न्याय और विचारधारा

9.14 उत्पत्तिके साधन और न्याय ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

9.14 उत्पत्तिके साधन और न्याय मार्क्सवादी कहते हैं कि ‘न्याय भी सदा एक-सा नहीं रहता; किंतु उसमें रद्दोबदल होता रहता है। जैसे प्राचीन भारतमें शूद्रोंका विद्या पढ़ना अन्याय और एक पुरुषको दो पत्नियाँ रखना न्याय था। विधवाका सती होना महापुण्य था, परंतु आज वह अपराध है। न्याय क्या है, इसका निर्णय रहता है उन लोगोंके […]

9.14 उत्पत्तिके साधन और न्याय ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज Read More »

6.4 शोषक-शोषित ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

6.4 शोषक-शोषित भूमि आदिके लिये युद्ध, संघर्ष होने; मालिक-गुलाम, शोषक-शोषित, उत्पीड़क-उत्पीड़ित आदिकी कल्पना तो ह्रासकालकी बात है। सृष्टिके प्रारम्भकालमें सम्पूर्ण प्रजा धर्म-नियन्त्रित थी। उस समय सत्त्वगुणका पूर्ण विस्तार था। सभी समझते थे कि सभी प्राणी अमृतके पुत्र हैं—‘अमृतस्य पुत्रा:।’ सभी प्राणियोंकी सहज समानता, स्वतन्त्रता एवं भ्रातृताकी मूल आधार भित्तिको समझते थे। व्यवहारमें सब एक दूसरेके

6.4 शोषक-शोषित ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज Read More »

3.4 रूसोके विचार ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

3.4 रूसोके विचार १७८९ की फ्रांसकी राज्यक्रान्तिका प्रवर्तक रूसो दस वर्षकी अवस्थामें ही एक पादरीके यहाँ नौकरी करने लगा। बुरी आदतोंके कारण वहाँसे उसे हटा दिया गया। बादमें वह दूसरी नौकरीमें लग गया। वहाँ वह पूरा झूठा, चोर और आवारा बन गया। उसे मित्रोंसे सदा ही सहायता मिलती रही। बादमें एक धनाढॺ स्त्रीके सहारे उसे

3.4 रूसोके विचार ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज Read More »