पूँजीवादी

10. मार्क्सीय समाज-व्यवस्था – 10.1 पूँजीवादी युग और स्त्री ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

10. मार्क्सीय समाज-व्यवस्था मार्क्सके अनुसार ‘समाज’ व्यक्तियों और परिवारोंका समूह है। समाजकी व्यवस्थामें आनेवाला कोई भी परिवर्तन व्यक्तियों और परिवारोंपर प्रभाव डाले बिना नहीं रह सकता। परिवार—स्त्री-पुरुषका सम्बन्ध समाजका केन्द्र है। समाजकी आर्थिक अवस्था मनुष्योंको जिस अवस्थामें रहनेके लिये मजबूर करती है, उसी ढंगपर मनुष्य परिवारको बना लेता है। कुछ देशोंमें बहुत बड़े-बड़े सम्मिलित परिवार […]

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7.24 पूँजीवादी साम्राज्यवाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.24 पूँजीवादी साम्राज्यवाद मार्क्सवादके अनुसार ‘किसी देशका पूँजीवाद जब मुनाफेके लिये अपने देशसे बाहर कदम फैलाता है, तब वह साम्राज्यवादका रूप धारण कर लेता है। प्राचीन समयका साम्राज्यवाद सैनिक आक्रमणके रूपमें आगे बढ़ता था और पराधीन देशोंका शोषण भूमि-करके रूपमें बरतता था। पूँजीवादका साम्राज्य-विस्तार आरम्भ होता है व्यापारसे। फिर अपने व्यापारको दूसरे देशोंके मुकाबलेमें सुरक्षित

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7.23 अन्ताराष्ट्रिय क्षेत्रमें पूँजीवाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.23 अन्ताराष्ट्रिय क्षेत्रमें पूँजीवाद मार्क्सके अनुसार ‘वैज्ञानिक साधनोंके विकाससे पैदावारकी शक्तिके बहुत अधिक बढ़ जानेपर जब भिन्न-भिन्न देशोंके पूँजीपति अपनी पैदावारको अपने देशमें नहीं खपा सकते, तब उन्हें दूसरे देशोंके बाजारोंमें अपना माल पहुँचाना पड़ता है। पूँजीपति अपना माल दूसरे देशोंमें बेचकर मुनाफा उठाना तो पसन्द करते हैं; परंतु अपने देशमें दूसरे देशके पूँजीपतियोंका माल

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7.13 पूँजीवाद और कृषि ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.13 पूँजीवाद और कृषि कृषिके सम्बन्धमें मार्क्सवादियोंका कहना है कि उद्योग-धन्धोंमें पूँजीवादी ढंगपर संगठित हो जानेसे पहले भी खेती और खेतीसे सम्बन्ध रखनेवाले कारोबार पशुपालन, फलोंको उत्पन्न करना आदि जारी थे और आजतक वे सब काम कहीं उसी रूपमें और कहीं परिवर्तित रूपमें चले जा रहे हैं। ‘पूँजीवादका पहला प्रभाव खेतीपर यह पड़ा कि उद्योग-धन्धोंके

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6.8 वास्तविक पूँजीवाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

6.8 वास्तविक पूँजीवाद कहा जाता है कि ‘पूँजीवादी समाज भी प्राचीन वर्गोंके समान ही उसी वर्गकलहपर एक दलके द्वारा दूसरे दलके रक्तशोषणपर ही स्थिर है। साथ ही उसी पूँजीवादके द्वारा ही मनुष्यको वह उत्पादन-शक्ति भी प्राप्त होती है, जिसके द्वारा भौतिक बन्धनों और प्राकृतिक गुलामीसे मनुष्यको छुटकारा मिलता है और वह वर्गकलहको त्यागकर बौद्धिक सभ्यता

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