8. ऐतिहासिक भौतिकवाद – 8.1 इतिहास क्या है? ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

मार्क्सके ऐतिहासिक भौतिकवादपर विचार करनेके पूर्व यह समझना आवश्यक है कि ‘इतिहास’ है क्या? यूनानी भाषामें इतिहास (हिस्ट्री)-का अर्थ जिज्ञासा होता है। मुसलमानोंमें शिक्षापूर्ण उच्च आदर्शका वर्णन ही इतिहास समझा जाता था। फ्रांसके प्रसिद्ध लेखक वाल्टेयरके अनुसार मनुष्यकी मानसिक शक्तिका वर्णन ही इतिहास है, छोटी-छोटी घटनाओंका वर्णन इतिहास नहीं। उसके अनुसार शासकोंका वर्णन भी इतिहास नहीं, किंतु ‘मनुष्य जंगलीसे सभ्य कैसे हुआ’, इस विकासका वर्णन ही इतिहास है। विज्ञान-वृद्धिसे विज्ञानका अनुसरण इतिहासमें भी होने लगा। प्राचीन शिलालेखों, दानपत्रों, मुद्राओं, खण्डहरोंद्वारा सत्यका अनुसंधान होने लगा। व्यूरी-जैसी प्रसिद्ध लेखिकाने कहा कि ‘इतिहास एक विज्ञान है।’ एक फ्रांसीसी लेखकका कहना है कि ‘इतिहास शुद्ध विज्ञान है,’ परंतु दूसरे लोग कहते हैं कि इतिहास कभी विज्ञान नहीं हो सकता। लेख-मुद्राओंके द्वारा भी सत्य घटनाओंका ज्ञान नहीं हो सकता। लेखोंमें परस्पर विरोध भी होता है। कुछ लोग ‘इतिहास’ को एक ‘कला’ कहते हैं, किंतु कलामें विशेषरूप देनेके लिये वस्तुकी कुछ काट-छाँट करनी पड़ती है और ऐसा करनेमें सत्य अंश छिप जाता है। कुछ लोगोंका कहना है कि कला लेखन-शैलीमें होनी चाहिये। विज्ञान घटनाओंके अनुसंधानमें होना चाहिये।
विश्वमें पशु-पक्षी, कीट-पतंग भी हैं, उनका प्रभाव भी इतिहासपर पड़ता है। १४वीं शतीमें यूरोपमें प्लेगका भीषण प्रकोप हुआ था। उससे डेढ़ करोड़ मनुष्य मरे थे। इसके कारण वहाँ बड़ा भारी धार्मिक एवं राजनीतिक उथल-पुथल हुआ था। इन सबका कारण चूहे ही थे। हैजा आदि भी कीटाणुओंके ही परिणाम हैं। नेपोलियनकी अजेय सेना संग्रहणीके कीटाणुओंका शिकार बनकर रूसमें नष्ट-भ्रष्ट हो गयी थी। जंगल नष्ट होनेसे जमीका कटाव बढ़ गया। प्रकृतिकी उथल-पुथलसे कितने ही साम्राज्य भूगर्भमें विलीन हो गये। कभी-कभी साधारण-साधारण घटनाओंसे ही इतिहासका कायापलट हो जाता है। फ्रांसकी क्रान्तिके दिनों वहाँका राजा लुई भाग निकला। रास्तेमें एक गाड़ी पड़ी होनेके कारण उसका मार्ग रुक गया। गाड़ी हटानेमें देर होते ही भीड़ एकत्रित हो गयी। राजा पहचाना गया और पकड़ लिया गया। यदि वह भागकर राजभक्त सेनामें पहुँच गया होता तो क्या फ्रांसकी क्रान्ति सफल हो सकती थी?
हीगेलके अनुसार ‘इतिहास ईश्वरकी आत्मकथा है। वह मनुष्योंको अपनी रुचिके अनुसार कार्य करने देता है। उनका फल वही होता है, जो ईश्वर चाहता है।’ इंग्लैण्डके डिल्टन मेरका मत है कि ‘संसार अज्ञातरूपसे, पर बड़े कष्टपूर्वक ईश्वरकी ओर बढ़ रहा है—मेरे लिये इतिहासका यही अर्थ है।’ यह भी एक पक्ष है कि इतिहासमें निष्पक्षता हो ही नहीं सकती है। लेखक जिस देशकालमें रहता है, उसका प्रभाव उसपर अवश्य होता है। अत: वह अतीतको भी वर्तमानके चश्मेसे देखता है। जर्मन इतिहासज्ञोंका कहना है कि ‘जर्मनीके जंगलों, पहाड़ों, नदियों तथा जर्मन वीरगाथाओंका गौरवपूर्ण वर्णन ही इतिहास है।’ एक इटालियनका कहना है—‘यदि प्राचीन इतिहासके अध्ययनसे हममें उत्साह नहीं बढ़ता तो फिर गड़े मुर्दे खोदनेकी क्या आवश्यकता?’ कुछ लोगोंका मत है कि ‘इतिहास अपनेको दोहराता रहता है।’ दूसरे कहते हैं—‘प्राचीन घटनाओंकी पुनरावृत्ति असम्भव है।’ कुछ लोग ‘विशिष्ट ऐतिहासिक व्यक्तियोंका विस्तृत वर्णन ही इतिहास’ समझते हैं। कुछ लोग छोटी-से-छोटी घटनाओंका भी इतिहासपर प्रभाव मानते हैं। मेरके अनुसार सार्वजनिक घटनाओंका क्रम-बद्ध वर्णन ही इतिहास है। प्रो० हॉर्नशॉकी रायमें विश्व-घटनाओंकी गति या उसके कुछ अंशका वर्णन इतिहास है। लार्ड ऐक्टनका कहना है कि विश्वका इतिहास राष्ट्रोंके इतिहासका संग्रह नहीं, किंतु वह लगातार विकास है। वह स्मरण-शक्तिके लिये भार न होकर आत्माके लिये प्रकाश है। ‘स्टडी ऑफ हिस्ट्री’ के अनुसार ‘इतिहासका आधार राष्ट्र नहीं हो सकता। अपने राष्ट्रको ही विश्व मान लेना भूल है। वह तो विश्वका अंगमात्र है, इसी दृष्टिसे उसका इतिहास लिखा जाना चाहिये।’ मिस्टर वेल्सके अनुसार मानव जाति ही राष्ट्र है।
इस तरह इतिहासके सम्बन्धमें अनेक प्रकारकी धारणा होनेपर भी इतिहासका उद्देश्य सत्यकी खोज अवश्य होना चाहिये। इससे भिन्न उद्देश्य होनेपर घटनाओंकी खींचा-तानी तोड़-मरोड़ अवश्य करनी पड़ेगी। ‘आई फाउण्ड नो पीस’ के लेखक मिस्टर वेन मिलरका कहना है कि आँखों देखी घटना भी ठीक नहीं बतायी जा सकती। दो आदमी उसे भिन्नरूपसे देखते हैं। प्रत्येक व्यक्तिकी कल्पना अलग ही चलती है। पत्रों, सरकारी लेखोंमें भी भाव बदले जाते हैं। फिर हजारों वर्ष पुराने इतिहासका वर्णन सत्य कैसे हो सकता है? वस्तुत: इसीलिये रामायण, महाभारत आदि आर्ष इतिहासके लेखक वाल्मीकि, व्यास आदि ऋषि प्रत्यक्षानुमान या संवाददाताओंके तारों, पत्रोंके आधारपर नहीं, किंतु समाधिजन्य ऋतम्भरा प्रज्ञाके अनुसार घटनाओंको पूर्णतया जानकर ही इतिहास लिखनेमें संलग्न हुए थे। वैदिकोंके यहाँ वेदार्थ जाननेमें इतिहास-पुराणका अत्यन्त उपयोग है—‘इतिहासपुराणाभ्यां वेदं समुपबृंहयेत्’, ‘पुराणमितिवृत्तमाख्यायिकोदाहरणं धर्मशास्त्रमर्थशास्त्रञ्चेतीतिहास:।’ (कौ० अर्थ० १।५।१४) ब्रह्मादिपुराण, रामायण-महाभारतादि इतिहास, बृहत्कथादि आख्यायिका, मीमांसादि उदाहरण, मनु-याज्ञवल्क्यादि धर्मशास्त्र, औशनस-बार्हस्पत्यादि अर्थशास्त्र—ये सभी कौटल्यके अनुसार इतिहास हैं। शुक्रके मतानुसार किसी राजचरित्र-वर्णनके व्याजसे प्राचीन घटनाओंका वर्णन ही इतिहास है—
प्राग्वृत्तकथनं चैकराजकृत्यमिषादित:।
यस्मिन् स इतिहास: स्यात् पुरावृत्त: स एव हि॥
(शुक्रनीति ४।२९३)
इतिहासके साथ पुराणोंका भी सम्बन्ध अनिवार्य है; क्योंकि पुराणमें सर्ग (सृष्टि), प्रतिसर्ग (प्रजापतियोंके बादकी सृष्टि), वंश (कुल), मन्वन्तर (प्रत्येक मनुके अधिकारका समय), वंशानुचरित (कुलवृत्त)-का वर्णन विशेषरूपसे होता है। इतिहास केवल घटनाओंका वर्णनमात्र हो, तब तो केवल गड़े मुर्दोंके उखाड़नेके अतिरिक्त कुछ भी नहीं रह जाता, अत: उसके द्वारा धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्षोपदेश आवश्यक है। इस तरहका कथायुक्त वृत्त ही इतिहास है—
धर्मार्थकाममोक्षाणामुपदेशसमन्वितम्।
पूर्ववृत्तं कथायुक्तमितिहासं प्रचक्षते॥
(का० मीमां० म० टी० १।२)
धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्षके उपदेशोंसे समन्वित कथायुक्त पूर्ववृत्तका वर्णन ही इतिहास है। मानवजातिकी प्रगति ऐतिहासिक क्रमसे इसी ओर होती रही है।


श्रोत: मार्क्सवाद और रामराज्य, लेखक: श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज, गीता सेवा ट्रस्ट
निवेदन : मूल पुस्तक क्रय कर स्वयं की तथा प्रकाशक की सहायता करें

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