3.23 फॉसीवाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

3.23 फॉसीवाद

मुसोलिनी एवं हिटलरके फॉसीवाद एवं नाजीवादने डार्विनके संघर्षको बहुत महत्त्व दिया और स्पेंसर आदिके इस पक्षको अपनाया कि ‘जो संघर्षमें सफल हो, वही जीवित रहे।’ अर्थक्रियाकारित्ववाद इसका प्राण है। उत्कृष्ट जातिका यह प्रकृतिसिद्ध अधिकार है कि वह निकृष्ट जातिका शासन करे। उसके अनुसार मानव-इतिहास एक युद्धकी कहानी है। मानव-प्रगति युद्धके द्वारा ही होती है। इसमें भी वर्गसों तथा सोरेलकी भाँति अन्ध-श्रद्धाको बढ़ाना आवश्यक माना जाता था। उसके मतानुसार ‘जन-समूह एक स्त्रीकी भाँति होता है, जो बलवान् एवं नाटकीय व्यक्तिकी तरफ आकृष्ट होता है।’ इसीलिये राज्य, देश एवं नेताकी भक्तिको खूब प्रोत्साहन दिया गया, रक्तकी पवित्रतापर भी बहुत बल दिया गया, भौतिकताके स्थानपर आध्यात्मिकता, गौरव, मान, चरित्रको मानव-जीवनका लक्ष्य बतलाया गया। राज्यको साध्य और व्यक्तिको साधन कहा गया। इनके मतानुसार सर्वाधिकारी राज्यके संरक्षणमें ही व्यक्तिकी सर्वविध उन्नति सम्भव है, राज्य ही सर्वेसर्वा है। केन्द्रिय कार्यपालिका एक प्रकारकी अधिनायककी परामर्श-समिति थी। जनसत्ताके स्थानपर नेतृसत्ता ही फॉसीवादकी विशेषता थी। रूसी समाजवाद एवं फॉसीवाद दोनों ही सर्वाधिकारवादी अधिनायकवादी हैं। समाजवादी जनवादका नाम लेते हैं। फॉसीवादी जनवादके स्पष्ट विरोधी थे।


श्रोत: मार्क्सवाद और रामराज्य, लेखक: श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज, गीता सेवा ट्रस्ट
निवेदन : मूल पुस्तक क्रय कर स्वयं की तथा प्रकाशक की सहायता करें

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