जतने जतेक धन पाएँ बटोरल मिलि-मिलि परिजन खाए। मरनक बेरि हरि केओ नहि पूछए एक करम सँग जाए॥ ए हरि, बंदओं तुअ पद नाए। तुअ पद परिहरि पाप-पयोनिधि पारक कओन उपाए॥ जनम अवधि नति तुअ पद सेवल जुबती रति-रंग मेंलि। अमिअ तेजि हालाहल पिउल सम्पद आपदहि भेलि॥ भनइ विद्यापति लेह मनहि गुनि कहलें कि होएत… Continue reading ए हरि, बंदओं तुअ पद नाए ~ विद्यापति