(“एक विद्यालङ्कार”) (५) (क) हमारे ‘यथेमां वाचं’ के अर्थ पर “एक विद्यालङ्कार” जी ‘सार्वदेशिक (सितम्बर १९४६ के अंक) में लिखते हैं- ‘यथेमां वाचं’ का ईश्वरपरक अर्थ मानने से स्वामी दयानन्द सरस्वती के मतानुसार अनेक दोष आते हैं-ऐसा शास्त्रीजी ने बड़े गर्जन-तर्जन पूर्वक फरमाया है, किन्तु उनके सम्पूर्ण दोषों का इतने से ही समाधान हो जाता… Continue reading “यथेमां वाचं कल्याणीम्” ~ श्रीसनातनधर्मलोक भाग – ३ ~ लेखक – पं. दीनानाथशर्मी शास्त्री सारस्वतः, विधावाचपत्ति; । ~ (“एक विद्यालङ्कार”) ~ भाग ११
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“यथेमां वाचं कल्याणीम्” ~ श्रीसनातनधर्मलोक भाग – ३ ~ लेखक – पं. दीनानाथशर्मी शास्त्री सारस्वतः, विधावाचपत्ति; । ~ (“एक सिद्धान्तालङ्कार” का आक्षेप) ~ भाग ८
(“एक सिद्धान्तालङ्कार” का आक्षेप) (२) हम पूर्व सिद्ध कर चुके हैं कि- ‘यथेमां वाचं’ मन्त्र का ईश्वर देवता है. देवता-प्रतिपाद्य को कहते हैं, तब यहाँ ईश्वर प्रतिपादक नहीं, प्रतिपाद्य है, प्रतिपादक जीव है, तो यहाँ वाणी भी जीव की है, इस पर ‘उदारतम आचार्य महर्षि दयानन्द’ निबन्ध में “एक सिद्धान्तालङ्कार” लिखते हैं कि- “यह बात… Continue reading “यथेमां वाचं कल्याणीम्” ~ श्रीसनातनधर्मलोक भाग – ३ ~ लेखक – पं. दीनानाथशर्मी शास्त्री सारस्वतः, विधावाचपत्ति; । ~ (“एक सिद्धान्तालङ्कार” का आक्षेप) ~ भाग ८