Batuk

Maa_Sarayu

सरयूपारीण ब्राह्मणों’ का इतिहास (वंशावली, गोत्रावली और आस्पद नामावली सहित) – १०

गोत्र ‘गोत्र’ शब्द के कई अर्थ होते हैं। किसी व्यक्ति के गोत्र से तात्पर्य उस व्यक्ति के आदि पुरुष से होता है जो कि उस वंश का प्रवर्तक होता है। सबसे प्रथम वैदिक काल में जो ऋषि हुये उनके वंश का विस्तार आगे होता रहा। उस वंश के लोग अन्य लोगों से अलगाव रखने के […]

सरयूपारीण ब्राह्मणों’ का इतिहास (वंशावली, गोत्रावली और आस्पद नामावली सहित) – १० Read More »

शिव मानस पूजा ~ श्रीशङ्कराचार्यस्य

रत्नैः कल्पितमासनं हिमजलैः स्नानं च दिव्याम्बरंनानारत्नविभूषितं मृगमदामोदाङ्कितं चन्दनम् ।जातीचम्पकबिल्वपत्ररचितं पुष्पं च धूपं तथादीपं देव दयानिधे पशुपते हृत्कल्पितं गृह्यताम् ॥1 सौवर्णे नवरत्नखण्डरचिते पात्रे घृतं पायसंभक्ष्यं पञ्चविधं पयोदधियुतं रम्भाफलं पानकम् ।शाकानामयुतं जलं रुचिकरं कर्पूरखण्डोज्ज्वलंताम्बूलं मनसा मया विरचितं भक्त्या प्रभो स्वीकुरु ॥2 छत्रं चामरयोर्युगं व्यजनकं चादर्शकं निर्मलंवीणाभेरिमृदङ्गकाहलकला गीतं च नृत्यं तथा ।साष्टाङ्गं प्रणतिः स्तुतिर्बहुविधा ह्येतत्समस्तं मयासङ्कल्पेन समर्पितं तव विभो

शिव मानस पूजा ~ श्रीशङ्कराचार्यस्य Read More »

ए हरि, बंदओं तुअ पद नाए ~ विद्यापति

जतने जतेक धन पाएँ बटोरल मिलि-मिलि परिजन खाए। मरनक बेरि हरि केओ नहि पूछए एक करम सँग जाए॥ ए हरि, बंदओं तुअ पद नाए। तुअ पद परिहरि पाप-पयोनिधि पारक कओन उपाए॥ जनम अवधि नति तुअ पद सेवल जुबती रति-रंग मेंलि। अमिअ तेजि हालाहल पिउल सम्पद आपदहि भेलि॥ भनइ विद्यापति लेह मनहि गुनि कहलें कि होएत

ए हरि, बंदओं तुअ पद नाए ~ विद्यापति Read More »

आगे माई एहन उमत बर लाइल ~ विद्यापति

आगे माई एहन उमत बर लाइल हिमगिरि देखि-देखि लगइछ रंग। एहन बर घोड़बो न चढ़इक जो घोड़ रंग-रंग जंग॥ बाधक छाल जे बसहा पलानल साँपक भीरल तंग। डिमक-डिमक जे डमरू बजाइन खटर-खटर करु अंग॥ भकर-भकर जे भांग भकोसथि छटर-पटर करू गाल। चानन सों अनुराग न थिकइन भसम चढ़ावथि भाल॥ भूत पिशाच अनेक दल साजल, सिर

आगे माई एहन उमत बर लाइल ~ विद्यापति Read More »

माधव, हम परिनाम निरासा  ~ विद्यापति

माधव, हम परिनाम निरासा। तोहे जगतारन दीन दयाराम अतए तोहर बिसबासा॥ आध जनम हम नींद गमाओल जरा सिसु कत दिन गेला। निधुबन रमनि-रभस रंग मातल तोहि भजब कोन बेला॥ कत चतुरानन मरि मरि जाएत न तुअ आदि सवसाना। तोहि जनमि पुनु तोहि समाएत सागर लहरि अमाना॥ भनइ विद्यापति सेष समन भय तुअ बिनु गति नहि

माधव, हम परिनाम निरासा  ~ विद्यापति Read More »

