4.9 मनुष्य-जाति ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज

4.9 मनुष्य-जाति

‘मनुष्य-जातिका विकास वनमनुष्योंसे हुआ है’, ‘जावाद्वीपके कलिंग नामक मनुष्य अधिकतर वनमनुष्योंसे मिलते हैं, अत: वे ही मनुष्य-जातिके पूर्वपितामह हैं’, यह सब कथन भ्रान्तिपूर्ण हैं। अतएव जो कहा जाता है कि ‘यही मनुष्य-समुदायकी समस्त शाखाओंका जन्मदाता है’ यह सब भी भ्रान्तिपूर्ण है; क्योंकि जब विकासवादका सिद्धान्त ही खण्डित हो गया, तब उसके आधारपर शास्त्र-विरुद्ध कोई कल्पना निराधार ही है। आजकलका सिद्धान्त है कि मनुष्य-जातिके चार विभाग हैं, उसीके भीतर हजारों विभाग आ जाते हैं—(१) श्वेत रंग, लम्बी आकृतिवाला काकेशस, (२) पीले रंग, चौड़ी आकृतिवाला मंगोलिक, (३) काले रंग, मोटी आकृतिवाला ईथियोपिक (निग्रो) और (४) लाल रंग और पतली आकृतिवाला रेड-इण्डियन। आधुनिक वैज्ञानिकोंका कहना है कि मनुष्य-जातिके चारों विभागोंमें काकेशस विभाग सर्वश्रेष्ठ है। इस विभागके लोग गौरांग हैं। इसी विभागसे सब रंगवालोंकी उत्पत्ति हुई है। विद्वानोंकी खोज है कि हेमाइट लोग काकेशस वंशके हैं और सफेदसे भूरे और काले रंगके हो गये हैं। उनके बाल सीधे और नीग्रो जातिके-से घुँघराले होते हैं।
‘हेमिटिक शाखाके लोग मिस्रमें रहते हैं। विद्वानोंने यह भी स्वीकार किया है कि अमेरिकाके लाल रंगवाले मूल निवासियोंका मिलान मिस्रनिवासी हेमिटिकोंसे ही होता है। इन्हींकी एक हिमेराइत जाति लाल मनुष्य भी कहलाती है। यह जाति जिस समुद्रके किनारे रहती है, उसे भी लाल सागर कहा जाता है। श्वेतांग यूरोपियन भी अपनेको काकेशिक विभागके ही कहते हैं। इस तरह लाल, पीले, काले और सफेद रंगके चारों समुदाय काकेशिक विभागसे ही उत्पन्न हुए देखे जाते हैं। दूसरी खोज यह है कि संसारके जितने मनुष्य हैं, सब हेमिटिक और सेमिटिक शाखाओंमें अन्तर्भूत हो जाते हैं। मिस्रनिवासी हेमिटिक हैं। इनके यहाँ मुर्दोंमें मसाला भरकर रखनेका रिवाज था। मिस्रके पिरामिड इन्हीं मुर्दोंको रखनेके लिये बनाये जाते थे। अब पता चलता है कि अमेरिकाके लाल रंगवाले मूल-निवासियोंमें भी यही रिवाज था। अन्वेषकोंको यहाँ भी पिरामिड मिले हैं। इससे इन दोनोंकी एकता ही प्रतीत होती है।’
‘काकेशस-विभागकी दूसरी शाखा सेमिटिक है। इसमें अरब, बेबिलोन, सीरिया और जुडियाके यहूदी आदि सम्मिलित हैं। इसीकी एक शाखा अब हिट्टाइट है, जो पहले कभी मेसोपोटामियामें रहा करती थी। मेसोपोटामियामें अन्वेषकोंको ३४ सौ वर्षकी ईंटें मिली हैं, जिनमें इनके सुलहनामे लिखे हुए हैं। इन्हीं लोगोंका एक दल भारतवर्षमें रहता है, जिसे ‘द्रविड़’ कहते हैं। भारतके द्रविड़ोंकी भाषा मंगोलिक और निग्रो विभागोंको जोड़ती है। भाषा ही नहीं, उनका रूप, रंग और शारीरिक गठन भी एक ही है। विद्वानोंने पता लगाया है कि भारतके द्रविड़ोंकी भाषा आस्ट्रेलियाकी भाषाकी भाँति है और वह भाषा मंगोलिक-विभागसे भी मिलती है। आस्ट्रेलियानिवासी शुद्ध निग्रो जातिके हैं, जो द्रविड़ जातिसे भी सम्बन्ध रखते हैं। इसी तरह मंगोलिक-विभागसे भी द्रविड़ लोग सम्बन्ध रखते हैं। इन सब बातोंसे द्रविड़ जाति निग्रो और मंगोलिक-विभागोंको जोड़कर अपना मूल स्रोत सेमिटिक शाखासे स्थापित करती है। इसी तरह हेमिटिक शाखा अमेरिकाके मूल निवासियोंको जोड़ती है। इस तरह काकेशिक विभागके हेमिटिक और सेमिटिक शाखाओंसे ही मंगोलियन, अमेरिकन और निग्रो विभागोंका सम्बन्ध सूचित होता है। इस तरह संसारके काले, पीले, लाल और सफेद रंगवाले चारों विभाग काकेशिक विभागकी हेमिटिक और सेमिटिक शाखाओंसे ही उत्पन्न हुए हैं।’
