अन्तर्राष्ट्रीयनियम

6.2 व्यक्तिगत सम्पत्ति ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

6.2 व्यक्तिगत सम्पत्ति भारतीय धार्मिक, राजनीतिक शास्त्रोंने व्यक्तिगत सम्पत्तियोंको वैध माना है। मन्वादि धर्मशास्त्र, मिताक्षरा आदि निबन्धग्रन्थमें कहा गया है कि पितृपितामहादिकी सम्पत्तियोंमें पुत्रपौत्रादिका जन्मना स्वत्व है। गर्भस्थ शिशुका भी पिता-पितामहादिकी सम्पत्तिमें स्वत्व मान्य है। अतएव दायके रूपमें प्राप्त चल, अचल धन पुत्रादिका वैध धन है। इसी प्रकार निधि लाभ, मित्रोंसे मिली, विजयसे प्राप्त, गाढ़े […]

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6. वर्ग-संघर्ष – 6.1 सापेक्ष और शाश्वत नियम ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

6. वर्ग-संघर्ष ‘वर्गसंघर्ष’ मार्क्सवादका एक मूल सिद्धान्त है। ऐतिहासिक विवेचनसे वह इसी निष्कर्षपर पहुँचता है कि समाजका विकास वर्गसंघर्षसे प्रभावित होता है। समाजमें दो वर्ग होते हैं—शोषित तथा शोषक। उत्पादनके साधनोंपर जिनका अधिकार होता है, वह शोषक वर्ग है; दूसरा शोषित। प्रत्येक नियम, रीति, रिवाज, दर्शन, कला, इतिहास—सभी वर्ग-संघर्षके विचारोंसे प्रभावित होते हैं। उत्पादनके साधनोंमें

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4.14 कर्मविपाक और विकासवाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

4.14 कर्मविपाक और विकासवाद जड प्रकृतिसे विश्वका विकास माननेपर ईश्वरवाद और कर्मवादसे विरोध बतलाया जाता है। यह पक्ष उचित ही प्रतीत होता है कि जैसे बीज, धरणी, अनिल और जलके संसर्गसे अपने-आप अंकुर, नाल, स्कन्ध, शाखा, उपशाखा, पत्र, पुष्प, फलसमन्वित होता है, वैसे ही प्रकृति अपने आप ही महदादिक्रमेण समस्त प्रपंचाकारेण परिणत होती है। विद्युत्कणों

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4.13 विकासवाद और जाति ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

4.13 विकासवाद और जाति जल, वायु एवं देशोंके प्रभावसे रंगमें परिवर्तन होना प्रत्यक्ष अनुमान एवं शास्त्रसे भी सिद्ध है। कफ, वात, पित्तकी प्रधानता-अप्रधानतासे भी रंग, रूप, स्वभावमें भेद होना शास्त्रसिद्ध है। जैसे संकल्पों, विचारों एवं वातावरणोंसे रजस्वला स्त्री प्रभावित हो, स्त्री-पुरुष जैसे देश, काल, वातावरणसे प्रभावित होकर गर्भाधान करते हैं, वैसे ही संतानका प्रादुर्भाव होता

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4.12 जड या चेतन? ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

4.12 जड या चेतन? जड संसार जड परमाणुओंके एकत्रित होने या जड विद्युत्कणोंके संघर्ष अथवा प्रकृतिके हलचलमात्रका परिणाम नहीं है; किंतु अखण्ड सत्ता अखण्ड बोध परमानन्दस्वरूप परमात्माकी अघटितघटनापटीयसी मायाशक्तिका परिणाम है। जैसे कल-कारखाने, रेल, तार, रेडियो, वायुयान, परमाणुबम, हाइड्रोजन बम आदि उत्पादक, पालक, संहारक अनेक यन्त्रोंका निर्माण जड-प्रकृति आदिसे सम्पन्न नहीं होता, किंतु उनके लिये

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4.11 भाषा-विज्ञान ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

4.11 भाषा-विज्ञान ज्ञानके लिये भाषा भी अपेक्षित होती है; क्योंकि ऐसा कोई भी ज्ञान नहीं होता, जिसमें सूक्ष्म शब्दका अनुवेध न हो। भाषा भी सीखकर ही बोली जाती है। माता तथा कुटुम्बियोंकी बोलचाल सुनकर ही प्राणी बोलता है। स्वतन्त्रतासे कोई नयी भाषा बना भी नहीं सकता। कहते हैं कि गूँगे बहरे भी होते हैं। वे

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4.10 मानवसृष्टिका मूलस्थान ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

4.10 मानवसृष्टिका मूलस्थान ‘इसी तरह जब समस्त मनुष्य बन्दरोंसे उत्पन्न हुए हैं, तब जहाँ-जहाँ बन्दरोंका निवास है, वहीं मनुष्योंकी उत्पत्ति हुई और जब मनुष्योंकी उत्पत्ति वनमानुषोंसे हुई, तब वनमानुष जहाँ-जहाँ मिलते हैं, वहाँ मनुष्योंकी उत्पत्ति हुई। वनमानुष अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, मेडागास्कर, जावा आदिमें होते हैं। वहाँका नीग्रोदल सभ्यतामें अबतक भी मनुष्य-समुदायसे पीछे है। उनमें कई जातियाँ

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4.9 मनुष्य-जाति ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

4.9 मनुष्य-जाति ‘मनुष्य-जातिका विकास वनमनुष्योंसे हुआ है’, ‘जावाद्वीपके कलिंग नामक मनुष्य अधिकतर वनमनुष्योंसे मिलते हैं, अत: वे ही मनुष्य-जातिके पूर्वपितामह हैं’, यह सब कथन भ्रान्तिपूर्ण हैं। अतएव जो कहा जाता है कि ‘यही मनुष्य-समुदायकी समस्त शाखाओंका जन्मदाता है’ यह सब भी भ्रान्तिपूर्ण है; क्योंकि जब विकासवादका सिद्धान्त ही खण्डित हो गया, तब उसके आधारपर शास्त्र-विरुद्ध

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4.8 कृत्रिम चुनाव ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

4.8 कृत्रिम चुनाव कृत्रिम चुनावके भी तीन नियम हैं—(१) अमुक मर्यादातक कृत्रिम होनेपर संतति होती है, (२) अमुक मर्यादाके बाद अपनी पहली पीढ़ियोंके रूपको ही हो जाती है और (३) अमुक मर्यादाके बाद वंश बन्द हो जाता है। पहला नियम प्राय: सर्वत्र प्रसिद्ध है। इसीके अनुसार मनुष्य पशुओं एवं वृक्षोंके अच्छे बीज पैदा करते हैं।

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4.7 प्राकृतिक चुनाव ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

4.7 प्राकृतिक चुनाव विकासकी दूसरी विधि डार्विनके प्राकृतिक चुनावकी है, जिसके पाँच तत्त्व हैं—(१) सर्वत्र विद्यमान परिवर्तन है, (२) अत्युत्पादन, (३) जीवन संग्राम, (४) अयोग्योंका नाश और योग्योंकी रक्षा तथा (५) योग्यताओंका संततिमें संक्रमण। परिवर्तनका अभिप्राय यह है कि प्रत्येक प्राणीकी संततिमें भी भेद होता है। इस भेदका भी नियम है। इंग्लैण्डमें सबसे अधिक संख्या

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