आदर्शनागरिक

8.9 इतिहासका वर्ण्य-विषय ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

8.9 इतिहासका वर्ण्य-विषय मार्क्सवादी कहते हैं कि ‘राजाओं, महाराजाओं, वीरपुरुषोंका वर्णन करना इतिहासका लक्ष्य न होकर समष्टि जनताकी स्वाभाविक जीवनस्थिति, उत्पादन-साधन और उनके परस्पर सम्बन्ध तथा उनके परिणामोंका निरूपण ही इतिहासका मुख्य विषय होना चाहिये।’ तदनुसार ही मार्क्सवादी प्राथमिक वर्गहीन समाज, फिर मालिक और गुलाम, फिर सामन्त एवं किसान-गुलाम, फिर पूँजीपति और मजदूर, फिर मजदूर […]

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8.7 इतिहास और व्यक्ति ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

8.7 इतिहास और व्यक्ति स्टालिनका कहना है कि ‘इतिहास विज्ञानको वास्तविक विज्ञान बनाता है तो सामाजिक इतिहासके विकासको सम्राटों, सेनापतियों, विजेताओं तथा शासकोंके कृत्योंकी परिधिके अन्तर्गत सीमित नहीं किया जा सकता। इतिहास-विज्ञानके लिये आवश्यक है कि भौतिक मूल्योंके निर्माता लाखों, करोड़ों मजदूरोंके इतिहासके चिन्तनको अपना मूल विषय बनायें। द्वन्द्ववादके अनुसार प्रकृतिके सभी बाह्य रूपों एवं

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8.6 परिवर्तनके कारण ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

8.6 परिवर्तनके कारण मार्क्सके मतानुसार ‘परिवर्तनका कारण न तो भौगोलिक अवस्था ही है न जनसंख्या ही; क्योंकि यूरोप सदियोंसे अपरिवर्तनशील रहा है, फिर भी वहाँ पंचायती व्यवस्था, दासप्रथा, सामन्तवादी, पूँजीवादी व्यवस्था आदि अनेक परिवर्तन हुए। जनसंख्या भारतमें इंग्लैण्ड, अमेरिकासे अधिक होनेपर भी वहाँ इतने परिवर्तन नहीं हुए।’ स्टालिनका कहना है कि ‘ऐतिहासिक भौतिकवादके अनुसार आवश्यक

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8.5 मार्क्स एवं इतिहास ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

8.5 मार्क्स एवं इतिहास मार्क्सवादी समाजके विचारों, सिद्धान्तों तथा राजनीतिक संस्थाओंको समाजकी सत्ता और उसकी भौतिक परिस्थितियोंके ही अनुकूल मानते हैं और समाजकी सत्ता एवं भौतिक परिस्थितियाँ उनके मतमें उत्पादन-शक्तियों तथा उत्पादन-सम्बन्धोंपर निर्भर रहती हैं। इन्हींपर समाजका ढाँचा स्थिर होता है। दासयुगमें सामाजिक रीतियाँ अन्य युगोंसे भिन्न थीं। यही बात सामन्तवादी तथा पूँजीवादी युगके लिये

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8.3 भौतिकवादी व्याख्या ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

8.3 भौतिकवादी व्याख्या कहा जाता है कि हीगेलके ऐतिहासिक आदर्शवादके मुकाबलेमें ही मार्क्सने अपनी प्रणालीका नाम ‘ऐतिहासिक भौतिकवाद’ रखा था। इस प्रणालीद्वारा मार्क्स विभिन्न परिवर्तनों, क्रान्तियों एवं मानसिक, सामाजिक घटनाओंको उत्पन्न करनेवाले मूलस्रोतोंका पता लगाना चाहता था, इसलिये इतिहास-संचालन करनेवाले नियमोंका उसने पता लगाया। उसका कहना था—‘मनुष्योंके विवेक एवं विचारोंमें परिवर्तन करनेवाली तथा विभिन्न सामाजिक

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8.2 इतिहासकी मार्क्सीय व्याख्या ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

8.2 इतिहासकी मार्क्सीय व्याख्या मार्क्सके अनुसार ‘इतिहास छ: युगोंमें विभक्त है। प्रथम युगमें अति प्राचीन मनुष्य साम्यवादी संघोंमें रहता था। उस समय उत्पादन, वितरण आदि समाजवादी ढंगसे होता था। दूसरा युग दासताका है। कृषि-प्रथा गोपालनके फलस्वरूप व्यक्तिगत सम्पत्तिका जन्म हुआ। सम्पत्तिके स्वामियोंने अन्य सम्पत्तिरहित लोगोंको अपना दास बनाया। राज्य एवं तत्सम्बन्धी अन्य संस्थाओंका जन्म हुआ।

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8. ऐतिहासिक भौतिकवाद – 8.1 इतिहास क्या है? ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

मार्क्सके ऐतिहासिक भौतिकवादपर विचार करनेके पूर्व यह समझना आवश्यक है कि ‘इतिहास’ है क्या? यूनानी भाषामें इतिहास (हिस्ट्री)-का अर्थ जिज्ञासा होता है। मुसलमानोंमें शिक्षापूर्ण उच्च आदर्शका वर्णन ही इतिहास समझा जाता था। फ्रांसके प्रसिद्ध लेखक वाल्टेयरके अनुसार मनुष्यकी मानसिक शक्तिका वर्णन ही इतिहास है, छोटी-छोटी घटनाओंका वर्णन इतिहास नहीं। उसके अनुसार शासकोंका वर्णन भी इतिहास

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7.21 मार्क्सवाद एवं राष्ट्र ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

7.21 मार्क्सवाद एवं राष्ट्र परंतु जबतक सभी राष्ट्र एवं समाज इस उच्चकोटिके सिद्धान्तको मान नहीं लेते, तबतक क्या किसी सज्जन व्यक्ति या राष्ट्रको किसी कूटनीतिक व्यक्ति या राष्ट्रकी कूटनीतिका शिकार बन जाना चाहिये? रामराज्यवादी ऐसे अवसरके लिये अनिवार्यरूपसे आनेवाले युद्धका स्वागत करता है। मायावीके साथ निरी साधुतासे काम नहीं चलता— यस्मिन् यथा वर्तते यो मनुष्य-

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7. मार्क्सीय अर्थ-व्यवस्था – 7.1 मूल्यका आधार ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

कहा जाता है, पूँजीवादी समाजके जीवन और गतिका आधार होता है खरीदना, बेचना तथा वस्तुओं एवं श्रमका विनिमय ही परस्पर सम्बन्धका सार है। मार्क्सके मतानुसार ‘पूँजीवादके अन्तर्गत जो माल तैयार होकर बाजारमें जाता है, उसके दो तरहके मूल्य होते हैं—एक उपयोग-सम्बन्धी, दूसरा विनिमयसम्बन्धी। पहलेका अभिप्राय उस वस्तुके गुणसे है, जिससे खरीदनेवालेकी शारीरिक या मानसिक आवश्यकताकी

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6.10 संघटनकी कुंजी ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

6.10 संघटनकी कुंजी यह तो हुई विघटनकी बात। अब जहाँ ‘सङ्घे शक्ति: कलौ युगे’ की बात आजकल बहुत होती है, वहाँ भी संघटनकी योजनाएँ कैसे सफल हों, इस विषयमें सभी परेशान हैं। वास्तवमें जो संघटनपर रातों-दिन व्याख्यान दे और लेख लिख रहे हैं, जो स्वयं प्रान्त, समाज, राष्ट्रके संघटनपर जमीन-आसमानके कुलाबे एक किया करते हैं,

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