2.5 आल्थूसियस
अपने पूर्वविचारकोंसे भी अधिक सेक्युलर (लोकायत) था। वह जनताकी प्रभुताका दार्शनिक था। वह राज्यको एक क्रममें मानता था—अर्थात् कुटुम्ब, कारपोरेशन, कम्यून, प्रान्त और उसके बाद राज्य; यह क्रम था। राज्यके बाद कुटुम्ब अधिक महत्त्व रखता था। पूर्ण ढाँचा लौकिक तथा स्पष्ट था। प्रत्येक क्रमके विकासका मूल (समझौता) था। उसने राज्यको जनताका सेवक माना। उसकी रायमें ‘राज्यकी शक्ति सापेक्षमूलक थी। जनताने उसे कुछ कार्य दिये हैं, जिसे करना उसका कर्तव्य था। जनता किसी प्रकारसे बद्ध नहीं थी। शासक केवल मजिस्ट्रेटके रूपमें था। उसका अधिकार यदि कुछ था तो समझौतेसे ट्रस्टीके समान ही।’ इसकी राजनीति विश्लेषणकी सर्वप्रमुख विशेषता ‘लौकिक-राजनीतिकी स्पष्ट स्थापना’ थी।
श्रोत: मार्क्सवाद और रामराज्य, लेखक: श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज, गीता सेवा ट्रस्ट
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