वस्तुत: नूहका तूफान, वैवस्वत मनुकी मछलीवाली कथाका अनुवाद है। नूहके पुत्र हेमकी संतति, जो मिस्रमें रहती है, अपना सम्बन्ध राजा मनुसे बतलाती है और अपनेको सूर्यवंशी कहती है और मनु वैवस्वतके मूल विवस्वान् सूर्यको अपना इष्ट समझती है। इन मिस्रवालोंकी ही संतति अमेरिकाके मूल निवासी बतलाये जाते हैं। वे भी सूर्यवंशी राजा रामचन्द्रका ‘राम-सीतव’ उत्सव मनाते हैं। अन्वेषकोंको वहाँ सूर्यका मन्दिर भी मिला है।
मनुकी मछली एवं नूहके प्लावनकी कथा मिस्र, बेबिलोन, सीरिया, चार्ल्डिया, जूड़िया, फारस, अरब, ग्रीस, भारत, चीन, अमेरिका आदि संसारके सभी देशों एवं सभी जातियोंमें पायी जाती है। इससे भी सिद्ध होता है कि मनुसे ही समस्त मनुष्योंकी उत्पत्ति हुई है। बाइबिलमें बतलायी हुई नूहकी पीढ़ियाँ काल्पनिक हैं। आदमसे नूहतक ११ पीढ़ियाँ होती हैं और वर्ष-संख्या २२६२ है। नूहके पुत्र सेमसे इब्राहीमतक ११ पीढ़ियोंके तेरह सौ दस वर्ष कहे गये हैं। यह गणना विश्वासयोग्य नहीं। जब मनु और नूह एक ही हैं, तब उन्हें हुए लाखों वर्ष हो गये। कहा जाता है कि मिस्रकी भाषामें ‘नून’ शब्दका ‘मछली’ अर्थ होता है। ‘नून’ अक्षर फिनीशियामें ‘ईल’ नामक मछलीकी शकलका होता है। अंग्रेजी तथा अरबीमें भी यह अक्षर मछलीकी तरह ही होता है। मछलीके ही ढंगकी नाव होती है। हजरत नूहको ‘नौवा’ भी कहा जाता था। इस नौवाका सम्बन्ध मनुके जलप्लावनसे ही है। यह नाव और मनुकी मछली एक ही है। मनुको वैवस्वत कहा जाता है। विवस्वान् सूर्य है। हजरत नूहके दो पुत्र हेम, सेम—सूर्यवंश और चन्द्रवंश ही हैं। हेमगर्भ, हिरण्यगर्भ, सूर्यवंशका ही बोधक है और सेम=सोम चन्द्रवंशका बोधक है। सूर्यवंशियोंकी पुत्री इलासे ही सोमवंशकी उत्पत्ति हुई है। इस दृष्टिसे दोनों मनुके पुत्र कहे जा सकते हैं। मनुस्मृतिके अनुसार क्षत्रियोंसे ही संसारके मनुष्योंकी उत्पत्ति हुई है—
शनकैस्तु क्रियालोपादिमा: क्षत्रियजातय:।
वृषलत्वं गता लोके ब्राह्मणादर्शनेन च॥
पौण्ड्रकाश्चौडद्रविडा: काम्बोजा यवना: शका:।
पारदा: पह्लवाश्चीना: किराता: दरदा: खशा:॥
(मनुस्मृति १०।४३-४४)
इतिहासकार मैनिंग कहता है कि ‘यह बात विद्वानोंने मान ली है कि ‘मनुष्य जातिके पूर्वपितामह ‘मनु’ या ‘मनस्’ उसी तरह हैं, जिस तरह जर्मनोंके ‘मनस्’ हैं, जो टॺूटनोंके मूल पुरुष माने जाते हैं। अंग्रेजीका ‘मैन’ तथा जर्मनका ‘मिन्न’ शब्द ‘मनु’ से उसी तरह मिलता है, जैसे जर्मनका ‘मेनष्’ और संस्कृतका ‘मनुष्य’ शब्द मिलता है। अत: मनुसे ही मनुष्योंकी उत्पत्ति हुई है।’ यह मनु मूल पुरुष हिरण्यगर्भसे अभिन्न समझा जाता है और उसी हिरण्यगर्भके मुख, बाहु, ऊरु एवं पादसे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्रकी उत्पत्ति हुई—
एतमेके वदन्त्यग्निं मनुमन्ये प्रजापतिम्।
इन्द्रमेके परे प्राणमपरे ब्रह्म शाश्वतम्॥
(मनु० १२।१२३)
ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद् बाहू राजन्य: कृत:।
ऊरू तदस्य यद् वैश्य: पद‍्भ्यां शूद्रोऽजायत॥
(ऋग्वेद १०।९०।१२; यजु० ३२।११)


श्रोत: मार्क्सवाद और रामराज्य, लेखक: श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज, गीता सेवा ट्रस्ट
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