अर्थशास्त्रआदर्शराज्य

8.6 परिवर्तनके कारण ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

8.6 परिवर्तनके कारण मार्क्सके मतानुसार ‘परिवर्तनका कारण न तो भौगोलिक अवस्था ही है न जनसंख्या ही; क्योंकि यूरोप सदियोंसे अपरिवर्तनशील रहा है, फिर भी वहाँ पंचायती व्यवस्था, दासप्रथा, सामन्तवादी, पूँजीवादी व्यवस्था आदि अनेक परिवर्तन हुए। जनसंख्या भारतमें इंग्लैण्ड, अमेरिकासे अधिक होनेपर भी वहाँ इतने परिवर्तन नहीं हुए।’ स्टालिनका कहना है कि ‘ऐतिहासिक भौतिकवादके अनुसार आवश्यक […]

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8.5 मार्क्स एवं इतिहास ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

8.5 मार्क्स एवं इतिहास मार्क्सवादी समाजके विचारों, सिद्धान्तों तथा राजनीतिक संस्थाओंको समाजकी सत्ता और उसकी भौतिक परिस्थितियोंके ही अनुकूल मानते हैं और समाजकी सत्ता एवं भौतिक परिस्थितियाँ उनके मतमें उत्पादन-शक्तियों तथा उत्पादन-सम्बन्धोंपर निर्भर रहती हैं। इन्हींपर समाजका ढाँचा स्थिर होता है। दासयुगमें सामाजिक रीतियाँ अन्य युगोंसे भिन्न थीं। यही बात सामन्तवादी तथा पूँजीवादी युगके लिये

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8.4 उत्पादन-शक्तियाँ और नियम ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

8.4 उत्पादन-शक्तियाँ और नियम कहा जाता है कि उत्पादन-शक्तियाँ दो प्रकारकी हैं—एक चेतन, दूसरी अचेतन। अचेतन शक्तियोंके अन्तर्गत भूमि, जल, वायु, कच्चा माल, औजार, मशीनें आदि आ जाती हैं। चेतन शक्तियोंमें मजदूर, आविष्कारक, अन्वेषक, इंजीनियर आदि आ जाते हैं। जातिगत गुणों अर्थात् किसी मनुष्य-समूहकी जन्म-सिद्ध योग्यताका भी चेतन शक्तियोंमें अन्तर्भाव है। सबसे अधिक महत्त्व शारीरिक

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7.25 अशान्तिकी जड़—आर्थिक विषमता ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.25 अशान्तिकी जड़—आर्थिक विषमता मार्क्सवादके दृष्टिकोणसे ‘वर्तमान संसारमें व्यक्तिके जीवनसे लेकर अन्ताराष्ट्रिय परिस्थितितक सभी संकटोंका कारण आर्थिक विषमता ही है। समाजमें पैदावार समाजके हितके लिये नहीं की जाती, बल्कि कुछ व्यक्तियोंके मुनाफेके लिये ही की जाती है। इसीलिये ऐसी विषमता पैदा हो जाती है। इस विषमताको कायम रखनेके लिये पूँजीवादी-समाजमें सरकारकी व्यवस्था और अन्ताराष्ट्रिय क्षेत्रमें

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7.24 पूँजीवादी साम्राज्यवाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.24 पूँजीवादी साम्राज्यवाद मार्क्सवादके अनुसार ‘किसी देशका पूँजीवाद जब मुनाफेके लिये अपने देशसे बाहर कदम फैलाता है, तब वह साम्राज्यवादका रूप धारण कर लेता है। प्राचीन समयका साम्राज्यवाद सैनिक आक्रमणके रूपमें आगे बढ़ता था और पराधीन देशोंका शोषण भूमि-करके रूपमें बरतता था। पूँजीवादका साम्राज्य-विस्तार आरम्भ होता है व्यापारसे। फिर अपने व्यापारको दूसरे देशोंके मुकाबलेमें सुरक्षित

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7.23 अन्ताराष्ट्रिय क्षेत्रमें पूँजीवाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.23 अन्ताराष्ट्रिय क्षेत्रमें पूँजीवाद मार्क्सके अनुसार ‘वैज्ञानिक साधनोंके विकाससे पैदावारकी शक्तिके बहुत अधिक बढ़ जानेपर जब भिन्न-भिन्न देशोंके पूँजीपति अपनी पैदावारको अपने देशमें नहीं खपा सकते, तब उन्हें दूसरे देशोंके बाजारोंमें अपना माल पहुँचाना पड़ता है। पूँजीपति अपना माल दूसरे देशोंमें बेचकर मुनाफा उठाना तो पसन्द करते हैं; परंतु अपने देशमें दूसरे देशके पूँजीपतियोंका माल

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7.22 मार्क्सवाद एवं युद्ध ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.22 मार्क्सवाद एवं युद्ध मार्क्सवादी कहते हैं कि ‘युद्ध जंगलीपनका चिह्न है। स्वयं कमाकर खानेके बजाय दूसरोंसे छीनकर पेट भरना ही युद्धका स्वरूप है। सामाजिक भावना एवं सहयोगकी बुद्धि होनेसे परिवारके रूपमें संगठित होते ही आपसी लड़ाई बन्द हो गयी। एक परिवारके आदमी एक हित समझकर आपसमें न लड़कर दूसरे परिवारसे लड़ने लगे फिर लड़ाईके

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7.21 मार्क्सवाद एवं राष्ट्र ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.21 मार्क्सवाद एवं राष्ट्र परंतु जबतक सभी राष्ट्र एवं समाज इस उच्चकोटिके सिद्धान्तको मान नहीं लेते, तबतक क्या किसी सज्जन व्यक्ति या राष्ट्रको किसी कूटनीतिक व्यक्ति या राष्ट्रकी कूटनीतिका शिकार बन जाना चाहिये? रामराज्यवादी ऐसे अवसरके लिये अनिवार्यरूपसे आनेवाले युद्धका स्वागत करता है। मायावीके साथ निरी साधुतासे काम नहीं चलता— यस्मिन् यथा वर्तते यो मनुष्य-

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7.20 समाजवादी सब्जबाग ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.20 समाजवादी सब्जबाग व्यक्तिगत स्वतन्त्रता यदि अच्छी वस्तु है, उससे इतना बड़ा लाभ हुआ, तो कुछ दोष होनेसे ही वह हेय नहीं होती। बिजलीसे प्रकाश फैलाया जा सकता है, मशीन भी चलायी जा सकती है और आत्महत्या भी की जा सकती है। अत: बुद्धिमानोंका कर्तव्य है कि वे ऐसा मार्ग निकालें, जिससे व्यक्तिगत स्वतन्त्रताकी रक्षा

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7.19 सामाजिक संकट ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.19 सामाजिक संकट जो कहा जाता है कि ‘सम्पूर्ण उत्पादन-साधनों या मुनाफा कमानेके साधनोंका समाजीकरण हो जानेसे कोई वस्तु मुनाफाके लिये कमायी ही न जायगी, उपयोगके लिये आवश्यकताके अनुसार ही सब वस्तुओंका उत्पादन होगा, अतएव क्रय-शक्तिके घटने और बाजारमें माल न खपत होनेका प्रश्न ही नहीं उठेगा। पूँजीवादमें कल-कारखाने व्यक्तिगत होते हैं, अत: पूँजीपतिके सामने

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