अन्तर्विरोध

9.6 अन्तर्विरोधपर बुखारिन ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

9.6 अन्तर्विरोधपर बुखारिन ‘एक-दूसरेकी विरोधी भिन्न कार्यकारी शक्तियाँ पृथ्वीमें वर्तमान हैं। व्यतिक्रमके रूपमें इन शक्तियोंका समीकरण होता है, तब विरामकी स्थिति होती है। यानी उनके वास्तविक विरोधपर एक आवरण पड़ जाता है। लेकिन किसी एक शक्तिमें तनिकमात्र परिवर्तन करनेहीसे अन्तर्विरोधोंका पुनराभास होता है और उस समीकरणका अन्त होता है और यदि एक नये समीकरणकी सृष्टि […]

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7.11 अतिरिक्त आय और अन्तर्विरोध ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.11 अतिरिक्त आय और अन्तर्विरोध मार्क्सवादियोंका कहना है कि ‘समाजकी कोई भी व्यवस्था जब पूर्ण विकासको प्राप्त हो चुकती है और उस व्यवस्थामें समाजके लिये आगे विकास करनेका अवसर नहीं रहता तो उस व्यवस्थाको तोड़नेके लिये स्वयं ही विरोधी शक्ति पैदा हो जाती है, जो उसे तोड़कर नयी व्यवस्थाका मार्ग तैयार कर देती है।’ मार्क्सवादके

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