीलिये ऐसी विषमता पैदा हो जाती है। इस विषमताको कायम रखनेके लिये पूँजीवादी-समाजमें सरकारकी व्यवस्था और अन्ताराष्ट्रिय क्षेत्रमें

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7.24 पूँजीवादी साम्राज्यवाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.24 पूँजीवादी साम्राज्यवाद मार्क्सवादके अनुसार ‘किसी देशका पूँजीवाद जब मुनाफेके लिये अपने देशसे बाहर कदम फैलाता है, तब वह साम्राज्यवादका रूप धारण कर लेता है। प्राचीन समयका साम्राज्यवाद सैनिक आक्रमणके रूपमें आगे बढ़ता था और पराधीन देशोंका शोषण भूमि-करके रूपमें बरतता था। पूँजीवादका साम्राज्य-विस्तार आरम्भ होता है व्यापारसे। फिर अपने व्यापारको दूसरे देशोंके मुकाबलेमें सुरक्षित

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