(श्री शाण्डिल्य जी) (४) ‘भारतीय-धर्मशास्त्र’ के ८३ पृष्ठ में श्रीशाण्डिल्यजी ने ‘यथेमां वाचं’ का अर्थ करते हुए लिखा है-वेद में लिखा है- ‘यथेमां वाचं कल्याणीमावदानि जनेभ्यः’ (जैसे मैं इस कल्याणी वाणी को सभी मनुष्यों के लिए कहता हूँ) यह मन्त्रद्रष्टा ऋषि की उक्ति है जो भगवान् की वाणी का प्रचारक है। इस मन्त्र की आज्ञा… Continue reading “यथेमां वाचं कल्याणीम्” ~ श्रीसनातनधर्मलोक भाग – ३ ~ लेखक – पं. दीनानाथशर्मी शास्त्री सारस्वतः, विधावाचपत्ति; । ~ (श्री शाण्डिल्य जी) ~ भाग १०
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“यथेमां वाचं कल्याणीम्” ~ श्रीसनातनधर्मलोक भाग – ३ ~ लेखक – पं. दीनानाथशर्मी शास्त्री सारस्वतः, विधावाचपत्ति; । ~ भाग ७
(३३) तो जब यहाँ ईश्वर प्रतिपादक नहीं, तब ‘जैसे मैं ईश्वर चार वेदरूप वाणी का उपदेश करता हूं’ यह स्वामी दयानन्द सरस्वती का अभिप्रेत अर्थ भी ठीक नहीं हो सकता, क्योंकि ‘अहम्’ यह प्रतिपादक का शब्द है, प्रतिपाद्य का नहीं। जबकि ईश्वर यहाँ प्रतिपाद्य है, प्रतिपादक नहीं, तो वह यहाँ ‘मैं ईश्वर’ यह कैसे कह… Continue reading “यथेमां वाचं कल्याणीम्” ~ श्रीसनातनधर्मलोक भाग – ३ ~ लेखक – पं. दीनानाथशर्मी शास्त्री सारस्वतः, विधावाचपत्ति; । ~ भाग ७