11.6 विकास ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

11.6 विकास ‘ज्ञान, जब हम वस्तुओंके साथ सक्रिय सम्बन्धोंमें आते हैं, तब प्राप्त होता है और प्रतीतिसे निर्णयकी ओर विकसित होता है। ज्ञानका विकास प्रत्ययात्मकसे उपपत्त्यात्मक (युक्तिपूर्ण सिद्धि) तक, वस्तुओंके रूप-रंग आदिके केवल बहिरंग (ऊपरी-ऊपरी) निर्णयोंसे उनके आवश्यक गुण-धर्मों, पारस्परिक संयोगों तथा नियमोंके विषयमें तर्कपूर्ण निष्कर्षोंतकके मार्गपर होता है। इस प्रकार हम बाह्य (वस्तुमय) संसारका… Continue reading 11.6 विकास ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

10.4 वर्गवाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

10.4 वर्गवाद मार्क्सके मतसे ‘भारतमें औद्योगिक विकाससे होनेवाला परिवर्तन यूरोपके प्रभावसे देरमें आरम्भ हुआ, बल्कि अभी शनै:-शनै: हो रहा है और पूरे रूपमें हो भी नहीं पाया, स्त्रियोंकी अवस्थामें भी परिवर्तन अभीतक यहाँ नहीं हो पाया है। जनसाधारण या जमींदार-श्रेणी और पूँजीपति-श्रेणीकी स्त्रियाँ इस देशमें अभीतक उसी अवस्थामें हैं, परंतु मध्यम श्रेणीकी स्त्रियोंकी अवस्थामें—जिनपर आर्थिक… Continue reading 10.4 वर्गवाद ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

10.3 अर्थमूलक समाजमें सामाजिक सम्बन्ध ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

10.3 अर्थमूलक समाजमें सामाजिक सम्बन्ध मार्क्सवादी सभी सम्बन्धोंकी धार्मिकता एवं परम्परामूलकताका नष्ट हो जाना आवश्यक मानते हैं। उनकी दृष्टिमें ‘सब सम्बन्ध जब अर्थमूलक हो जायँगे, तब पति-पत्नी, पिता-पुत्र, भाई-बहन, शिक्षक-शिष्यका अर्थमूलक सीधा संघर्ष हो सकेगा। किसी परम्पराकी ओटमें संघर्षके कारणको छिपाया न जा सकेगा। सीधा संघर्ष क्रान्तिके अनुकूल ही होगा’, परंतु जिन्हें कुटुम्ब, समाज, धर्म,… Continue reading 10.3 अर्थमूलक समाजमें सामाजिक सम्बन्ध ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

10.2 पातिव्रत-धर्म ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

10.2 पातिव्रत-धर्म मार्क्सके अनुसार ‘पातिव्रत-धर्म’ केवल व्यक्तिगत सम्पत्तिके आधारपर ही बना है। व्यक्तिगत सम्पत्तिके आधारपर बना हुआ समाज तहस-नहस न हो जाय, इसीलिये एक ही पुरुषके साथ सम्बन्ध रखनेके लिये स्त्रीको समझा-बुझाकर राजी किया गया। तदनुसार ही धर्म, नीति, रिवाज गढ़े गये। स्त्रीकी स्वतन्त्रतासे धर्म और भगवान‍्के नाराज होनेका डर दिखलाया गया। ठीक ही है;… Continue reading 10.2 पातिव्रत-धर्म ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

10. मार्क्सीय समाज-व्यवस्था – 10.1 पूँजीवादी युग और स्त्री ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

10. मार्क्सीय समाज-व्यवस्था मार्क्सके अनुसार ‘समाज’ व्यक्तियों और परिवारोंका समूह है। समाजकी व्यवस्थामें आनेवाला कोई भी परिवर्तन व्यक्तियों और परिवारोंपर प्रभाव डाले बिना नहीं रह सकता। परिवार—स्त्री-पुरुषका सम्बन्ध समाजका केन्द्र है। समाजकी आर्थिक अवस्था मनुष्योंको जिस अवस्थामें रहनेके लिये मजबूर करती है, उसी ढंगपर मनुष्य परिवारको बना लेता है। कुछ देशोंमें बहुत बड़े-बड़े सम्मिलित परिवार… Continue reading 10. मार्क्सीय समाज-व्यवस्था – 10.1 पूँजीवादी युग और स्त्री ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

9.11 समाज—विकासकी कुंजी ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

9.11 समाज—विकासकी कुंजी ‘सोशलिज्म’ का अर्थ है ‘समाजवाद’ और साम्यवादका अर्थ है समाजमें समानता लाना। समाजवादका अभिप्राय यह है कि ‘समाज ही उत्पादन-साधनोंका स्वामी हो। व्यक्तिके स्थानपर समाजका शासन होना ही समाजवाद है।’ फ्रांसके सेंट साइमन और इंग्लैण्डके राबर्ट्स ओबेनने (जिनका जन्म क्रमश: १७६० और १७७१ में हुआ था) पहले-पहल साम्यवादी विचारधारा फैलायी। उनके विचार… Continue reading 9.11 समाज—विकासकी कुंजी ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.20 समाजवादी सब्जबाग ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.20 समाजवादी सब्जबाग व्यक्तिगत स्वतन्त्रता यदि अच्छी वस्तु है, उससे इतना बड़ा लाभ हुआ, तो कुछ दोष होनेसे ही वह हेय नहीं होती। बिजलीसे प्रकाश फैलाया जा सकता है, मशीन भी चलायी जा सकती है और आत्महत्या भी की जा सकती है। अत: बुद्धिमानोंका कर्तव्य है कि वे ऐसा मार्ग निकालें, जिससे व्यक्तिगत स्वतन्त्रताकी रक्षा… Continue reading 7.20 समाजवादी सब्जबाग ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.19 सामाजिक संकट ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.19 सामाजिक संकट जो कहा जाता है कि ‘सम्पूर्ण उत्पादन-साधनों या मुनाफा कमानेके साधनोंका समाजीकरण हो जानेसे कोई वस्तु मुनाफाके लिये कमायी ही न जायगी, उपयोगके लिये आवश्यकताके अनुसार ही सब वस्तुओंका उत्पादन होगा, अतएव क्रय-शक्तिके घटने और बाजारमें माल न खपत होनेका प्रश्न ही नहीं उठेगा। पूँजीवादमें कल-कारखाने व्यक्तिगत होते हैं, अत: पूँजीपतिके सामने… Continue reading 7.19 सामाजिक संकट ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.10 पूँजी और श्रम ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.10 पूँजी और श्रम अतिरिक्त श्रमके दरके सम्बन्धमें मार्क्सवादी कहते हैं कि ‘पूँजी या पैदावारके साधनोंको हम इस प्रकार बाँट सकते हैं। एक वे साधन, जो एक हदतक स्थायी हैं, उदाहरणत: इमारतें और मशीनें, दूसरा कच्चा माल, तीसरे मजदूरको मजदूरी देनेके लिये पूँजी। पूँजीका जो भाग पैदावारके स्थायी साधनोंपर खर्च होता है, वह एक निश्चित… Continue reading 7.10 पूँजी और श्रम ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

6.16 वितरण ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

6.16 वितरण अतिरिक्त आयका पंचधा विभाजन करके भारतीय शास्त्रोंमें यद्यपि राष्ट्रहितार्थ उसका विनियोग बतलाया है, फिर भी अतिरिक्त आयको अवैध या अनुचित नहीं कहा जा सकता। कोई भी उद्योग यदि लागत खर्च, सरकारी टैक्सभरके लिये भी आमदनी पैदा करता है तो उससे उद्योगपतिका जीवन भी चलाना कठिन होगा और बड़ी-बड़ी मशीनोंके खरीदने आदिका काम भी… Continue reading 6.16 वितरण ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

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