9.2 पूँजीका स्वरूप कहा जाता है कि ‘अर्थशास्त्रके क्षेत्रमें पूँजी स्वयं उदाहरण है। वह धनका एक निम्नतम परिमाण है, जिसके रहनेपर ही उसका स्वामी पूँजीपति कहला सकता है। मार्क्सने उद्योगकी किसी शाखाके एक श्रमिकका उदाहरण लिया है, जो आठ घण्टेतक अपने लिये अर्थात् अपनी मजदूरीका अर्थ उत्पन्न करनेके लिये श्रम करता है और चार घण्टे… Continue reading 9.2 पूँजीका स्वरूप ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
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7.10 पूँजी और श्रम ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज
7.10 पूँजी और श्रम अतिरिक्त श्रमके दरके सम्बन्धमें मार्क्सवादी कहते हैं कि ‘पूँजी या पैदावारके साधनोंको हम इस प्रकार बाँट सकते हैं। एक वे साधन, जो एक हदतक स्थायी हैं, उदाहरणत: इमारतें और मशीनें, दूसरा कच्चा माल, तीसरे मजदूरको मजदूरी देनेके लिये पूँजी। पूँजीका जो भाग पैदावारके स्थायी साधनोंपर खर्च होता है, वह एक निश्चित… Continue reading 7.10 पूँजी और श्रम ~ मार्क्सवाद और रामराज्य ~ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज