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सरयूपारीण ब्राह्मणों’ का इतिहास (वंशावली, गोत्रावली और आस्पद नामावली सहित) – ८

सरयूपारीण ब्राह्मण की विशेषताएँ सरयूपारीण ब्राहणों में तीन विशेषताएँ पाई जाती हैं- (१) पंक्ति, (२) भोजन सम्बन्धी विचार, (३) गोत्र प्रवरादि। इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है- १. पंक्ति-इन ब्राह्मणों में पंक्ति का निर्माण कुछ नियमों और परम्पराओं को से कर हुआ। ऐसा माना गया कि सभी सरयूपारीण ब्राह्मण ऋषियों की सन्तान हैं। ऋषि गण […]

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सरयूपारीण ब्राह्मणों’ का इतिहास (वंशावली, गोत्रावली और आस्पद नामावली सहित) – ७

सरयूपारीण ब्राह्मणों में ‘घर’ सरयूपारीण ब्राह्मणों में प्रत्येक गोत्र वाले तथा एक स्थान पर रहने वाले औ परिवार वृद्धि आदि कारणों से अलग दूर जा कर बस जाने वाले ब्राह्मण अपने सगोत्रियों को अपना एक कुटुम्ब मानते हैं। वे उसको ‘घर’ कहते हैं। आप के वर पर कितने घर हैं? आप किस घर के हैं?

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सरयूपारीण ब्राह्मणों’ का इतिहास (वंशावली, गोत्रावली और आस्पद नामावली सहित) – ६

सरयूपारीण ब्राह्मण वंश में परिवर्तन किसी दूसरे गोत्र के ब्राह्मण की गद्दी (राशि) पर जाने पर वंश में परिवर्तन हो जाता है। जैसे- शांडिल्य गोत्रीय पोहिला तिवारी की गद्दी पर जाने पर वत्स गोत्रीय श्रीधर मिश्र का गोत्र तो वही रहा किन्तु अब वे वत्स गोत्र पोहिला तिवारी हो गये। इसी प्रकार इंटिया पाण्डेय का

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सरयूपारीण ब्राह्मणों’ का इतिहास (वंशावली, गोत्रावली और आस्पद नामावली सहित) – ५

सरयूपारीण ब्राह्मण-भेद सरयूपारीण ब्राह्मण वर्ग में शुक्ल, त्रिपाठी, मिश्र, पाण्डेय, पाठक, उपाध्याय, चतुर्वेदी और ओझा ब्राह्मण होते हैं। व्यवहार में इनको शुकुल, तिवारी, मिसिर, दूबे, पांडे, ओझा, उपाध्याय, पाठक और चौबे भी कहा जाता है। ऐसा लगता है कि इस प्रकार का विभाजन इनके गुणों और कर्त्तव्यों का बंटवारा करके किया गया। जैसे शुक्ल यजुर्वेद

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सरयूपारीण ब्राह्मणों’ का इतिहास (वंशावली, गोत्रावली और आस्पद नामावली सहित) – ४

सरयूपार की सीमा सरयूपार भू भाग की सीमा दक्षिण में सरयू नदी, उत्तर में सारन और चम्पारन का कुछ भाग, पश्चिम में मनोरमा या रामरेखा नदी, पूर्व में गंगा और गंडक (शालिग्रामी) नदी का संगम है। इस सरयूपार क्षेत्र की लम्बाई पूर्व से पश्चिम तक सौ कोस के लगभग हैं। उत्तर से दक्षिण तक पचास

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सरयूपारीण ब्राह्मणों’ का इतिहास (वंशावली, गोत्रावली और आस्पद नामावली सहित) – ३

निर्धन वह है जो कि चरित्र भ्रष्ट है। पढ़ने, पढ़ाने और शास्त्र चर्चा करने वाले यदि चरित्रहीन हैं तो वे व्यसनी हैं, मूर्ख हैं। जो क्रियावान है वही पण्डित है। यदि कोई व्यक्ति चारों वेदों का ज्ञाता है किन्तु चरित्रभ्रष्ट है तो वह शूद्र से भी गया गुजरा है। जो शुद्ध आचरण वाला व्यक्ति है वही ब्राह्मण है।

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श्री षोडश बाहु नृसिंह अष्टकम

