अन्तर्राष्ट्रीयनियम

7.7 अतिरिक्त श्रम और मुनाफा ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.7 अतिरिक्त श्रम और मुनाफा मार्क्सवादियोंका कहना है कि ‘मजदूरको मेहनतके फलका वह भाग जिसका दाम मजदूरको नहीं मिला, मालिकका मुनाफा है।’ मजदूर जितने समयतक मेहनत कर परिश्रमकी शक्तिका दाम पैदा करता है, उससे जितना भी वह अधिक करेगा, वह सब मालिकका मुनाफा होगा। यदि वह पाँच घंटे काम करके अपने परिश्रमकी शक्तिका दाम पूरा […]

7.7 अतिरिक्त श्रम और मुनाफा ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज Read More »

7.6 लाभ या मुनाफा ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.6 लाभ या मुनाफा कहा जाता है कि ‘बिक्रीके लिये माल या सौदा तैयार करनेवाला मनुष्य माल बनानेके लिये कुछ सामान खरीदता है। खरीदे हुए सामानको अपनी मेहनतसे बिक्रीयोग्य माल या सौदा तैयार करके उसे बाजारमें बेचनेसे जो दाम मिलता है, उसमेंसे खरीदे हुए सामानका दाम निकाल देनेपर बाकी बचा हुआ दाम लाभ या मुनाफा

7.6 लाभ या मुनाफा ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज Read More »

7.5 उपयोगी वस्तु और सौदेकी वस्तु ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.5 उपयोगी वस्तु और सौदेकी वस्तु कहा जाता है कि ‘उपयोगी पदार्थोंकी पैदावार आवश्यकता पूर्ण करनेके लिये होती है। सौदेकी पैदावार विनिमयके लिये होती है, आवश्यकता पूर्ण करनेके लिये पैदावार करनेमें मुनाफा उद्देश्य नहीं रहता। विनिमयके लिये पैदा करनेमें पैदावारका उद्देश्य उपयोग नहीं, किंतु मुनाफा कमाना ही रहता है। पूँजीवादीका सब पैदावार विनिमयके लिये होता

7.5 उपयोगी वस्तु और सौदेकी वस्तु ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज Read More »

7.4 अतिरिक्त लाभ ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.4 अतिरिक्त लाभ मशीनोंके आविष्कार होनेपर मशीनोंद्वारा लाखों मजदूरोंका काम हो जाता है। फिर तो मशीनकी कमाईका फल मशीन-मालिकको मिलना ठीक ही है। कहा जाता है कि ‘जमीन खोदनेवाले मजदूरको एक घंटेके परिश्रमका फल उतना नहीं मिलता, जितना कि एक इंजीनियरके परिश्रमका होता है।’ इसका कारण मार्क्सवादियोंकी दृष्टिसे यह है कि ‘जमीन खोदनेका काम मनुष्य

7.4 अतिरिक्त लाभ ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज Read More »

7.3 मजदूरी ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.3 मजदूरी कहा जाता है, ‘यद्यपि मालूम पड़ता है, मजदूरको उसके श्रमके बदले पूरी मजदूरी मिल रही है, परंतु उसको घोड़ाको दाना देनेके तुल्य केवल उतनी ही मजदूरी दी जाती है, जितनेमें वह जीवन-निर्वाह कर सके और उसमें काम करनेकी शक्ति बनी रहे। जब कभी वस्तुओंकी दर घट जाती है, तो मजदूरीका परिमाण ज्यों-का-त्यों बना

7.3 मजदूरी ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज Read More »

7.2 मूल्य और श्रम ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.2 मूल्य और श्रम कहा जाता है, ‘मशीनोंके नये आविष्कारों एवं उत्पादनके कामोंमें दक्षता आनेसे कम श्रममें वस्तु उत्पन्न होने लगती है। इसीलिये वस्तुका दाम कम हो जाता है। अत: सिद्ध है कि श्रम ही विनिमय-मूल्यका आधार है।’ पर यह बात ठीक नहीं जँचती। कारण, दूसरा पक्ष यह कह सकता है कि मालकी अधिकताके कारण

7.2 मूल्य और श्रम ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज Read More »

6.16 वितरण ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

6.16 वितरण अतिरिक्त आयका पंचधा विभाजन करके भारतीय शास्त्रोंमें यद्यपि राष्ट्रहितार्थ उसका विनियोग बतलाया है, फिर भी अतिरिक्त आयको अवैध या अनुचित नहीं कहा जा सकता। कोई भी उद्योग यदि लागत खर्च, सरकारी टैक्सभरके लिये भी आमदनी पैदा करता है तो उससे उद्योगपतिका जीवन भी चलाना कठिन होगा और बड़ी-बड़ी मशीनोंके खरीदने आदिका काम भी

6.16 वितरण ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज Read More »

6.15 उत्पादन और समाज ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

6.15 उत्पादन और समाज कम्युनिष्टोंकी प्रणालीके अनुसार ‘साधनोंपर समाजका अधिकार होनेसे सहयोगपूर्वक पैदावार तथा व्यावहारिक शिक्षाका विस्तार होगा। तभी हर व्यक्तिसे उसकी शक्तिके अनुसार काम लेने तथा उसकी आवश्यकताके अनुसार वस्तु देनेका सिद्धान्त चल सकेगा। जबतक आर्थिक, सामाजिक, शिक्षा-सम्बन्धी प्राचीन प्रणाली कायम रहेगी, तबतक वैसी व्यवस्था नहीं हो सकती। तबतक जो जितना काम करेगा, उतना

6.15 उत्पादन और समाज ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज Read More »

6.14 कम्युनिष्टोंकी कूटनीति ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

6.14 कम्युनिष्टोंकी कूटनीति ‘कम्युनिष्टोंके हाथ शासनसूत्र न जाकर प्रजातन्त्रवादियोंके हाथमें आनेपर’ मार्क्सकी रायमें ‘कम्युनिष्टोंको उससे अलग ही रहकर उनके कामोंमें अड़ंगा डालते रहना चाहिये। उनके सामने ऐसी शर्तें पेश करनी चाहिये, जिनका मानना असम्भव हो। क्रान्तिके अवसरपर श्रमजीवियोंको चाहिये कि मध्यम श्रेणीवालोंके साथ किसी प्रकारके समझौतेका विरोध करें। प्रजातन्त्रवादियोंको अत्याचार करनेके लिये बाध्य कर दें।

6.14 कम्युनिष्टोंकी कूटनीति ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज Read More »

6.12 समाजवादमें लोकतन्त्र ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

6.12 समाजवादमें लोकतन्त्र ‘सोवियट कम्युनिज्म’ (रूसी साम्यवाद) नामक पुस्तकमें फेबियन वेव दम्पतिने लिखा है कि ‘जहाँ अमेरिका, ब्रिटेनमें ६० प्रतिशत जनता चुनावमें भाग लेती है, वहाँ सोवियत रूसमें ८० प्रतिशत जनता भाग लेती है। इस आधारपर मार्क्सवादी सर्वहाराका अधिनायकत्व ही वास्तविक जनतन्त्र है। ब्रिटेन, अमेरिकाका जनतन्त्र तो ढोंगमात्र है।’ परंतु दूसरी पार्टीको प्रेस, पत्र, प्रचार

6.12 समाजवादमें लोकतन्त्र ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज Read More »