11.11 अनुभव-विमर्श अनुभव यदि दूसरे अनुभवसे अनुभाव्य होगा तो अनवस्थादोष होगा; क्योंकि वह जिस अनुभवसे अनुभाव्य होगा, उसे भी किसी अन्य अनुभवसे अनुभाव्य होना पड़ेगा। यदि प्रथमानुभवसे द्वितीयका एवं द्वितीयसे प्रथमका अनुभव माना जाय तो अन्योन्याश्रयदोष होगा। प्रथमका द्वितीयसे, द्वितीयका तृतीयसे अनुभव मानें तो अनवस्था और यदि प्रथमानुभवका अपनेसे ही अनुभव माना जाय तो आत्माश्रय-दोष… Continue reading 11.11 अनुभव-विमर्श ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
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11.10 अनुभव और आत्मा ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
11.10 अनुभव और आत्मा ‘वार्तिकसार’ में संवित्के सम्बन्धमें महत्त्वपूर्ण बातें कही गयी हैं। संवित्का भेद स्वत: नहीं कहा जा सकता। घटसंवित्, पटसंवित् इस रूपसे वेद्यपूर्वक ही संवित्का भेद भासित होता है, अत: संवित्का यह भेद स्वाभाविक नहीं; किंतु घटादि उपाधिके कारण ही प्रतीत होता है। वह सुतरां भ्रम है। इसी प्रकार सम्यक् ज्ञान, संशय एवं… Continue reading 11.10 अनुभव और आत्मा ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज