आर्थिकअसंतुलन

7.25 अशान्तिकी जड़—आर्थिक विषमता ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.25 अशान्तिकी जड़—आर्थिक विषमता मार्क्सवादके दृष्टिकोणसे ‘वर्तमान संसारमें व्यक्तिके जीवनसे लेकर अन्ताराष्ट्रिय परिस्थितितक सभी संकटोंका कारण आर्थिक विषमता ही है। समाजमें पैदावार समाजके हितके लिये नहीं की जाती, बल्कि कुछ व्यक्तियोंके मुनाफेके लिये ही की जाती है। इसीलिये ऐसी विषमता पैदा हो जाती है। इस विषमताको कायम रखनेके लिये पूँजीवादी-समाजमें सरकारकी व्यवस्था और अन्ताराष्ट्रिय क्षेत्रमें […]

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7.18 आर्थिक संकट ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.18 आर्थिक संकट मार्क्सवादके दृष्टिकोणसे ‘पूँजीवादी समाजमें पैदावारका काम समाजके सभी लोग मिलकर करते हैं, परंतु प्रत्येक पूँजीवादी अपने ही लाभको सामने रखता है। इसलिये सम्मिलित तौरपर समाजकी आवश्यकताओंका न तो सही अनुमान ही हो सकता है और न उसके उपयुक्त पैदावार ही। पूँजीवादी समाजमें उत्पादक अपने व्यवहारके लिये नहीं, बल्कि उसे बेचकर मुनाफा कमाननेके

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6.5 आर्थिक असंतुलन ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

6.5 आर्थिक असंतुलन आर्थिक असंतुलन मिटानेके लिये ही शास्त्रोंमें दानका महत्त्व कहा गया है। अपनी श्रद्धासे, दूसरोंके उपदेशसे, लज्जासे, भयसे किसी तरह भी देना परम कल्याणकारी है। शास्त्रोंमें यह भी कहा गया है कि जो धनी होकर दानी नहीं और निर्धन होकर तपस्वी नहीं, ऐसे लोग गलेमें पत्थर बाँधकर समुद्रमें डुबा देने योग्य होते हैं—

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6. वर्ग-संघर्ष – 6.1 सापेक्ष और शाश्वत नियम ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

6. वर्ग-संघर्ष ‘वर्गसंघर्ष’ मार्क्सवादका एक मूल सिद्धान्त है। ऐतिहासिक विवेचनसे वह इसी निष्कर्षपर पहुँचता है कि समाजका विकास वर्गसंघर्षसे प्रभावित होता है। समाजमें दो वर्ग होते हैं—शोषित तथा शोषक। उत्पादनके साधनोंपर जिनका अधिकार होता है, वह शोषक वर्ग है; दूसरा शोषित। प्रत्येक नियम, रीति, रिवाज, दर्शन, कला, इतिहास—सभी वर्ग-संघर्षके विचारोंसे प्रभावित होते हैं। उत्पादनके साधनोंमें

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