धर्मविरोधी

6.14 कम्युनिष्टोंकी कूटनीति ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

6.14 कम्युनिष्टोंकी कूटनीति ‘कम्युनिष्टोंके हाथ शासनसूत्र न जाकर प्रजातन्त्रवादियोंके हाथमें आनेपर’ मार्क्सकी रायमें ‘कम्युनिष्टोंको उससे अलग ही रहकर उनके कामोंमें अड़ंगा डालते रहना चाहिये। उनके सामने ऐसी शर्तें पेश करनी चाहिये, जिनका मानना असम्भव हो। क्रान्तिके अवसरपर श्रमजीवियोंको चाहिये कि मध्यम श्रेणीवालोंके साथ किसी प्रकारके समझौतेका विरोध करें। प्रजातन्त्रवादियोंको अत्याचार करनेके लिये बाध्य कर दें। […]

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6.4 शोषक-शोषित ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

6.4 शोषक-शोषित भूमि आदिके लिये युद्ध, संघर्ष होने; मालिक-गुलाम, शोषक-शोषित, उत्पीड़क-उत्पीड़ित आदिकी कल्पना तो ह्रासकालकी बात है। सृष्टिके प्रारम्भकालमें सम्पूर्ण प्रजा धर्म-नियन्त्रित थी। उस समय सत्त्वगुणका पूर्ण विस्तार था। सभी समझते थे कि सभी प्राणी अमृतके पुत्र हैं—‘अमृतस्य पुत्रा:।’ सभी प्राणियोंकी सहज समानता, स्वतन्त्रता एवं भ्रातृताकी मूल आधार भित्तिको समझते थे। व्यवहारमें सब एक दूसरेके

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5. मार्क्सीय द्वन्द्ववाद – 5.1 एंजिल्सका प्रकृतिसम्बन्धी द्वन्द्ववाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

5. मार्क्सीय द्वन्द्ववाद ‘डायलेक्टिस’ (द्वन्द्ववाद) ग्रीक (यूनानी) भाषाका शब्द है। यह ‘दियालेगो’ से निष्पन्न होता है। इसका अर्थ है चर्चा या विवाद करना। इसी विवादस्वरूप द्वन्द्ववादके आधारपर प्राचीन-कालमें कोई वक्ता विपक्षीके तर्ककी असंगति दिखलाकर उसका निराकरण कर सत्यसिद्धान्तका प्रतिपादन करता था। उस समयके दार्शनिकोंका ऐसा विश्वास था कि विचारोंमें परस्पर विरोधप्रदर्शनसे अथवा विरोधी मतोंके संघर्ष

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1.3 अन्य पाश्चात्य-दर्शन ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

1.3 अन्य पाश्चात्य-दर्शन रोजेनिलस आदि दार्शनिक धर्मविरोधी थे। रोजर बेकन इत्यादिने विचार-स्वातन्त्र्यमें धर्मको कुछ नहीं गिना। धर्मके विषयमें यूरोपमें उस समय सुधारकी भावना उद‍्भूत हुई तथापि वे सुधारक भी संकुचित वृत्तिके थे। कैलविनने सुधारक होते हुए भी ‘रक्तसंचालन’ के तथ्यके आविष्कारमें लगे हुए सर्विटसको जीवित ही जलवा दिया था। बेकनका कहना है कि ‘सर्वत्र श्रेष्ठ

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