अर्थशास्त्रआदर्शराज्य

3.9 एकसत्तावाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

3.9 एकसत्तावाद एकसत्तावाद भी एक राजनीतिक वाद है। इसके अनुसार एक प्रादेशिक राशिमें केवल एक ही सर्वोच्च सत्ताधारी व्यक्ति-विशेषोंका व्यक्तिसंघ होता है। सभी नागरिक एवं संस्थाएँ इस सत्ताधारी संस्थाके अधीन होती हैं। राज्यको राजसत्ताधारी संस्था माननेवाले दार्शनिक ‘अद्वैतवादी’ या ‘एकसत्तावादी’ कहलाते हैं। ‘राजसत्ता’ शब्द श्रेष्ठता अर्थमें प्रयुक्त होता है। तदनुसार श्रेष्ठता-राज्यकी विशेषता है, अन्य किन्हीं […]

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3.7 उपयोगितावाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

3.7 उपयोगितावाद वेन्थम (१७४८-१८३२)-ने उपयोगितावादद्वारा भी व्यक्तिवादी प्रथाका समर्थन किया था। हेनरी-मेनके मतानुसार ‘उस समयके वैधानिक सभी सुधारोंपर वेन्थमके विचारोंकी छाप है। उसके विचारोंके बड़े-बड़े ११ ग्रन्थ हैं। उसने फ्रांस, अमेरिका एवं भारतवर्षके लिये भी विधान बनाये थे। उसने प्रतियोगिताद्वारा कर्मचारियोंकी नियुक्ति, सरकारी विभागोंका संघटन, नोट-मुद्रणकला, उपनिवेशसम्बन्धी मताधिकारके सम्बन्धमें विचार व्यक्त किये हैं। कहा जाता

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3.5 महाभारतमें सामाजिक अनुबन्ध ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

3.5 महाभारतमें सामाजिक अनुबन्ध महाभारत शान्तिपर्वमें शरशय्यास्थ भीष्मजीने अन्य धर्मोंके साथ राजधर्मका भी उपदेश किया है। उसमें उन्होंने अराजकताको बड़ा पाप बताया है और कहा है कि ‘राज्यस्थापनाके लिये उद्यत बलवान‍्के सामने सबको ही झुक जाना चाहिये। अराजक राज्यको दस्यु नष्ट कर देते हैं—‘अनिन्द्रमबलं राज्यं दस्यवोऽभिभवन्त्युत।’ अराजक राज्य निर्वीर्य होकर नष्ट हो जाते हैं। अराजकतासे

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3.4 रूसोके विचार ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

3.4 रूसोके विचार १७८९ की फ्रांसकी राज्यक्रान्तिका प्रवर्तक रूसो दस वर्षकी अवस्थामें ही एक पादरीके यहाँ नौकरी करने लगा। बुरी आदतोंके कारण वहाँसे उसे हटा दिया गया। बादमें वह दूसरी नौकरीमें लग गया। वहाँ वह पूरा झूठा, चोर और आवारा बन गया। उसे मित्रोंसे सदा ही सहायता मिलती रही। बादमें एक धनाढॺ स्त्रीके सहारे उसे

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3.3 जान लॉक ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

3.3 जान लॉक जान लॉक (१६३२-१७०४) भी समझौतावादी था। उसे सीमित राजतन्त्रमें विश्वास था। उसका पिता ‘प्यूरिटन’ सम्प्रदायका अनुयायी था। ‘लॉक’ १६८८ की रक्तहीन क्रान्तिका दार्शनिक माना जाता है। इंग्लैण्डके जेम्स द्वितीयके पदच्युत होनेपर विलियम और मेरीको राज्यपदके लिये निमन्त्रित किया गया। ‘बिल ऑफ राइट्स’ और ‘ऐक्ट ऑफ सेट्लमेन्ट’ नियमोंद्वारा कार्यपालिका संसद्के अधीन बनी। संसद्का

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3.2 थामस हॉब्स ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

3.2 थामस हॉब्स थामस हॉब्स (१५८८-१६७९) ब्रिटेनके गृहयुद्धकाल (१६४२-४९)-का दार्शनिक था। कहा जाता है कि इसकी माताने भयभीत होकर समयसे पहले उसे जन्म दिया था, इसलिये वह भयसे अत्यधिक प्रभावित रहता था। १६४० में इंग्लैण्डकी दीर्घ संसद्की बैठकके समय ब्रिटेनसे भागनेवालोंमें वह सर्वप्रथम व्यक्ति था। उस समय वहाँ राज्यनियम, राजसत्ता, नागरिकता सम्बन्धी विभिन्न विचारधाराएँ प्रचलित

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2.6 ग्रोशस ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

2.6 ग्रोशस ग्रोशस (१५८३—१६४५) अन्ताराष्ट्रिय नियमका जन्मदाता था। सोलहवीं शताब्दी राजनीतिकी दृष्टिसे यदि फ्रांसकी थी तो सत्रहवीं शताब्दी इंगलैण्डकी। ग्रोशसकी पृष्ठभूमि वह युग था, जिसमें यूरोप अनेक धार्मिक मतमतान्तरोंमें विभक्त हो गया था। व्यवहारमें वह मेकियाविलीसे पूर्ण प्रभावित था। फिर भी वह मानवतावादी कहा जाता है। उसके अनुसार युगकी उद्दण्डताका कारण यह था कि ‘मनुष्यने

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2.5 आल्थूसियस ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

2.5 आल्थूसियस अपने पूर्वविचारकोंसे भी अधिक सेक्युलर (लोकायत) था। वह जनताकी प्रभुताका दार्शनिक था। वह राज्यको एक क्रममें मानता था—अर्थात् कुटुम्ब, कारपोरेशन, कम्यून, प्रान्त और उसके बाद राज्य; यह क्रम था। राज्यके बाद कुटुम्ब अधिक महत्त्व रखता था। पूर्ण ढाँचा लौकिक तथा स्पष्ट था। प्रत्येक क्रमके विकासका मूल (समझौता) था। उसने राज्यको जनताका सेवक माना।

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2.3 अरस्तू ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

2.3 अरस्तू यह यथार्थवादी दार्शनिक था। अपने युगके लगभग १५० संविधानोंका अध्ययन करके इसने ‘पालिटिक्स’ नामक ग्रन्थ लिखा था। इसने प्लेटोकी आगमन-पद्धतिके स्थानपर निगमन-पद्धतिको स्वीकार किया। इसके अनुसार अध्ययनके बाद आदर्शकी स्थापना करनी चाहिये। उसने राजनीतिक तथा आर्थिक—दो पक्षोंसे अध्ययनकर राज्योंको छ: भागोंमें बाँटा। राजतन्त्र, उच्चजनतन्त्र, लोकहिताय जनवादको वह प्राकृतरूपमें मानता था। अत्याचार, सामन्ततन्त्र तथा

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2.2 प्लेटो (अफलातून) ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

2.2 प्लेटो (अफलातून) प्लेटोके दर्शनमें दो पक्ष हैं—आदर्श तथा वास्तविक। अपने समयके स्वरूप अध्ययन करनेके बाद वह इस निष्कर्षपर पहुँचा कि ‘लोग पतनशील हैं।’ उसने एक आदर्श राज्यका चित्रण ‘रिपब्लिक’ नामक ग्रन्थमें किया, किंतु वह अमानवीय हो गया। इसके अनुसार इस आदर्शके निकट जितना ही पहुँचा जायगा, उतना ही कल्याण होगा। इस प्रकार वह आदर्शवादका

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