द्वन्द्वमान

9.5 अतिभौतिकवाद और द्वन्द्वमान ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

9.5 अतिभौतिकवाद और द्वन्द्वमान अतिभौतिकवादी विचारमें—‘प्रकृति वस्तुओं और दृश्यगत घटनाओंका एक आकस्मिक बटोर है, जहाँ वे एक-दूसरेसे विच्छिन्न तथा स्वतन्त्र हैं।’ इसके विपरीत द्वन्द्वमान इन वस्तुओं और दृश्यमान घटनाओंको एक सूत्रमें बाँधता है, जिसमें उनकी पारस्परिक निर्भरता प्रकाश पाती है। इसलिये द्वन्द्वमानके अनुसार किसी प्राकृतिक घटनाको स्वतन्त्ररूपसे, अपने बहिरावेष्टनसे अलगकर नहीं समझा जा सकता; क्योंकि […]

9.5 अतिभौतिकवाद और द्वन्द्वमान ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज Read More »

9.4 ऐतिहासिक द्वन्द्ववाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

9.4 ऐतिहासिक द्वन्द्ववाद कहा जाता है कि ‘इतिहासके लिये भी यही बात लागू है। सब सभ्य जातियोंका, जो एक निर्दिष्ट अवस्थाको पार कर चुकी हैं, आरम्भ भूमिके सामृद्धिक स्वामित्वसे होता है। कृषिके विकासके लिये एक स्तरपर भूमिका सामूहिक स्वामित्व उत्पादन-क्रियाके लिये बाधकस्वरूप बन जाता है। इसका अन्त किया जाता है, इसका प्रतिषेध होता है और

9.4 ऐतिहासिक द्वन्द्ववाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज Read More »