कहा जाता है कि ‘सर्वप्रथम समझौता-सिद्धान्त’ या ‘अनुबन्धवाद’ ही राजनीतिक सिद्धान्त था। इसीको ‘सोशल कॉन्ट्राक्ट थ्योरी’ कहा जाता है। प्रजाने परस्पर समझौतेसे एक व्यक्तिको अपने सब अधिकारोंको शपथपूर्वक अर्पित किया। सामन्तों और किसानोंका, सामन्तों तथा राजाओंका एवं राजाओं और सम्राट्का सम्बन्ध समझौतोंपर आश्रित था। राजा अपने सामन्तों एवं प्रजाके सम्मुख सच्चरित्रता, न्याय-परायणताकी शपथ लेता था। यह परम्परा अब भी है। १३वीं शतीके एक्वानसका कहना था कि ‘राज्यका जन्म अधिकार एवं संचालन समझौतों या अनुबन्धोंपर आश्रित है। प्रथम अनुबन्धसे ईश्वरने राजसत्ता या राज्यकी स्थापना की। द्वितीय अनुबन्धद्वारा जनताने राज्यका वैधानिकरूप निर्धारित किया। तीसरे अनुबन्धद्वारा राजाकी सत्ताको जन-इच्छापर आश्रित किया गया। यदि राजा इन अनुबन्धोंका उल्लंघन करे तो जनता उसे सिंहासनच्युत करके दूसरा राजा बना सकती है। सुव्यवस्थाकी स्थापना ही राजाका मुख्य कार्य है। समाज सर्वोपरि है, शासन परिवर्तनीय।’ यह विचारधारा मध्य-युगकी है। कहा जाता है कि सोलहवीं शतीतक धर्मकी प्रधानता थी, अत: राज्यशासन भी धर्ममिश्रित था। राजा देवांश है, यह सिद्धान्त प्रचलित था। १६वीं शतीमें यूरोपमें दो धार्मिक सम्प्रदाय बने—एक परम्परावादी रोमन कैथोलिक और दूसरा प्रोटेस्टेण्ट। प्रोटेस्टेण्टमें प्यूरिटन, प्रेसविटेरियन, ह्युगेनोज आदि कई उपसम्प्रदाय बने। फ्रांसके ३६ वर्षव्यापी गृहयुद्धमें एक पक्ष था रोमन कैथोलिक पादरियों एवं सामन्तोंका और दूसरा ह्युगेनोज व्यापारियों एवं कुछ सामन्तोंका। पहला पक्ष राजभक्तिका उपदेश देता था और दूसरा राज्योत्पत्तिका श्रेय अनुबन्धोंको देता था। उसके अनुसार ‘राजाकी सत्ता निरपेक्ष नहीं, किंतु अनुबन्धोंपर आश्रित है।’
१७वीं शतीमें ब्रिटेनमें गृहयुद्ध चला। इसमें एक पक्ष था निरपेक्ष राजतन्त्रीय लोगोंका और दूसरा संसद्-वादियोंका। पहला पक्ष राजाको ईश्वरका प्रतिनिधि मानता था। स्टुअर्ट नरेश जेम्स प्रथम इस सिद्धान्तका प्रसिद्ध दार्शनिक था। उसका एवं उसके पुत्र चार्ल्स प्रथमका कहना था कि ‘दैवी प्रतिनिधि होनेके कारण राजाका प्रजाके जान-मालपर पूर्ण अधिकार है।’ संसद्-वादी पक्षमें व्यापारियों एवं मध्यम-वर्गका बहुमत था। यह पक्ष राजाकी सीमित सत्ता मानता था। राजा लौकिक नियमों एवं संसदीय नियमोंका उल्लंघन नहीं कर सकता। जनताकी परोक्ष या प्रत्यक्ष अनुमति बिना राजा व्यक्तिगत सम्पत्तिपर कर नहीं लगा सकता। ये लोग ‘ह्युगेनोज’ के अनुबन्धोंको अंशत: आधार मानते थे। उपर्युक्त पक्षोंमें अनुबन्धको धर्मसे स्वतन्त्र नहीं माना गया, परंतु ‘हॉब्स’ ने अनुबन्धवादको धर्मसे विमुक्तकर उसे राज्यशास्त्रीय रूप दिया। ‘लॉक’ एवं ‘रूसो’ ने भी इसी सिद्धान्तको विभिन्न दृष्टिकोणोंसे अपनाया। हॉब्सने निरपेक्ष राजतन्त्र, लॉकने सीमित राजतन्त्र और रूसोने प्रत्यक्ष जनवादको न्यायसंगत बताया।
श्रोत: मार्क्सवाद और रामराज्य, लेखक: श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज, गीता सेवा ट्रस्ट
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