मनुस्मृति आलोचना

“यथेमां वाचं कल्याणीम्” ~ श्रीसनातनधर्मलोक भाग – ३ ~ लेखक – पं. दीनानाथशर्मी शास्त्री सारस्वतः, विधावाचपत्ति; । ~ भाग ४

(१४) इसके अतिरिक्त उक्त मन्त्र का यदि स्वामी दयानन्द-प्रोक्त अर्थ माना जाए, तो इससे स्वामी दयानन्द सरस्वती से अभिमत गुणकर्म कृत वर्णव्यवस्था भी खण्डित हो जाती है। देखिये – १. यहाँ पर प्रष्टव्य है कि – ब्राह्मणादि वर्ण इस मन्त्र में परमात्मा को जन्म से अभिमत हैं, वा गुणकर्म से ? यदि जन्म से, तब […]

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“यथेमां वाचं कल्याणीम्” ~ श्रीसनातनधर्मलोक भाग – ३ ~ लेखक – पं. दीनानाथशर्मी शास्त्री सारस्वतः, विधावाचपत्ति; । ~ भाग ३

(६) स्वामी दयानन्द सरस्वती जी को ही स्त्री-शूद्रादि के वेदाधिकार का इस मन्त्र में भ्रम क्यों हुआ, इस पर भी विचार कर लेना चाहिये । उस में कारण यह है कि उक्त मन्त्र में उत्तम पुरुष की क्रिया ‘आवदानि’ का प्रयोग है और इस मन्त्र का देवता ‘ईश्वर’ है। परन्तु ऐसा करने पर उक्त मन्त्र

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