पंक्ति और पंक्तिपावन ब्राह्मण
सरयूपारीण ब्राह्मणों में पहिले बहुत सुशिक्षित, सच्चरित्र, आचारनिष्ठ ब्राह्मण हुये हैं। इन ब्राह्मणों से सरयूपारीण ब्राह्मणों की पंक्ति की प्रतिष्ठा बढ़ी। इसलिये उनको ‘पंक्तिपावन’ कहा गया। मनु स्मृति ग्रंथ में मनु महाराज ने पंक्तिपावन ब्राह्मणों का लक्षण निम्नलिखित रूप में बताया है-
वेद जानने वालों में अग्रसर छः शास्त्रों के ज्ञाता, जिनके पूर्वज भी वेदों के ज्ञाता रहे हों तथा स्वयं भी वेदज्ञ (श्रोत्रिय) हों ऐसे ब्राह्मण ‘पंक्तिपावन’ कहलाते हैं।
आगे कहा गया है कि जो ब्राह्मण ब्रह्मविधि से विवाहिता स्त्री के पुत्र हों, प्रातः और सायंकाल पंचाग्नि में हवन करते हों, व्रत-नियम का पालन करते हों। प्रथम आश्रम में ब्रह्मचारी रहे हों, सहस्त्र गोदान किये हों। ऐसे ब्राह्मण ‘पंक्तिपावन’ कहलाने के अधिकारी होते हैं। १
आजकल ये लक्षण जिनमें नहीं पाये वे भी अपने को ‘पंक्तिपावन’ कहते हैं। वे कहते हैं कि हमारे कुल में पंक्तिपावन हुये हैं। अतः उनकी वंश परम्परा में होने से हम भी ‘पंक्तिपावन’ हैं। यहाँ यह कसौटी है कि पंक्तिपावन ब्राह्मण तो अपने गुण और कर्म से होता है कुल या वंश से नहीं होता। सोहगौरा, मामखोर, पिपरा, पयासी, पींडी आदि गाँवों में जन्म लेने से या शुक्ल, मिश्र, त्रिपाठी, पाण्डेय आदि कुल या वंश में जन्म लेने से कोई भी ब्राह्मण पंक्तिपावन नहीं हो सकता।
जनसंख्या वृद्धि होने और जीविका का साधन खोजने में, धनोपार्जन की दृष्टि से नौकरी के लिए वेदों, शास्त्रों का, संस्कृत भाषा का पठन-पाठन छूट गया है। अन्य भाषाएँ पढ़ कर ब्राह्मण लोगों के लड़के लड़कियाँ इंजीनियर डाक्टर बन रहे हैं। सेना और पुलिस आदि में भरती हो रहे हैं। प्रशासनिक उच्च पदों पर तथा उससे नीचे क्लर्क और चपरासी, चौकीदार और रसोइयों तक का काम कर रहे हैं। संध्या गायत्री का ज्ञान नहीं है। गोत्र प्रवर तक नहीं जानते। ऐसे सरयूपारीण ब्राह्मण अब पुरानी पद- प्रतिष्ठा को बता कर अपने को उत्तम होने का दावा करते हैं। ऐसे लोग अपने को (पँतिहार) और पंक्तिपावन कुल की दुहाई देते हैं। अब तो धन की सरयूपारीण ब्राह्मणों में भी प्रधानता ही अधिक है। यहाँ यह कहना उचित होगा कि सरयूपार के गाँवों
(आस्पवों या मूल स्थानों) भेड़ी, बकरुआ, पयासी, सोहगौरा आदि का महत्त्व केवल इस लिये है कि सरयूपारीण ब्राह्मणों के परिवारों के पूर्वज गोत्र प्रवर्तक ऋषिच लेवल थे। उनके वंशज होने के नाते वे गाँव हमारे लिये सम्मान्नीय हैं किन्तु उन गाँवों के नाम से अपनी प्रतिष्ठा जोड़ना या प्रतिष्ठा बढ़ाना उचित नहीं है क्योंकि पूर्वजों के सदाचरण से जो प्रतिष्ठा बन गई थी उसी प्रतिष्ठा को वर्तमान पीढ़ी परिस्थितिवश कायम रखने में असमर्थ हो गई है।
इस पुस्तक में पृष्ठ १८ पर सरयूपारीण ब्राह्मणों में पंक्ति का उल्लेख किया गया है। पंक्ति से किसी कारण या परिस्थितिवश सम्बन्ध टूट जाने पर उन गोत्रों के वंशों के ब्राह्मणों को अपांक्तेय ब्राह्मण या पंक्तित्रुटित ब्राह्मण कहते हैं। अब जीविकावश बहुत से ब्राह्मण सरयूपार क्षेत्र से बाहर अन्य जिलों में तथा अन्य प्रदेशों में बस गये हैं। उनका सम्बन्ध मूल स्थान से टूट गया है। अब सरयूपार में केवल निम्नलिखित ब्राह्मणों में पंक्ति रह गई है-
१. शुक्ल | मामखोर | गर्ग गोत्र |
२. मिश्र | मधुबनी | गौतम गोत्र |
३. मिश्र | पयासी | वत्स गोत्र |
४. मिश्र | बट्टोपुर मार्जनी | वशिष्ठ गोत्र |
५. पाण्डेय | इटारि | सावर्णि गोत्र |
६. पाण्डेय | नागचौरी | वत्स गोत्र |
७. पाण्डेय | त्रिफला | कश्यप गोत्र |
८. पाण्डेय | मलाँव | संकृति गोत्र |
९. पाण्डेय | इटिया | गर्ग गोत्र |
१०. त्रिपाठी | पिंडी | शाण्डिल्य गोत्र |
११. त्रिपाठी | भाला | शाण्डिल्य गोत्र |
१२. त्रिपाठी | सोहगौरा | शाण्डिल्य गोत्र |
१३. त्रिपाठी | सिंहनजोरी | भार्गव गोत्र |
१४. द्विवेदी | सरारि | भरद्वाज गोत्र |
और सोहगौरा त्रिपाठी ३ में और शेष १३ में माने जाते हैं। भोजन, विवाह आदि करते हैं। सरयूपार में इनमें से मामखोर, शुक्ल, मधुबनी, मिश्र शेष पंक्ति से टूट गये हैं। पंक्ति वाले पंतिहा कहलाते हैं। वे लोग परस्पर भोजन, विवाह आदि करते हैं। सरयूपार में इनमें से मामखोर, शुक्ल, मधुबनी, मिश्र और सोहगौरा त्रिपाठी ३ में और शेष १३ में माने जाते हैं।
कुछ लोग कुछ अन्य स्थानों के ब्राह्मणों की भी पंक्ति बताते हैं।
१. अग्र्या सर्वेषु वेदेषु सर्वप्रवचनेषु च। श्रोत्रियान्वयजांश्चैव विज्ञेयाः पंक्तिपावनाः ।।
वेदार्थविद् प्रवक्ता च ब्रह्मचारी सहस्त्रदः। शतायुषश्च विज्ञेया ब्राह्मणाः पङ्क्तिपावनाः ।। – मनुस्मृति, अध्याय ३
श्रोत: हरिदास संस्कृत सीरीज ३६१, लेखक: पं. द्वारकाप्रसाद मिश्र , शास्त्री , चौखम्भा संस्कृत सीरीज ऑफिस , वाराणसी
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