6.11 राष्ट्रका वशीकरण यद्यपि समाजका आधार व्यक्ति है, तथापि बिना संघटनके समाज नहीं बनता। संगठित व्यक्तियोंका प्रथम समाज कुटुम्ब ही है। उसके संचालनमें जिन गुणोंकी आवश्यकता होती है, वास्तवमें राष्ट्रके संचालनमें भी उन्हीं गुणोंकी आवश्यकता है। कुटुम्बमें भिन्न स्वार्थोंका संघर्ष है। किसी-न-किसी तरह उसमें सामंजस्य स्थापित करना छोटे, बड़े, बूढ़े, स्त्री, पुत्र, कलत्र सबको सन्तुष्ट… Continue reading 6.11 राष्ट्रका वशीकरण ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज