नागरिकस्वतन्त्रता

11.8 स्वतन्त्रताका अवबोध ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

11.8 स्वतन्त्रताका अवबोध मार्क्सवादी कहते हैं कि ‘जनता जन्मत: ही स्वतन्त्र नहीं उत्पन्न होती, परंतु शनै:-शनै: स्वतन्त्रता उपार्जित कर लेती है। स्वतन्त्रता प्रकृतिपर प्रभुत्व प्राप्त करनेके लिये किये जानेवाले संघर्ष एवं वर्गसंघर्षद्वारा उपार्जित एवं विकसित की जाती है। समाजमें विभिन्न वर्गोंद्वारा वस्तुत: उपार्जित एवं अधिकृत स्वतन्त्रता एवं उस स्वतन्त्रताके बन्धन तत्तद्वर्गोंकी स्थिति एवं उद्देश्योंके अनुसार […]

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11.7 आवश्यकता एवं स्वतन्त्रता ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

11.7 आवश्यकता एवं स्वतन्त्रता ‘युक्तिपूर्ण या उपपत्त्यात्मक ज्ञान वस्तुओंकी ‘आवश्यकताओं’ का उद्घाटन करता है और यह भी बतलाया है कि आवश्यकका महत्त्व सर्वदा काकतालीय (ऐक्सिडेण्टल)-से ही विदित होता है। ज्ञानकी प्राप्ति (acquisition) से हमें स्वतन्त्रता मिलती है, जो आवश्यकताके ज्ञानपर आधारित आत्मनियन्त्रण एवं बाह्यप्रकृति-नियन्त्रणके ही रूपमें हैं। हम उस समय स्वतन्त्र हैं, जब ज्ञानके आधारपर

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3.8 वैयक्तिक स्वतन्त्रता ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

3.8 वैयक्तिक स्वतन्त्रता स्टुअर्टकी पुस्तक ‘स्वतन्त्रता’ (लिबर्टी, १८५९) व्यक्तिगत स्वतन्त्रताका सर्वोत्कृष्ट समर्थन करनेवाली है। व्यक्तिकी स्वतन्त्रता एवं व्यक्तित्वके लिये ‘मिल’ ने व्यक्तिवादको आवश्यक बतलाया। उसका कहना था कि ‘मानव-प्रगतिके लिये विचार एवं भाषणकी स्वतन्त्रता अत्यावश्यक है।’ कहते हैं, वह सनकी लोगोंकी भी स्वतन्त्रताका समर्थक था। उसका कहना था कि ‘इनमेंसे न जाने किसके विचारसे किसी

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3.6 व्यक्तिवाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

3.6 व्यक्तिवाद यद्यपि सभी सिद्धान्तोंमें व्यक्तिगत स्वतन्त्रताको महत्त्व दिया जाता है, किंतु व्यक्तिवादमें व्यक्तिको सर्वोच्च स्थान दिया गया है। इस मतमें न्याय एवं सुरक्षाके अतिरिक्त व्यक्तिकी स्वतन्त्रतामें समाज या राज्यका हस्तक्षेप ही नहीं होना चाहिये। इसीलिये व्यक्तिवादी राज्यमें व्यक्तिको निजी, सामाजिक तथा आर्थिक विषयोंमें स्वतन्त्र छोड़ देना चाहिये। इसीको ‘यद्भाव्यं-नीति’ कहा जाता है। यह पूँजीवादियोंके

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3.4 रूसोके विचार ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

3.4 रूसोके विचार १७८९ की फ्रांसकी राज्यक्रान्तिका प्रवर्तक रूसो दस वर्षकी अवस्थामें ही एक पादरीके यहाँ नौकरी करने लगा। बुरी आदतोंके कारण वहाँसे उसे हटा दिया गया। बादमें वह दूसरी नौकरीमें लग गया। वहाँ वह पूरा झूठा, चोर और आवारा बन गया। उसे मित्रोंसे सदा ही सहायता मिलती रही। बादमें एक धनाढॺ स्त्रीके सहारे उसे

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3.3 जान लॉक ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

3.3 जान लॉक जान लॉक (१६३२-१७०४) भी समझौतावादी था। उसे सीमित राजतन्त्रमें विश्वास था। उसका पिता ‘प्यूरिटन’ सम्प्रदायका अनुयायी था। ‘लॉक’ १६८८ की रक्तहीन क्रान्तिका दार्शनिक माना जाता है। इंग्लैण्डके जेम्स द्वितीयके पदच्युत होनेपर विलियम और मेरीको राज्यपदके लिये निमन्त्रित किया गया। ‘बिल ऑफ राइट्स’ और ‘ऐक्ट ऑफ सेट्लमेन्ट’ नियमोंद्वारा कार्यपालिका संसद्के अधीन बनी। संसद्का

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3.2 थामस हॉब्स ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

3.2 थामस हॉब्स थामस हॉब्स (१५८८-१६७९) ब्रिटेनके गृहयुद्धकाल (१६४२-४९)-का दार्शनिक था। कहा जाता है कि इसकी माताने भयभीत होकर समयसे पहले उसे जन्म दिया था, इसलिये वह भयसे अत्यधिक प्रभावित रहता था। १६४० में इंग्लैण्डकी दीर्घ संसद्की बैठकके समय ब्रिटेनसे भागनेवालोंमें वह सर्वप्रथम व्यक्ति था। उस समय वहाँ राज्यनियम, राजसत्ता, नागरिकता सम्बन्धी विभिन्न विचारधाराएँ प्रचलित

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