कखन हरब दुख मोर हे भोलानाथ ~ विद्यापति

कखन हरब दुख मोर हे भोलानाथ। दुखहि जनम भेल दुखहि गमाएब सुख सपनहु नहिं भेल, हे भोला… आछत चानन अवर गंगाजल बेलपात तोहि देब, हे भोला… यहि भवसागर थाह कतहु नहिं, भैरव धरु कर पाए, हे भोला… भव विद्यापति मोर भोलानाथ गति, देहु अभय बर मोहिं, हे भोला… व्याख्यान : हे भोलानाथ! आप किस क्षण मेरी पीड़ा का हरण करेंगे। मेरा जन्म वेदना में ही हुआ है, दुःख में ही सारा जीवन बीता है, यहाँ तक कि स्वप्न तक में सुख का दर्शन मुझे नहीं हुआ है। हे प्रभो! मैं अक्षत, चंदन, गंगाजल और बेलपत्र को अर्पित कर आपकी आराधना करता हूँ। यह भवसागर अथाह है, अतः इस स्थिति में हे भैरव (भय से मुक्त करने वाले देव) आप ही आकर मेरा हाथ पकड़ कर भवसागर में डूबने से बचाइए। विद्यापति कहते हैं कि प्रभु। आप ही मेरी गति हो, कृपा कर आप मुझे निर्भयता का वरदान दीजिए। स्रोत : पुस्तक :

कखन हरब दुख मोर हे भोलानाथ ~ विद्यापति Read More »

आज नाथ एक बर्त्त माँहि सुख लागत है ~ विद्यापति

आज नाथ एक बर्त्त माँहि सुख लागत हे। तोहें सिव धरि नट वेष कि डमरू बजाएब हे॥ भल न कहल गउरा रउरा प्राजु सु नाचब हे। सदा सोच मोहि होत कबन विधि बाँचब हे ॥ जे-जे सोच मोहिं होत कहा सुझाएब हे॥ रउरा जगत के नाय कबन सोच लागए हे ॥ नाग ससरि भुमि खसत

आज नाथ एक बर्त्त माँहि सुख लागत है ~ विद्यापति Read More »

जय-जय संकर जय त्रिपुरारि ~ विद्यापति

जय-जय संकर जय त्रिपुरारि। जय अध पुरुष जयति अध नारि॥ आध धवल तनु आधा गोरा। आध सहज कुच आध कटोरा॥ आध हड़माल आध गजमोति। आध चानन सोह आध विभूति॥ आध चेतन मति आधा भोरा। आध पटोर आध मुँजडोरा॥ आध जोग आध भोग बिलासा। आध पिधान आध दिग-बासा॥ आध चान आध सिंदूर सोभा। आध बिरूप आध

जय-जय संकर जय त्रिपुरारि ~ विद्यापति Read More »

जय जय भैरव असुर-भयाउनि ~ विद्यापति

जय जय भैरव असुर-भयाउनि, पसुपति-भामिनि माया। सहज सुमति बर दिअहे गोसाउनि अनुगति गति तुअ पाया॥ बासर-रैनि सबासन सोभित चरन, चंद्रमनि चूड़ा। कतओक दैत्य मारि मुँह मेलल, कतन उगिलि करु कूड़ा॥ सामर बरन, नयन अनुरंजित, जलद-जोग फुल कोका। कट-कट बिकट ओठ-पुट पाँड़रि लिधुर-फेन उठ फोका॥ घन-घन-घनन धुधुर कत बाजए, हन-हन कर तुअ काता। विद्यापति कवि तुअ

जय जय भैरव असुर-भयाउनि ~ विद्यापति Read More »

Maa_Sarayu

सरयूपारीण ब्राह्मणों’ का इतिहास (वंशावली, गोत्रावली और आस्पद नामावली सहित) – ९

पंक्ति और पंक्तिपावन ब्राह्मण सरयूपारीण ब्राह्मणों में पहिले बहुत सुशिक्षित, सच्चरित्र, आचारनिष्ठ ब्राह्मण हुये हैं। इन ब्राह्मणों से सरयूपारीण ब्राह्मणों की पंक्ति की प्रतिष्ठा बढ़ी। इसलिये उनको ‘पंक्तिपावन’ कहा गया। मनु स्मृति ग्रंथ में मनु महाराज ने पंक्तिपावन ब्राह्मणों का लक्षण निम्नलिखित रूप में बताया है- वेद जानने वालों में अग्रसर छः शास्त्रों के ज्ञाता,

सरयूपारीण ब्राह्मणों’ का इतिहास (वंशावली, गोत्रावली और आस्पद नामावली सहित) – ९ Read More »