सत्यार्थ प्रकाश

“यथेमां वाचं कल्याणीम्” ~ श्रीसनातनधर्मलोक भाग – ३ ~ लेखक – पं. दीनानाथशर्मी शास्त्री सारस्वतः, विधावाचपत्ति; । ~ भाग ७

(३३) तो जब यहाँ ईश्वर प्रतिपादक नहीं, तब ‘जैसे मैं ईश्वर चार वेदरूप वाणी का उपदेश करता हूं’ यह स्वामी दयानन्द सरस्वती का अभिप्रेत अर्थ भी ठीक नहीं हो सकता, क्योंकि ‘अहम्’ यह प्रतिपादक का शब्द है, प्रतिपाद्य का नहीं। जबकि ईश्वर यहाँ प्रतिपाद्य है, प्रतिपादक नहीं, तो वह यहाँ ‘मैं ईश्वर’ यह कैसे कह […]

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“यथेमां वाचं कल्याणीम्” ~ श्रीसनातनधर्मलोक भाग – ३ ~ लेखक – पं. दीनानाथशर्मी शास्त्री सारस्वतः, विधावाचपत्ति; । ~ भाग १

आजकल के अर्वाचीन-विचार वाले व्यक्ति स्त्री एवं शूद्रादि को वेदाधिकारी सिद्ध करने के लिए “यथेमां वाचं कल्याणीम्” यह वेद-मन्त्र तथा अन्य वचन उपस्थापित किया करते हैं। हम उस पर विचार करते हैं। ‘आलोक’ पाठकगण इसे ध्यान से देखें। वह सम्पूर्ण मन्त्र यह है— ‘यथेमां वाचं कल्याणीमावदानि जनेभ्यः।ब्रह्मराजन्याभ्यां शूद्राय चार्याय च स्वाय चारणाय च।प्रियो देवानां दक्षिणायै

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