अरस्तूराजनीति

2.6 ग्रोशस ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

2.6 ग्रोशस ग्रोशस (१५८३—१६४५) अन्ताराष्ट्रिय नियमका जन्मदाता था। सोलहवीं शताब्दी राजनीतिकी दृष्टिसे यदि फ्रांसकी थी तो सत्रहवीं शताब्दी इंगलैण्डकी। ग्रोशसकी पृष्ठभूमि वह युग था, जिसमें यूरोप अनेक धार्मिक मतमतान्तरोंमें विभक्त हो गया था। व्यवहारमें वह मेकियाविलीसे पूर्ण प्रभावित था। फिर भी वह मानवतावादी कहा जाता है। उसके अनुसार युगकी उद्दण्डताका कारण यह था कि ‘मनुष्यने […]

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2.5 आल्थूसियस ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

2.5 आल्थूसियस अपने पूर्वविचारकोंसे भी अधिक सेक्युलर (लोकायत) था। वह जनताकी प्रभुताका दार्शनिक था। वह राज्यको एक क्रममें मानता था—अर्थात् कुटुम्ब, कारपोरेशन, कम्यून, प्रान्त और उसके बाद राज्य; यह क्रम था। राज्यके बाद कुटुम्ब अधिक महत्त्व रखता था। पूर्ण ढाँचा लौकिक तथा स्पष्ट था। प्रत्येक क्रमके विकासका मूल (समझौता) था। उसने राज्यको जनताका सेवक माना।

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2.4 मध्य युग ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

2.4 मध्य युग रोमन साम्राज्यके पश्चात् यूरोपीय इतिहासका मध्य-काल आरम्भ होता है। इसके दो भाग किये जाते हैं, पूर्वार्ध (अन्धकार-युग) और उत्तरार्ध। पूर्वार्धमें रोमन लोगोंद्वारा निर्मित सड़कोंकी इतिश्री हो गयी थी। यूनानी और रोमन सभ्यताका अन्त-सा हो गया था। लोगोंमें आतंक छाया था। क्रमबद्ध राजनीतिक विचार नष्ट-से हो गये थे। संस्कृति और धर्मका भ्रष्ट स्वरूप

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2.3 अरस्तू ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

2.3 अरस्तू यह यथार्थवादी दार्शनिक था। अपने युगके लगभग १५० संविधानोंका अध्ययन करके इसने ‘पालिटिक्स’ नामक ग्रन्थ लिखा था। इसने प्लेटोकी आगमन-पद्धतिके स्थानपर निगमन-पद्धतिको स्वीकार किया। इसके अनुसार अध्ययनके बाद आदर्शकी स्थापना करनी चाहिये। उसने राजनीतिक तथा आर्थिक—दो पक्षोंसे अध्ययनकर राज्योंको छ: भागोंमें बाँटा। राजतन्त्र, उच्चजनतन्त्र, लोकहिताय जनवादको वह प्राकृतरूपमें मानता था। अत्याचार, सामन्ततन्त्र तथा

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2.2 प्लेटो (अफलातून) ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

2.2 प्लेटो (अफलातून) प्लेटोके दर्शनमें दो पक्ष हैं—आदर्श तथा वास्तविक। अपने समयके स्वरूप अध्ययन करनेके बाद वह इस निष्कर्षपर पहुँचा कि ‘लोग पतनशील हैं।’ उसने एक आदर्श राज्यका चित्रण ‘रिपब्लिक’ नामक ग्रन्थमें किया, किंतु वह अमानवीय हो गया। इसके अनुसार इस आदर्शके निकट जितना ही पहुँचा जायगा, उतना ही कल्याण होगा। इस प्रकार वह आदर्शवादका

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2. पाश्चात्य-राजनीति – 2.1 यूनानका राज्यदर्शन ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

पाश्चात्य राजनीतिपर विचार करते समय सर्वप्रथम उसके प्राचीन यूनानी राज्यदर्शनपर विचार करना पड़ता है। वहाँकी सबसे प्राचीन रचनाएँ होमरकृत महाकाव्य ‘इलियड’ तथा ‘ओडेसी’ हैं। इनका महाभारतके साथ इतना साम्य है कि सिकन्दरके सैनिकोंको भ्रम हो गया कि ‘कहीं महाभारत होमरकी रचनाओंका भारतीय संस्करण तो नहीं है।’ उक्त महाकाव्योंमें प्राप्त जीवनदर्शनके अनुसार राजाका स्वरूप सामने आता

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1. पाश्चात्य-दर्शन – 1.1 दर्शनकी परिभाषा ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

1. पाश्चात्य-दर्शन मार्क्सवादको समझनेके लिये उसकी पृष्ठभूमिपर एक दृष्टि डालना बहुत आवश्यक है। मार्क्सवादमें दर्शन, राजनीति और अर्थशास्त्र तीनोंका ही समावेश है। किसी भी धर्म, सम्प्रदाय, मत या वादका स्थायी आधार उसका दर्शन ही होता है। मार्क्सने भी अपनी विचारधाराका आधार दर्शन ही बनाया। भूत, वर्तमान और भविष्यको एक-दूसरेसे पृथक् नहीं किया जा सकता। यूरोपमें

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