शिव मानस पूजा ~ श्रीशङ्कराचार्यस्य

रत्नैः कल्पितमासनं हिमजलैः स्नानं च दिव्याम्बरंनानारत्नविभूषितं मृगमदामोदाङ्कितं चन्दनम् ।जातीचम्पकबिल्वपत्ररचितं पुष्पं च धूपं तथादीपं देव दयानिधे पशुपते हृत्कल्पितं गृह्यताम् ॥1 सौवर्णे नवरत्नखण्डरचिते पात्रे घृतं पायसंभक्ष्यं पञ्चविधं पयोदधियुतं रम्भाफलं पानकम् ।शाकानामयुतं जलं रुचिकरं कर्पूरखण्डोज्ज्वलंताम्बूलं मनसा मया विरचितं भक्त्या प्रभो स्वीकुरु ॥2 छत्रं चामरयोर्युगं व्यजनकं चादर्शकं निर्मलंवीणाभेरिमृदङ्गकाहलकला गीतं च नृत्यं तथा ।साष्टाङ्गं प्रणतिः स्तुतिर्बहुविधा ह्येतत्समस्तं मयासङ्कल्पेन समर्पितं तव विभो… Continue reading शिव मानस पूजा ~ श्रीशङ्कराचार्यस्य

ए हरि, बंदओं तुअ पद नाए ~ विद्यापति

जतने जतेक धन पाएँ बटोरल मिलि-मिलि परिजन खाए। मरनक बेरि हरि केओ नहि पूछए एक करम सँग जाए॥ ए हरि, बंदओं तुअ पद नाए। तुअ पद परिहरि पाप-पयोनिधि पारक कओन उपाए॥ जनम अवधि नति तुअ पद सेवल जुबती रति-रंग मेंलि। अमिअ तेजि हालाहल पिउल सम्पद आपदहि भेलि॥ भनइ विद्यापति लेह मनहि गुनि कहलें कि होएत… Continue reading ए हरि, बंदओं तुअ पद नाए ~ विद्यापति

आगे माई एहन उमत बर लाइल ~ विद्यापति

आगे माई एहन उमत बर लाइल हिमगिरि देखि-देखि लगइछ रंग। एहन बर घोड़बो न चढ़इक जो घोड़ रंग-रंग जंग॥ बाधक छाल जे बसहा पलानल साँपक भीरल तंग। डिमक-डिमक जे डमरू बजाइन खटर-खटर करु अंग॥ भकर-भकर जे भांग भकोसथि छटर-पटर करू गाल। चानन सों अनुराग न थिकइन भसम चढ़ावथि भाल॥ भूत पिशाच अनेक दल साजल, सिर… Continue reading आगे माई एहन उमत बर लाइल ~ विद्यापति

माधव, हम परिनाम निरासा  ~ विद्यापति

माधव, हम परिनाम निरासा। तोहे जगतारन दीन दयाराम अतए तोहर बिसबासा॥ आध जनम हम नींद गमाओल जरा सिसु कत दिन गेला। निधुबन रमनि-रभस रंग मातल तोहि भजब कोन बेला॥ कत चतुरानन मरि मरि जाएत न तुअ आदि सवसाना। तोहि जनमि पुनु तोहि समाएत सागर लहरि अमाना॥ भनइ विद्यापति सेष समन भय तुअ बिनु गति नहि… Continue reading माधव, हम परिनाम निरासा  ~ विद्यापति

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