॥ श्रीषोडशबाहुनृसिंहाष्टकम् ॥ भूखण्डं वारणाण्डं परवरविरटं डंपडंपोरुडंपं, डिं डिं डिं डिं डिडिम्बं दहमपि दहमैः झम्पझम्पैश्चझम्पैः । तुल्यास्तुल्यास्तु तुल्याः धुमधुमधुमकैः कुङ्कुमाङ्कैः कुमाङ्कैः, एतत्ते पूर्णयुक्तमहरहकरहः पातु मां नारसिंहः ॥ १॥ भूभृद्भूभृद्भुजङ्गं प्रलयरववरं प्रज्वलद्ज्वालमालं, खर्जर्जं खर्जदुर्जं खिखचखचखचित्खर्जदुर्जर्जयन्तं । भूभागं भोगभागं गगगगगगनं गर्दमर्त्युग्रगण्डं, स्वच्छं पुच्छं स्वगच्छं स्वजनजननुतः पातु मां नारसिंहः ॥ २॥ एनाभ्रं गर्जमानं लघुलघुमकरो बालचन्द्रार्कदंष्ट्रो, हेमाम्भोजं सरोजं जटजटजटिलो

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भवान्यष्टकम् : 

न तातो न माता न बन्धुर्न दाता न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता । न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥१॥ भवाब्धावपारे महादुःखभीरु पपात प्रकामी प्रलोभी प्रमत्तः । कुसंसारपाशप्रबद्धः सदाहं गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥२॥ न जानामि दानं न च ध्यानयोगं न जानामि तन्त्रं न च स्तोत्रमन्त्रम् । न

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शिवपञ्चाक्षरनक्षत्रमालास्तोत्रम्

।।श्रीः।। ।।शिवपञ्चाक्षरनक्षत्रमालास्तोत्रम्।।श्रीमदात्मने गुणैकसिन्धवे नमः शिवाय धामलेशधूतकोकबन्धवे नमः शिवाय। नामशेषितानमद्भवान्धवे नमः शिवायपामरेतरप्रधानबन्धवे नमः शिवाय।।1।। कालभीतविप्रबालपाल ते नमः शिवाय शूलभिन्नदुष्टदक्षफाल ते नमः शिवाय। मूलकारणाय कालकाल ते नमः शिवायपालयाधुना दयालवाल ते नमः शिवाय।।2।। इष्टवस्तुमुख्यदानहेतवे नमः शिवाय दुष्टदैत्यवंशधूमकेतवे नमः शिवाय। सृष्टिरक्षणाय धर्मसेतवे नमः शिवायअष्टमूर्तये वृषेन्द्रकेतवे नमः शिवाय।।3।। आपदद्रिभेदटङ्कहस्त ते नमः शिवाय पापहारिदिव्यसिन्धुमस्त ते नमः शिवाय। पापदारिणे लसन्नमस्तते नमः शिवायशापदोषखण्डनप्रशस्त

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द्वादशलिङ्गस्तोत्रम्

।।श्रीः।। ।।द्वादशलिङ्गस्तोत्रम्।।सौराष्ट्रदेशे वसुधावकाशे ज्योतिर्मयं चन्द्रकलावतंसम्। भक्तिप्रदानाय कृतावतारंतं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये।।1।। श्रीशैलश्रृङ्गे विविधप्रसङ्गे शेषाद्रिश्रृङ्गेऽपि सदा वसन्तम्। तमर्जुनं मल्लिकपूर्वमेनंनमामि संसारसमुद्रसेतुम्।।2।। अवन्तिकायां विहितावतारं मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम्। अकालमृत्योः परिरक्षणार्थंवन्दे महाकालमहं सुरेशम्।।3।। कावेरिकानर्मदयोः पवित्रे समागमे सज्जनतारणाय। सदैव मान्धातृपुरे वसन्तमोंकारमीशं शिवमेकमीढे।।4।। पूर्वोत्तरे पारलिकाभिधाने सदाशिवं तं गिरिजासमेतम्। सुरासुराराधितपादपद्मंश्रीवैद्यनाथं सततं नमामि।।5।। आमर्दसंज्ञे नगरे च रम्ये विभूषिताङ्गं विविधैश्व भोगैः। सद्भुक्तिमुक्तिप्रदमीशमेकंश्रीनागनाथं शरणं प्रपद्ये।।6।। सानन्दमानन्दवने वसन्त

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