गोत्रों के वंशज ब्राह्मणों का विस्तार जैसा कि अध्याय ९ में बताया गया है कि सरयूपारीण ब्राह्मणों में इस समय निम्नलिखित २४ गोत्रों के ब्राह्मण पाये जाते हैं— १. अगस्त्य १३. चान्द्रायण २. उपमन्यु १४. पराशर ३. कण्व १५. भरद्वाज ४. कश्यप १६. भार्गव ५. कात्यायन १७. मौनस ६. कुण्डिन १८. वत्स ७. कुशिक १९.… Continue reading सरयूपारीण ब्राह्मणों’ का इतिहास (वंशावली, गोत्रावली और आस्पद नामावली सहित) – १४
Month: September 2024
सरयूपारीण ब्राह्मणों’ का इतिहास (वंशावली, गोत्रावली और आस्पद नामावली सहित) – १३
गोत्रों का वेदादि विवरण अगस्त्य : वेद यजुर्वेद, उपवेद धनुर्वेद, ३ प्रवर वाशिष्ठ, ऐन्द्रप्रमद, आभरद्वसव्य, शाखा माध्यन्दिनी, सूत्र कात्यायन, शिक्षा दक्षिण, पाद दक्षिण, देवता शिव हैं। उपमन्यु : वेद यजुर्वेद, उपवेद धनुर्वेद, ३ प्रवर वैश्वामित्र, कात्य, कील (आक्षील), शाखा माध्यन्दिनी, सूत्र कात्यायन, शिखा दक्षिण, पाद दक्षिण, देवता शिव हैं। कण्व : वेद यजुर्वेद, उपवेद धनुर्वेद,… Continue reading सरयूपारीण ब्राह्मणों’ का इतिहास (वंशावली, गोत्रावली और आस्पद नामावली सहित) – १३
सरयूपारीण ब्राह्मणों’ का इतिहास (वंशावली, गोत्रावली और आस्पद नामावली सहित) – १२
प्रवर प्रत्येक ब्राह्मण का एक गोत्र होता है। वह वंश सूचक होता है कि ब्राह्मण किस ऋषि का वंशज है। उसके बाद उस ऋषि की परम्परा को सूचित करने वाला ‘कुल गोत्र’ होता है। उसके ‘प्रवर’ कहते हैं। प्रवर तीन या पाँच होते हैं। ये आदि ऋषि के नाम से, आदि ऋषि की तीसरी पीढ़ी… Continue reading सरयूपारीण ब्राह्मणों’ का इतिहास (वंशावली, गोत्रावली और आस्पद नामावली सहित) – १२
सरयूपारीण ब्राह्मणों’ का इतिहास (वंशावली, गोत्रावली और आस्पद नामावली सहित) – ११
गोत्रों में प्रमुख ब्राह्मण वंश अगस्त्य – पाण्डेय, त्रिपाठी उपमन्यु – ओझा, पाठक कण्व – द्विवेदी कश्यप – शुक्ल, मिश्र, पाण्डेय, ओझा, पाठक, द्विवेदी, चतुर्वेदी, उपाध्याय, त्रिपाठी कात्यायन – चतुर्वेदी कुण्डिन – शुक्ल, मिश्र, पाण्डेय कुशिक – चतुर्वेदी कृष्णात्रेय – शुक्ल, द्विवेदी कौशिक – त्रिपाठी गर्ग – शुक्ल, त्रिपाठी, पाण्डेय, द्विवेदी, उपाध्याय गौतम – मिश्र,… Continue reading सरयूपारीण ब्राह्मणों’ का इतिहास (वंशावली, गोत्रावली और आस्पद नामावली सहित) – ११
सरयूपारीण ब्राह्मणों’ का इतिहास (वंशावली, गोत्रावली और आस्पद नामावली सहित) – १०
गोत्र ‘गोत्र’ शब्द के कई अर्थ होते हैं। किसी व्यक्ति के गोत्र से तात्पर्य उस व्यक्ति के आदि पुरुष से होता है जो कि उस वंश का प्रवर्तक होता है। सबसे प्रथम वैदिक काल में जो ऋषि हुये उनके वंश का विस्तार आगे होता रहा। उस वंश के लोग अन्य लोगों से अलगाव रखने के… Continue reading सरयूपारीण ब्राह्मणों’ का इतिहास (वंशावली, गोत्रावली और आस्पद नामावली सहित) – १०