(तर्करत्नजी के आक्षेप) (३) ‘अछूतोद्धार-निर्णय’ (पृष्ठ ३०-३१-३३-३४ पृष्ठ) में श्री ‘तर्करत्न’ जी ने भी सनातनधर्मियों से किये जाते हुए ‘यथेमां वाचं’ के अर्थ में कई आक्षेप किये हैं, उन पर भी विचार कर लेना चाहिए। आप लिखते हैं कि- (क) ‘वेद में कल्याणकारी-वाणी से सर्वत्र भाष्यकारों ने ‘वेदवाणी’ का ग्रहण किया है, पर यह बात… Continue reading “यथेमां वाचं कल्याणीम्” ~ श्रीसनातनधर्मलोक भाग – ३ ~ लेखक – पं. दीनानाथशर्मी शास्त्री सारस्वतः, विधावाचपत्ति; । ~ (तर्करत्नजी के आक्षेप) ~ भाग ९